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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशऑस्ट्रेलिया, रूस और जर्मनी के बाद भारत भी जानना चाहता है कोरोनावायरस का स्रोत, चीन हुआ नाखुश

ऑस्ट्रेलिया, रूस और जर्मनी के बाद भारत भी जानना चाहता है कोरोनावायरस का स्रोत, चीन हुआ नाखुश

भारत, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ की अगुवाई में एक प्रस्ताव का सह-प्रायोजक है, जिसमें डब्लूएचओ द्वारा एक स्वतंत्र जांच की मांग की जा रही है.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है, कि अपने रुख़ में एक निर्णायक बदलाव करते हुए, भारत 62 अन्य देशों के साथ शामिल हो गया है, जो एक प्रस्ताव के मसौदे का समर्थन कर रहे हैं, जिसमें कोविड-19 के प्रकोप और इसके स्रोत की जांच की मांग की जा रही है, हालांकि चीन लगातार इस क़दम का विरोध कर रहा है.

भारत ने प्रस्ताव का सह-प्रायोजन किया है, जिसकी अगुवाई ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ (ईयू), संयुक्त रूप से कर रहे हैं, और जिसका लक्ष्य वायरस के स्रोत, और इंसानों में इसके फैलने के कारणों का पता लगाना है.

प्रस्ताव पर, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के तत्वावधान में एक स्वतंत्र जांच की मांग की गई है, सोमवार से जेनेवा में शुरू हो रही विश्व स्वास्थ्य सभा (डब्लूएचए) की दो-दिवसीय बैठक में, एजेण्डा के तौर पर विचार किया जाएगा.

डब्लूएचए, डब्लूएचओ की फैसले लेने वाली मुख्य इकाई है.

हालांकि प्रस्ताव में चीन या वूहान का नाम नहीं लिया गया है, वो शहर जहां कोविड-19 का पहला मामला पता चला था, लेकिन ये साफ है कि 62 देश इस मामले में एक स्वतंत्र जांच चाहते हैं.


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प्रस्ताव में डब्लूएचओ और इसके महा-निदेशक टेड्रोस अधनॉम ग़ेब्रिएसस से आग्रह किया गया है,“कि वायरस के ज़ूनॉटिक सोर्स और उसके इंसानी आबादी में घुसने के रास्ते की पहचान की जाए, जिसमें किसी और माध्यम का रोल भी संभव हो सकता है.

इसमें वैज्ञानिक और सहयोगी फील्ड मिशंस जैसे प्रयास शामिल हो सकते हैं, जिससे लक्षित हस्तक्षेप किए जा सकेंगे. साथ ही एक रिसर्च एजेण्डा तय किया जा सकेगा जिसमें इस तरह की दूसरी घटनाओं का ख़तरा कम करने, तथा जानवरों व इंसानों में सार्स-सीओवी-2 संक्रमण को रोकने के लिए, दिशा निर्देश तय किए जा सकेंगे. इससे ज़ूनोसिस के नए संग्रह को बनने से रोका जा सकेगा, और ज़ूनॉटिक बीमारियों के फिर से विकसित होने, और संक्रमण फैलाने का ख़तरा कम हो जाएगा.

स्रोतों के अनुसार, महामारी फैलने के बाद ये पहली बार है, कि भारत ने एक ऐसा रुख़ अपनाया है, जिससे बीजिंग का ख़फ़ा होना लाज़िमी है.

जापान, साउथ कोरिया, न्यूज़ीलैण्ड, यूके, रूस, कनाडा, टर्की और यूक्रेन, उन दूसरे देशों में से हैं, जिन्होंने प्रस्ताव के मसौदे का समर्थन किया है.

महामारी के फैलने पर चीन और डब्लूएचओ को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है, जिसने दूसरे देशों को दो महीने तक लॉकडाउन करने को मजबूर किया है, जिससे ज़बर्दस्त वैश्विक मंदी के हालात पैदा हो गए हैं.

बीजिंग, जिसने बहुत सख़्ती से इनकार किया है, कि वायरस का उदय वूहान शहर से हुआ, ने जांच का इरादा रखने के लिए ऑस्ट्रेलिया की निंदा की है.


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डब्लूएचओ में भारत का तनावपूर्ण कार्यकाल

भारत जल्द ही डब्लूएचओ के कार्यकारी बोर्ड की अध्यक्षता ग्रहण करेगा, जहां बहु-पक्षीय निकाय की 22 मई को होने वाली बैठक में, इस प्रस्ताव पर फैसला लिया जाएगा.

डब्लूएचए में ताइवान की ‘ऑब्ज़र्वर’ की पुरानी हैसियत को मान्यता देने पर, अमेरिका और चीन में पहले ही कूटनीतिक झड़प शुरू हो चुकी है.

भारत में ऑस्ट्रेलिया के नामित उच्चायुक्त, बैरी ओ-फारेल ने इस महीने के शुरू में, एक इंटरव्यू में दि प्रिंट को बताया कि नई दिल्ली और कैनबरा इस बात को लेकर एकमत हैं, कि डब्लू एचओ को मज़बूत किया जाए, और कोविड-19 के उदय और इसके फैलने की, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र समीक्षा की जाए.

इस मुद्दे पर एक वर्चुअल शिखर बैठक में भी चर्चा की जाएगी, जो इसी महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के बीच होने जा रही है.

मार्च में हुए जी-20 वर्चुअल शिखर सम्मेलन में, मोदी ने डब्लूएचओ को मज़बूत करने, और सशक्त करने की बात कही थी, ताकि भविष्य की महामारियों से अधिक कारगर तौर पर निपटा जा सके.

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