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Friday, 1 November, 2024
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एक दशक में दोगुनी हुई आईआईएमसी की फ़ीस, छात्रों की मांग- ‘फी मस्ट फॉल’

1965 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सूचना प्रसारण मंत्री के तौर पर आईआईएमसी का उद्घाटन किया था . यहां मुख्यत: हिंदी-अंग्रेज़ी और रेडियो टीवी पत्रकारिता सहित पांच कोर्स चलाए जाते हैं.

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नई दिल्ली: एक तरफ़ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में बढ़े हॉस्टल-मेस फ़ीस का मामला अभी शांत नहीं हुआ, वहीं दूसरी तरफ़ सूचना एवम् प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के छात्रों ने लागातार हो रही फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ मुहीम छेड़ दी है.

1965 में तत्काली सूचना प्रसारण मंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी ने आईआईएमसी की शुरुआत की थी. यहां मुख्यत: हिंदी पत्रकारिता, अंग्रेज़ी पत्रकारिता, रेडियो टीवी पत्रकारिता, विज्ञापन एंव जनसंपर्क और उर्दू पत्रकारिता जैसे पांच कोर्स चलाए जाते हैं.

सस्ती शिक्षा से जुड़ी इस ताज़ा मांग को समझने के लिए दिप्रिंट ने संस्थान में 10 साल पहले लगने वाली ट्यूशन फ़ीस की तुलना अभी की फ़ीस से की है.

इस बारे में आईआईएमसी प्रशासन से मिली आधिकारिक जानकारी के मुताबिक 2009-10 में यानी एक दशक पहले हिंदी और अंग्रेज़ी पत्रकारिता के लिए 34,000 रुपए देने पड़ते थे. अब यानी 2018-19 के सत्र में इसी के लिए 95,500 देने पड़ रहे हैं यानी एक दशक में ये दोनों कोर्स लगभग तीन गुना महंगे हुए हैं.

तब विज्ञापन जनसंपर्क डिप्लोमा के लिए 48,000 रुपए देने पड़ते थे, अब इसके लिए 1,31,500 देने पड़ते हैं यानी ये भी ढाई गुना से ज़्यादा मंहगा हुआ है. वैसे ही रेडियो टीवी के लिए तब 76,000 देने पड़ते थे, अब इसकी फीस 1,68,500 रुपए कर दी गई है. ऐसे में देश में सबसे प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थान माने जाने वाले आईआईएमसी में हर कोर्स पिछले एक दशक की तुलना में दोगुने से ज़्यादा महंगा हुआ है.


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इस बारे में रेडियो-टीवी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे ऋषिकेश शर्मा ने कहा, ‘सूचना प्रसारण मंत्रालय के तहत आने वाला आईआईएमसी एक स्वायत्त सोसाइटी है. स्वायत्त सोसाइटी नो ‘प्रॉफिट-नो लॉस’ के सिद्धांत पर चलती है. इसके बावजूद यहां हर साल 10 प्रतिशत फ़ीस बढ़ाई गई.’

छात्रों में डर है कि मुद्दा भटका न दिया जाए

आईआईएमसी में हर साल फ़ीस अपने आप 10 प्रतिशत बढ़ जाने का सिस्टम रहा है. लेकिन प्रशासन द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक मई 2019 में एक्ज़िक्यूटिव काउंसिल ने एक बैठक में अपनी तरफ़ से ये फ़ैसला लिया कि इस सत्र में फ़ीस नहीं बढ़ाई जाएगी.

संस्थान में छात्रों की मांग के बाद बुधवार को एक बैठक की गई जिसमें यहां के डीजी केएस धतवालिया और कोर्स डायरेक्टरों के अलावा छात्र भी शामिल थे. बैठक में हॉस्टल की फ़ीस घटाने पर ग़ौर करने का आश्वासन दिया गया और ट्यूशन फ़ीस के सिलसिले में एक कमेटी बनाने की बात कही गई है. छात्रों का कहना है कि कमेटी बनाए जाने की बात से उन्हें डर है कि कहीं उनका मुद्दा भटका न दिया जाए.

हालांकि, इस बारे में जारी किए गए एक बयान में आईआईएमसी प्रशासन का कहना कि यहां स्किल बेस्ड पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा की पढ़ाई होती है जिससे नौकरी मिलने की संभावना ज़्यादा रहती है. ये कॉलेजिएट सिस्टम के तहत कराए जाने वाले ऐसे कोर्स हैं जो ‘स्व वित्त पाठ्यक्रम’ होता है यानी इसमें बच्चों को ज़्यादा पैसे देने पड़ते हैं.

बयान में आगे कहा गया है, ‘ऐसे कोर्स आम तौर पर सामान्य कोर्स से महंगे होते हैं. यहां ली जाने वाली फ़ीस सूचना प्रसारण मंत्रालय के तहत चलाए जा रहे अन्य प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा ली जाने वाली फ़ीस के बराबर है.’

अंग्रेज़ी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे राहुल यादव ने कहा, ‘ट्यूशन फ़ीस के अलावा सीटर गर्ल्स हॉस्टल का चार्ज 3500 रुपए है और मेस चार्ज 3000 रुपए है. वही तीन सीटर ब्यॉज हॉस्टल के लिए प्रति छात्र को 1750 रुपए देने पड़ते हैं और मेस के लिए 3000 रुपए हर महीने अलग से देने पड़ते है. ऊपर से सबको ह़ॉस्टल भी नहीं मिलता.’


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छात्रों का आरोप है कि प्रशासन ने उनकी मांग के ख़िलाफ़ अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी है. हालांकि, प्रशासन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि ये आरोप सही नहीं हैं. आईआईएमसी के डीजी केएस धत्तवालिया ने इस सिलसिले में दो बार छात्रों के साथ मुलाकात की है और अश्वासन दिया है कि 15 दिसंबर तक उनकी ‘जायज़’ मांगों को मान लिया जाएगा.

आईआईएमसी के एक शिक्षक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘छात्रों द्वारा लाइब्रेरी 24 घंटे खुले रहने की मांग को मान लिया गया. इसके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर और उपकरणों को अपग्रेड करने की प्रक्रिया भी जारी है.’ बयान के मुताबिक मंत्रालय से मिलने वाले पैसे के अलावा संस्थान को अपने राजस्व का एक हिस्सा ख़ुदा जुटाना पड़ता है जिसके लिए ट्यूशन फ़ीस एक बड़ा जरिया है.

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