नई दिल्ली: शुक्रवार को आवारा कुत्तों के काटने से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि “आवारा कुत्तों की समस्या” एक गंभीर मुद्दा है जिसे दिल्ली नगर निगम (MCD) द्वारा तत्काल समाधान की जरूरत है. लेकिन एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट के अनुसार MCD के पशु नियंत्रण कार्यक्रम में कई मुद्दे हैं, जिसमें सुधार की जरूरत है- इसमें धन की कमी, आवारा जानवरों से जुड़े नियमित मुद्दों के लिए एक प्रणाली की कमी और जानवरों की देखभाल को कम प्राथमिकता शामिल है.
आवारा कुत्तों को खाना खिलाने से जुड़े एक मामले में अपने खिलाफ दर्ज दो एफआईआर को रद्द करने की एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि आवारा कुत्तों की समस्या को “संबंधित प्राधिकारी द्वारा तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है”.
अदालत की टिप्पणियां ऐसे समय में आई हैं जब G20 शिखर सम्मेलन से पहले नागरिक निकाय द्वारा आवारा जानवरों से निपटने के तरीके पर विवाद पैदा हो गया था. एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट ने नागरिक निकाय पर जानवरों को पकड़ने और छोड़ने के लिए गलत, यहां तक कि क्रूर तरीकों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है.
नागरिक अधिकारियों ने आरोपों से इनकार किया है और उन्हें “अतिरंजित” बताया है. लेकिन इस विवाद ने अन्य दूसरे मुद्दों को भी प्रकाश में ला दिया है, जिनके बारे में एक्टिविस्ट का कहना है कि इससे नगर निकाय का पशु चिकित्सा विभाग प्रभावित हो रहा है खासकर विशेष रूप से इसके पशु जन्म नियंत्रण केंद्र.
पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2023 के अनुसार – एक कानून जिसका उद्देश्य पशु कल्याण के मुद्दों पर काम कर आवारा कुत्तों की आबादी को कम करना है – एक पशु जन्म नियंत्रण केंद्र के साथ साथ एक पशु चिकित्सा सुविधा है जिसमें सर्जिकल बुनियादी ढांचे, पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल केनेल, संगरोध केनेल, अलगाव केनेल और पशु जन्म नियंत्रण करने के उद्देश्य से आवश्यक रसद के साथ कुत्तों का परिवहन वाहन शामिल है.
नगर निकाय के पास 14 एबीसी केंद्र हैं. इस साल मार्च में, आम आदमी पार्टी-नियंत्रित MCD ने 2023-24 के लिए कुल 16,023 करोड़ रुपये का बजट पारित किया. इसमें से 1 प्रतिशत से कम पशु चिकित्सा विभाग को आवंटित किया गया था.
नेबरहुड वूफ नामक कैनाइन जन्म नियंत्रण और टीकाकरण सेल चलाने वाली एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट आयशा क्रिस्टीना बेन के अनुसार, एबीसी केंद्रों की संख्या शहर की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि इनमें से कई के पास पैसे की कमी है और वे बुनियादी स्वच्छता मानकों को बनाए रखने में असमर्थ हैं.
पकड़े गए कुत्तों को ले जाने के लिए MCD के पास वाहनों की अपर्याप्त संख्या है और इसका मौजूदा बेड़ा खराब स्थिति में है.
क्रिस्टीना ने कहा, “शहर में दैनिक आधार पर आवारा कुत्तों से संबंधित बड़ी संख्या में शिकायतें आती हैं, और ये वाहन सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. इसके अलावा, MCD के पास रोजमर्रा की आवारा कुत्तों की समस्याओं से निपटने के लिए निर्धारित दिनचर्या का अभाव है. खुद काम करने के बजाय वे केवल शिकायतों के आधार पर काम करते हैं. नागरिक निकाय को डेटा-संचालित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है.”
अपनी ओर से, MCD ने गलत तरीके से कब्जा करने और छोड़ने के आरोपों से इनकार किया है और दावा किया है कि उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था.
MCD के प्रेस और सूचना निदेशक, अमित कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि नगर निकाय केवल दो परिस्थितियों में आवारा जानवरों को उठाता है- या तो G20 शिखर सम्मेलन जैसे “विशेष आयोजन” होते हैं या फिर यदि कोई जानवर लोगों को नुकसान पहुंचाना शुरू करता है.
हालांकि, उन्होंने क्रिस्टीना के एक आरोप को माना कि MCD के पास आवारा जानवरों से जुड़े मुद्दों पर काम करने के लिए कोई योजना नहीं है. वह केवल शिकायतों के आधार पर कार्रवाई करती है. उन्होंने कहा कि संस्था नवंबर में दिल्ली में आवारा कुत्तों की गिनती करेगी.
इस तरह की आखिरी बार गिनती 2009 में आयोजित की गई थी.
‘अनिवार्य विवशता’
बुधवार को, G20 के समक्ष MCD द्वारा आवारा पशुओं से “गलत तरीके से निपटने” के बारे में चिंताओं को उजागर करने वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्थानीय अधिकारियों को एबीसी नियम, 2023 का पालन करने का आदेश दिया. याचिका में कहा गया है कि इसके लिए अमानवीय तरीकों का इस्तेमाल किया गया है. “सड़क के कुत्तों को हटाना” नियमों का “घोर उल्लंघन” है.
कार्यक्रम से पहले, पीपुल फॉर एनिमल्स (पीएफए) – एक पशु कल्याण संगठन – के सलाहकार गौरव डार ने दिप्रिंट को बताया कि नागरिक अधिकारियों ने “निर्ममतापूर्वक” जानवरों को “गले में फंदा डालकर” उठाया था, और “उन्हें जबरदस्ती वाहनों में भरा गया.”
लेकिन MCD के पशु चिकित्सा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शिखर सम्मेलन से पहले किसी भी घटना को रोकने के लिए आवारा जानवरों को पकड़ने और छोड़ने को “अनिवार्य विवशता” बताया.
अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “यह सामान्य ज्ञान की बात है कि जब कोई मेहमान आपके यहां आता है, तो आप चाहेंगे कि आपका परिवेश साफ-सुथरा हो. चूंकि दूसरे देशों से गणमान्य व्यक्ति आ रहे थे, इसलिए हमें कुत्तों को सड़कों से दूर रखना पड़ा.”
हालांकि, पीएफए की ट्रस्टी अंबिका शुक्ला के अनुसार, एक समर्पित विभाग होने के बावजूद जानवरों की देखभाल के प्रति MCD का दृष्टिकोण “बेहद कम प्राथमिकता वाला” रहा है.
शुक्ला ने दिप्रिंट को बताया कि 2023 के नियम के बाद धातु के चाबुक से जानवरों को पकड़ने या अन्य तरीकों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है. यह जानवरों को लिए परेशान करने वाले होता है. लेकिन नागरिक निकाय जाल के बजाय अभी भी इसका उपयोग करना जारी रखता है, “क्योंकि उनके पास कोई जाल नहीं है”.
नियम 11 (5) के अनुसार, “जानवरों को पकड़ना मानवीय तरीकों जैसे जाल से पकड़ना या हाथ से पकड़ना या किसी अन्य तरीके से किया जाएगा जो जानवरों के लिए कम कष्टप्रद हो और कुत्तों को पकड़ने के लिए चिमटे या तारों का उपयोग नहीं किया जाएगा. इसका पालन सख्ती से किया जाएगा.”
हालांकि जाल का उपयोग करके कुत्तों को पकड़ने के कुछ वीडियो थे, लेकिन शुक्ला ने कहा कि ये ज्यादातर गैर सरकारी संगठनों द्वारा किए गए थे, न कि नागरिक निकाय द्वारा.
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, कुछ एबीसी केंद्र- जैसे कि मसूदपुर, उस्मानपुर, द्वारका और बेला रोड पर- निजी पशु चिकित्सकों द्वारा चलाए जाते हैं, जो परिसर के रखरखाव को सुनिश्चित करने के लिए बहुत कम काम करते हैं.
‘NDMC बेहतर कर रही है’
MCD के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम पूरी तरह विफल हो गया है. अधिकारी ने G20 से पहले नागरिक निकाय की कार्रवाई को “अचानक प्रतिक्रिया” भी कहा.
अधिकारी ने कहा, “कुत्तों को बड़ी संख्या में उठाया जा रहा है क्योंकि पिछले तीन वर्षों में नसबंदी योजनाएं काम नहीं कर पाई हैं. यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है और इसके तत्काल परिणाम सामने नहीं आने वाले हैं. बेशक, चूंकि अभी कोई अन्य विकल्प नहीं था, इसलिए उन्होंने कुत्तों को उठाकर लोगों की नज़रों से छुपाने का फैसला लिया है.”
लेकिन शुक्ला इस बात से असहमत हैं कि नसबंदी योजनाएं पूरी तरह से विफल हो गई हैं, हालांकि वह मानती हैं कि अधिकांश प्रयास फीडर और एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट द्वारा थे, न कि नागरिक निकाय द्वारा. इसके विपरीत, वह कहती हैं कि नई दिल्ली नगरपालिका परिषद – वह निकाय जो आमतौर पर लुटियंस दिल्ली के नाम से जाने जाने वाले क्षेत्र का प्रशासन करती है – कार्यक्रम में और अधिक प्रयास कर रही है.
उन्होंने कहा, “एक कारण है कि नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में कोई समस्या नहीं है, और वे केवल दो एबीसी केंद्रों के साथ अच्छा काम कर रहे हैं. MCD के पास और भी बहुत कुछ है, लेकिन वे प्रभावी ढंग से काम करने में रुचि नहीं रखते हैं.”
नियमों के मुताबिक स्थानीय पशु जन्म नियंत्रण निगरानी समिति के गठन के बिना कोई भी पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम नहीं चलाया जा सकता है.
निकाय, जिसमें नगर निगम आयुक्त, समिति अध्यक्ष और सार्वजनिक स्वास्थ्य और अन्य विभागों के प्रतिनिधि और जिला सोसायटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स का एक प्रतिनिधि शामिल है, को महीने में एक बार मीटिंग करना अनिवार्य है.
नियम 13 (i) कहता है कि कार्यक्रम के प्रभारी प्राधिकारी को एक मासिक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी जिसमें पकड़े गए या नसबंदी किए गए तथा अवलोकन के लिए रखे गए आवारा कुत्तों की संख्या और सर्जरी से पहले, उसके दौरान या बाद में मरने वाले कुत्तों की संख्या और अन्य चीजों का विवरण देना होगा.
जब पूछा गया कि क्या MCD ने अपनी मासिक रिपोर्ट समिति को सौंप दी है, तो MCD के वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि की, लेकिन उन्होंने शेयर करने से इनकार कर दिया.
उन्होंने शुक्ला के इस आरोप का भी खंडन किया कि MCD कुत्तों को पकड़ने के लिए जाल का इस्तेमाल नहीं करती है.
अधिकारी ने कहा, “हमारे पास कई जाल हैं, लेकिन मुझे याद नहीं है कि कितने हैं. निष्फल कुत्तों को कान में निशान लगाने (कान से एक टुकड़ा काटने और फिर घाव को हीट कॉटरी से सील करने की प्रक्रिया) से चिह्नित किया जाता है. लेकिन मैं किसी भी आंकड़े का खुलासा नहीं कर सकता. मुझे इस बारे में विस्तार से बताने की कोई जरूरत नहीं है.”
(संपादनः ऋषभ राज)
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