नई दिल्ली: जस्टिस इंदु मल्होत्रा, जो कि 13 मार्च को सेवानिवृत्त होने जा रही हैं, के दफ्तर छोड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ एक महिला जज रह जाएंगी.
जस्टिस मल्होत्रा अप्रैल 2018 में सुप्रीम कोर्ट जज के तौर पर पदोन्नत होने वाली पहली महिला वकील थीं. जस्टिस के.एम जोसेफ, जो उस समय उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे, साथ उनका नाम केंद्र को भेजे जाने के तीन महीने बाद उस पर मुहर लग गई थी. वह 2007 में वरिष्ठ वकील के रूप में नामित होने वाली शीर्ष अदालत की दूसरी महिला वकील थीं.
सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सातवीं महिला जज
जस्टिस मल्होत्रा की शीर्ष कोर्ट की जज के तौर पर नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया था क्योंकि केंद्र ने उनका नाम मंजूर कर लिया था जबकि जस्टिस जोसेफ की पदोन्नति पर निर्णय नहीं लिया गया था, जिसे आखिरकर अगस्त 2018 में मंजूरी मिली. वह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सातवीं महिला न्यायाधीश हैं.
जस्टिस मल्होत्रा को एक संवेदनशील जज के रूप में याद किया जाएगा, जिन्होंने हमेशा कानूनी सिद्धांतों का सख्ती से पालन किया और अपने निर्णयों के माध्यम से अपनी बात कहने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई.
वह सबरीमला मंदिर की दशकों पुरानी प्रथा, जिसमें मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं के गर्भगृह में प्रवेश पर रोक थी, को बदल डालने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ में शामिल एकमात्र महिला जज थीं. हालांकि, उन्होंने आस्था से जुड़े मामलों में अदालती हस्तक्षेप के खिलाफ चेताते हुए न्यायाधीशों की बहुमत की राय से अलग निर्णय सुनाया.
जस्टिस मल्होत्रा ने धारा 377 संबंधी फैसले में अपनी अलग लेकिन एकसमान राय देते हुए कहा कि इतिहास को एलजीटीबी समुदाय और उनके परिवारों से माफी मांगनी चाहिए क्योंकि इसे निपटाने में लगे लंबे वक्त के कारण उन्हें सदियों तक ‘अपमान’ और ‘सामाजिक बहिष्कार’ झेलना पड़ा.
जस्टिस मल्होत्रा के रिटायरमेंट के बाद अब जस्टिस इंदिरा बनर्जी सुप्रीम कोर्ट में अकेली महिला जज रह गई हैं. जस्टिस बनर्जी को अगस्त 2018 में सुप्रीम कोर्ट जज के तौर पर नियुक्त किया गया था और उनकी पदोन्नति के साथ ही शीर्ष अदालत में पहली बार एक साथ तीन महिला न्यायाधीश हो गई थीं.
जस्टिस मल्होत्रा की सेवानिवृत्ति के साथ शीर्ष अदालत में मौजूदा न्यायाधीशों की संख्या भी 30 से घटकर 29 रह जाएगी. इसके साथ कोर्ट में पांच रिक्तियां हो जाएंगी.
जब वह सेवानिवृत्त हो रही हैं तो यहां महिला न्यायाधीशों में से उन तीन संभावित उम्मीदवारों पर एक नजर डालते हैं जिन्हें आने वाले महीनों में शीर्ष अदालत लाया जा सकता है.
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जस्टिस हिमा कोहली
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की संयुक्त हाई कोर्ट अलग होने के बाद बनी तेलंगाना हाई कोर्ट में 1 जनवरी 2019 को चीफ जस्टिस का पद ग्रहण करने वाली जस्टिस हिमा कोहली यह जिम्मेदारी संभालने वाली पहली महिला थी, हिमा कोहली ने एक हाई कोर्ट का नेतृत्व करने से पहले 14 साल दिल्ली हाई कोर्ट में बतौर जज कार्य किया था.
उन्हें 29 मई 2006 को दिल्ली हाई कोर्ट में एक अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और 29 अगस्त 2007 को उनकी स्थायी नियुक्ति कर दी गई.
देशभर में कुल 26 हाई कोर्ट में 1,079 न्यायाधीशों में केवल 82 महिला जज हैं. सबसे ज्यादा 13 महिला जज मद्रास हाई कोर्ट में हैं, इसके बाद पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का नंबर आता जिसमें 11 महिला जज हैं. दिल्ली और बांबे हाई कोर्ट में आठ महिला न्यायाधीश हैं, जबकि गुवाहाटी, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, राजस्थान और सिक्किम में इनकी संख्या एक-एक है.
जस्टिस कोहली मौजूदा समय में देश में एकमात्र महिला चीफ जस्टिस हैं, अनुभवों को देखते हुए वह देश की सबसे वरिष्ठ महिला न्यायाधीश हैं. वह इस साल सितंबर में सेवानिवृत्त होने वाली हैं.
सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि जस्टिस कोहली शीर्ष कोर्ट में न्यायाधीश के पद की सबसे प्रबल दावेदार हैं. यदि उन्हें सुप्रीम कोर्ट जज नियुक्त किया जाता है, तो उनका कार्यकाल 2024 सितंबर तक चलेगा.
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना
कर्नाटक की एक वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस बी.वी. नागरत्ना के नाम पर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने चर्चा की थी लेकिन उनकी पदोन्नति के बारे में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया.
2 फरवरी 2008 को कर्नाटक हाई कोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त की गई जस्टिस नागरत्ना को यदि पदोन्नत करके सुप्रीम कोर्ट लाया जाता है तो वह फरवरी 2027 में जस्टिस सूर्यकांत के बाद सीजेआई बन सकती हैं और 29 अक्टूबर 2027 तक इस पद पर रह सकती हैं.
ऐसी स्थिति में वह भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बनेंगी.
जस्टिस नागरत्ना के पिता जस्टिस ई.एस. वेंकटरमैया 1989 में कुछ महीनों के लिए सीजेआई रहे थे.
हालांकि, उनके सुप्रीम कोर्ट आने में एक ही फैक्टर सबसे बड़ी बाधा है कि शीर्ष अदालत में पहले से ही कर्नाटक हाई कोर्ट के तीन जज है, जो कि जस्टिस नागरत्ना की पैरेंट हाई कोर्ट है. इन तीनों में से कोई भी जनवरी 2023 से पूर्व सेवानिवृत्त होने वाला नहीं है, जबकि जस्टिस नागरत्ना का कार्यकाल अक्टूबर 2024 तक है.
सुप्रीम कोर्ट के एक सूत्र ने कहा कि शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में कोई लिखित विधान नहीं है और वरिष्ठता और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व आमतौर पर प्रमुख मापदंड रहते हैं.
सूत्र के अनुसार, जस्टिस नागरत्ना का चयन आदर्श रूप से महिला श्रेणी में होना चाहिए.
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी
सबऑर्डिनेट ज्यूडिशरी में जज के तौर पर रहे अनुभव को देखते हुए गुजरात हाई कोर्ट की एक वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी का नाम भी सुप्रीम कोर्ट के लिए विचाराधीन है.
जस्टिस त्रिवेदी, जो गुजरात हाई कोर्ट में इस समय वरिष्ठता के लिहाज से पांचवें नंबर पर हैं, को फरवरी 2011 में हाई कोर्ट जज के तौर पर शपथ दिलाई गई थी. इससे पहले, वह करीब एक दशक से अधिक समय तक जिला जज के रूप में कार्य कर चुकी थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तत्कालीन राज्य सरकार में विधि सचिव भी रही थीं.
यद्यपि जस्टिस त्रिवेदी ने गुजरात हाई कोर्ट की जज के तौर पर शपथ ली थी लेकिन राज्य में तत्कालीन सरकार के साथ कथित निकटता के कारण उन्हें 27 जून 2011 को राजस्थान हाई कोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया था.
हालांकि, फरवरी 2016 में उन्हें फिर से गुजरात हाई कोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया.
ऊपर उद्धृत सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि ट्रायल कोर्ट जज के रूप में उनका अनुभव एक ऐसा फैक्ट है जो उनकी पदोन्नति की प्रक्रिया में उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘पिछले साल जस्टिस आर. भानुमति के रिटायर होने के बाद से मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट में कोई ऐसा जज नहीं है, जिसे हाई कोर्ट के साथ-साथ निचली अदालत में भी जज के तौर पर काम करने का अनुभव हो.
(नेहा महाजन द्वारा संपादित)
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