पटना: शराबबंदी कानून के कारण अदालतों पर बढ़ते बोझ को लेकर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद बिहार ने अवैध शराब के उपभोक्ताओं को थोड़ी राहत देने का कदम उठाया है. राज्य विधानसभा में बुधवार को पारित बिहार मद्य निषेध और उत्पाद (संशोधन) विधेयक, 2022 में कहा गया है कि शराब पीते पकड़े गए लोग अब एक मजिस्ट्रेट के सामने जुर्माना भरकर जेल जाने से बच सकते हैं.
यदि आरोपी जुर्माना अदा करने में असमर्थ है—हालांकि जुर्माने की राशि स्पष्ट नहीं है—तो उसे एक महीने के साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी. इस संशोधन में पहली बार अपराध करने वाले या इसे दोहराने वाले अपराधियों के बीच कोई अंतर नहीं किया गया है.
इसके विपरीत, 2016 में मूल रूप से लागू बिहार के शराबबंदी कानून के प्रावधानों में कुछ ढील देने वाले संशोधनों के बाद 2018 से लागू मौजूदा कानून में पहली बार अपराध करने वालों के लिए 50,000 रुपये जुर्माना या तीन महीने की कैद का प्रावधान है, जबकि यही अपराध दोहराने वालों के लिए पांच साल की जेल और एक लाख जुर्माने का प्रावधान है.
यह स्वीकारते हुए कि अप्रैल 2016 में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से यद्यपि सरकार ने 74 विशेष अदालतें गठित की है, लेकिन फिर भी इसकी वजह से बिहार की अदालतों पर मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है, राज्य के आबकारी मंत्री सुनील कुमार ने कहा, ‘समय आ गया है कि हम शराब पीने वालों की बजाये अवैध शराब के आपूर्तिकर्ताओं पर शिकंजा कसें.
हालांकि, मंत्री ने जोर देकर कहा कि शराबबंदी कानून सख्ती से लागू किया जाना जारी रहेगा. उन्होंने कहा, ‘शराबबंदी कानून को लोगों, खासकर महिलाओं का पूरा समर्थन हासिल है. मैंने खुद मुख्यमंत्री की सामाजिक सुधार यात्रा के दौरान इसे महसूस किया है.’
विधानसभा में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के समीर महासेठ और कांग्रेस के अजीत शर्मा की तरफ से पेश संशोधनों को खारिज करते हुए विधेयक को पारित किया गया, जिन्होंने कानून में अधिक पारदर्शिता की मांग करते हुए आरोप लगाया था कि इसके तहत अभी भी पुलिस और आबकारी विभाग को असीमित अधिकार मिले हुए हैं.
दिप्रिंट से बातचीत में महासेठ ने कहा, ‘बिहार सरकार की तरफ से कानून में यह आखिरी संशोधन नहीं हो सकता. अभी भी इसमें कई खामियां हैं, जैसे उस संपत्ति की जब्ती जहां शराब बरामद गई गई है.’
उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि मौजूदा संशोधन में भी सरकार ने अभी तक जुर्माना तय नहीं किया है. मान लीजिए कि किसी गरीब आदमी से बड़ी रकम मांगी जाती है तो उसके पास जेल जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.’
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केवल पहली बार अपराध करने वालों को ही राहत नहीं
संशोधित कानून पहली बार अपराध करने वाले और दोहराने वालों के बीच कोई अंतर नहीं करता है, क्योंकि यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं है कि किसी व्यक्ति ने कितनी बार कानून का उल्लंघन किया है.
सुनील कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि, एक समय के बाद अपराध दोहराने वाले अपराधियों की पहचान की जाएगी और उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी.’
संशोधित कानून लंबित मामलों पर भी लागू होगा. बिहार की जेलों में कई ऐसे कैदी हैं जो शराब पीते पकड़े गए और दो महीने से अधिक समय से जेल में हैं क्योंकि उनके मामले सुनवाई के लिए नहीं आए हैं. अब वे जुर्माना राशि भरकर जेल से बाहर निकल सकेंगे.
बिहार की जेलों में कैदियों की संख्या बहुत ज्यादा है, पिछले साल अगस्त में जेलों की कुल 46,449 कैदियों की क्षमता के मुकाबले 62,823 कैदी बंद थे.
जेल विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘इन कैदियों में अवैध शराब पीने वालों की संख्या बहुत बड़ी है, जो कि करीब 40% है.’
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सुप्रीम कोर्ट का दबाव
दिसंबर में भारत के चीफ जस्टिस एन.वी. रमना ने बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2016 पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि यह कदम ‘दूरदर्शिता के अभाव’ के साथ उठाया गया था, और इससे राज्य की अदालत पर बोझ बढ़ा है. उन्होंने कहा कि पटना हाई कोर्ट के कम से कम 14-15 जज हर दिन शराब के मामलों में जमानत की सुनवाई में ही व्यस्त रहते हैं.
अनुमान है कि बिहार की अदालतों में करीब 3.5 लाख मामले लंबित हैं.
8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने शराबबंदी से जुड़े मामलों में जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इसके असर के मूल्यांकन और न्यायिक बुनियादी ढांचे को अपग्रेड किए बिना शराबबंदी कानून लागू करने को लेकर बिहार सरकार को फटकार लगाई थी.
कांग्रेस विधायक अजीत शर्मा ने आरोप लगाया, ‘सुप्रीम कोर्ट के दबाव मे आकर ही अवैध शराब का इस्तेमाल करने वालों को राहत दी गई है.’
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