रायपुर, 18 जुलाई (भाषा) छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में बुरकापाल नक्सली हमले में गिरफ्तार 121 आदिवासियों को अदालत ने बरी कर दिया है और उनमें से 108 ग्रामीण जेल से रिहा भी हो गए। लेकिन इन वर्षों के दौरान ग्रामीणों और उनके परिजनों ने कई चुनौतियों का सामना किया है।
सुकमा जिले के जगरगुंडा गांव के निवासी हेमला आयतु उन 121 आदिवासियों में से एक है, जिन्हें 24 अप्रैल वर्ष 2017 में बुरकापाल में हुए नक्सली हमला मामले में गिरफ्तार किया गया था। इस हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 25 जवान शहीद हुए थे।
आयतु लगभग पांच वर्ष से जेल में था। बीते शुक्रवार को एनआईए की विशेष अदालत ने आयतु और अन्य आदिवासियों को इस मामले से बरी कर दिया और शनिवार को वह अपने साथियों के साथ जेल से बाहर आ गए। लेकिन तब तक उसके लिए जेल से बाहर की दुनिया बदली चुकी थी।
आयतु कहते हैं, ‘‘हमने उस अपराध के लिए पांच साल जेल में बिताए हैं, जो हमने किया ही नहीं। घटना से कुछ दिनों पहले मेरी शादी हुई थी जिसके बाद मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। मैंने तब से अपनी पत्नी को नहीं देखा है।’’
उन्होंने बताया कि उनके चाचा डोडी मंगलू (42) को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन जेल में मंगलू की मौत हो गई।
आयतु कहते हैं, ‘‘मेरे मांगे जाने के बाद भी उन्होंने (जेल प्रशासन ने) उनसे संबंधित कोई दस्तावेज नहीं दिया है।’’
यह कहानी केवल आयतु की ही नहीं है। इस मामले में गिरफ्तार बुरकापाल गांव के निवासी एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि उसके परिवार ने अदालत की सुनवाई के खर्च के लिए अपने खेत और बैल बेच दिए।
जेल से रिहा किए गए एक अन्य व्यक्ति ने कहा, ‘‘जेल में पिछले पांच साल बहुत तकलीफों में बीता है। अब परिवार से मिलेंगे। हम तो खेती किसानी करते थे। अचानक एक दिन गिरफ्तार कर लिए गए।’’
जेल से रिहा किए गए करीगुंडम गांव के रहने वाले पदम बुस्का ने कहा कि वह और उसका भाई घर पर सो रहे थे जब उन्होंने गोलियों की आवाज सुनी, और अगले दिन पुलिस ने उन्हें उठा लिया। तब वह 23 साल के थे।
बुस्का ने कहा, ”हम कभी भी गैरकानूनी संगठन से नहीं जुड़े, लेकिन हमें उस अपराध के लिए पांच साल जेल में बिताना पड़ा जो हमने नहीं किया। हम दोनों भाई शादीशुदा हैं और हमारे कोई बच्चे नहीं हैं। इन पांच वर्षों के दौरान पत्नियों ने परिवारों को कैसे सम्हाला, हम इससे पूरी तरह अनजान हैं।”
उन्होंने कहा कि वे किसान हैं और आजीविका के लिए वनोपज पर भी निर्भर हैं। बुस्का ने एक स्थानीय पत्रकार को बताया, ”हमारी तरह अधिकांश गिरफ्तार व्यक्ति परिवार के कमाने वाले सदस्य थे और जब हम जेल में थे तो हमारे परिवार बिखर गए। परिवार ने हमारी रिहाई के लिए कानूनी खर्चों का इंतजाम कैसे किया, हम नहीं जानते।”
जगदलपुर केंद्रीय जेल के अधीक्षक अमित शांडिल्य ने बताया कि इस मामले में जगदलपुर जेल में बंद 118 लोगों में से 105 लोगों को शनिवार को रिहा कर दिया गया, जबकि अन्य मामलों के 13 आरोपी अभी भी जेल में हैं।
इसी तरह दंतेवाड़ा जेल के अधीक्षक गोवर्धन सिंह सोरी ने बताया कि इस मामले के तीन आरोपी उनकी जेल में बंद थे और उन सभी को रिहा कर दिया गया है।
इससे पहले बस्तर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने बताया था कि अदालत के आदेश के बाद 113 आरोपियों को शनिवार को रिहा कर दिया गया जिनमें से 110 जगदलपुर केंद्रीय जेल और तीन दंतेवाड़ा जिला जेल में बंद थे।
सुंदरराज ने बताया था कि शेष आठ अन्य मामलों में आरोपी हैं, इसलिए उन्हें रिहा नहीं किया गया है। पुलिस अधिकारी ने बताया कि मामले में आगे की कार्रवाई के बारे में निर्णय दस्तावेज और कानूनी संभावनाओं की जांच के बाद तय किया जाएगा।
विशेष न्यायाधीश (एनआईए अधिनियम/अनुसूचित अपराध) दीपक कुमार देशलहरे की अदालत ने शुक्रवार को बुरकापाल नक्सली हमले के आरोपी आदिवासियों को दोषमुक्त कर दिया था।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि अभियुक्तगण के खिलाफ आरोप के संबंध में कोई तथ्य विश्वास किए जाने योग्य नहीं मिला है, जिससे यह प्रमाणित हो कि अभियुक्तगण प्रतिबंधित नक्सली संगठन के सक्रिय सदस्य हैं तथा घटना में संलिप्त रहे हैं।
इन अभियुक्तों के पास से कोई घातक आयुध एवं आग्नेय शस्त्र की जप्ती होना भी प्रमाणित नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में इनके खिलाफ आरोपित अपराध में कोई भी आरोप प्रमाणित नहीं होना पाया गया है।
24 अप्रैल, 2017 को सुकमा जिले के बुरकापाल गांव के करीब नक्सलियों ने सीआरपीएफ के दल पर घात लगाकर हमला कर दिया था। इस घटना में 25 जवानों की मौत हो गई थी।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि इस हमले मामले में सुकमा जिले के चिंतागुफा, जगरगुंडा और बीजापुर जिले के पामेड़ इलाके से एक महिला सहित आदिवासी समुदायों के 122 सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था। जिसमें एक की बाद में मृत्यु हो गई थी। इस मामले में तीन लड़कों को भी पकड़ा गया था।
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि तीन किशोरों के मामले में किशोर अदालत के फैसले का इंतजार है, हालांकि वह पहले ही जमानत पर बाहर हैं। वहीं नक्सली कमांडर हिडमा समेत 139 फरार नक्सलियों के खिलाफ घटना की जांच अभी भी जारी है।
उन्होंने बताया कि रिहा किए गए आदिवासियों में से अधिकांश को वर्ष 2017 में गिरफ्तार किया गया था, जबकि कुछ को 2018 और 2019 में गिरफ्तार किया गया था।
इस मामले में बचाव पक्ष की अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया ने कहती हैं, ‘‘उन्हें आखिरकार न्याय मिल गया है, लेकिन उन्होंने जो अपराध नहीं किया, उसके लिए उन्हें इतने साल जेल में क्यों बिताने पड़े? उनकी भरपाई कौन करेगा।’’
भाटिया ने कहा कि उनके परिवार बर्बाद हो गए हैं और अधिकांश गिरफ्तार आदिवासियों के परिजन जगदलपुर या दंतेवाड़ा जेल में उनसे मिलने भी नहीं गए, क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे।
उन्होंने कहा कि बुरकापाल मामला बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों के साथ हुए घोर अन्याय का उदाहरण है।
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