नई दिल्ली: यूनाइटेड किंगडम के सेना प्रमुख, जनरल पैट्रिक सैंडर्स की पांच दिवसीय पाकिस्तान यात्रा के बाद यूके पाकिस्तान के साथ अपनी खुफिया और सैन्य सहयोग बढ़ाने पर विचार कर रहा है. इसकी जानकारी भारत सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को दी है.
जनरल सैंडर्स की पिछले सप्ताह की यात्रा के दौरान बताया गया था कि पाकिस्तान की हालात को ठीक करने और इस्लामिक स्टेट जैसे जिहादी समूहों से पश्चिम को होने वाले संभावित खतरे से लड़ने के लिए यूके से सहायता की जरूरत थी. दिप्रिंट को इसकी जानकारी मिली है.
जनरल सैंडर्स ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष जनरल असीम मुनीर के साथ-साथ ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ जनरल साहिर शमशाद मिर्जा से मुलाकात की. फरवरी में, जनरल मुनीर ने एक वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए यूके की पांच दिवसीय यात्रा की थी.
अफगानिस्तान में तालिबान की जीत में अपनी भूमिका को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका के गुस्से का सामना कर रहे पाकिस्तान लंबे वक्त से अंतराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग है. इसलिए इस्लामाबाद तेजी से ब्रिटेन के समर्थन की मांग कर रहा है.
लंदन के समर्थन ने पिछले साल जनरल क़मर जावेद बाजवा द्वारा वाशिंगटन की सफल यात्रा को संभव बनाया. तीन साल में पाकिस्तान के सेना प्रमुख द्वारा पहली बार यह वाशिंगटन की यात्रा थी. इसके बाद पाकिस्तान के F16 लड़ाकू जेट के पुराने बेड़े की मरम्मत के लिए $ 450 मिलियन की डील भी हुई. साथ ही अमेरिका और पाकिस्तान ने भी आतंकवाद-निरोध पर बातचीत शुरू कर दी.
यूके हर साल पाकिस्तानी सेना के दर्जनों अधिकारियों को प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों पर होस्ट करता है, जिसमें संयुक्त सेवा कमान और स्टाफ कॉलेज शामिल हैं.
2015 के बाद से, पाकिस्तानी सेना ने नियमित रूप से सैंडहर्स्ट में प्रतिष्ठित रॉयल मिलिट्री अकादमी के साथ-साथ श्रीवेनहैम डिफेंस अकादमी में ज्वाइंट सर्विसेज कमांड एंड स्टाफ कॉलेज में अधिकारी-प्रशिक्षक के रूप में कर्मियों को तैनात किया है. पाकिस्तान ऐसा करने वाला एकमात्र दक्षिण एशियाई देश है. भारत सरकार के सूत्रों ने कहा कि जनरल बाजवा के बहनोई कर्नल हैदर अमजद वर्तमान में श्रीवेनहैम में एक अधिकारी-प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत हैं.
मेजर उक़बाह हदीद मलिक 2016 में सैंडहर्स्ट में पहले पाकिस्तानी अधिकारी-प्रशिक्षक बने, इसके बाद 2019 में मेजर रिजवान हसन बने.
पाकिस्तान की एक विशेषज्ञ मैरी हंटर के अनुसार, ये पाकिस्तानी अधिकारी-प्रशिक्षक “भविष्य के ब्रिटिश सेना अधिकारियों की दक्षताओं और दृष्टिकोण को आकार देंगे.”
बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को MI5 और MI6 के प्रशिक्षण के लिए ब्रिटेन भेजा जाता है.
ब्रिटेन का मानना है कि अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट जिहादियों के खिलाफ लड़ाई के लिए पाकिस्तानी सेना की जरूरत है. इस साल की शुरुआत में, लीक हुए संयुक्त राज्य के खुफिया दस्तावेजों में दर्ज किया गया था कि कतर में फीफा विश्व कप के दौरान इस्लामिक स्टेट के लक्ष्य पर पश्चिम के नौ भूखंड शामिल थे.
इसमें कहा गया है, “इस्लामिक स्टेट बाहरी संचालन के लिए एक लागत प्रभावी मॉडल विकसित कर रहा है जो अफगानिस्तान के बाहर के संसाधनों, लक्षित देशों में संचालकों और व्यापक सुविधा नेटवर्क पर निर्भर करता है.”
लंदन ने भी भारत को कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित किया है, यह कहते हुए कि इससे जिहादियों को हाशिए पर लाने में मदद मिलेगी. पिछले साल, पाकिस्तान में ब्रिटेन के उच्चायुक्त क्रिश्चियन टर्नर ने एक क्लोज रूम मीटिंग में कहा था कि जनरल बाजवा भारत के संविधान में रद्द किए गए अनुच्छेद 35ए की बहाली की मांग कर रहे थे, जिसने जम्मू और कश्मीर राज्य को “स्थायी” नामित करने का अधिकार दिया था.
जनरल बाजवा ने दावा किया था कि उन्हें इन राजनीतिक रियायतों की ज़रूरत थी ताकि कश्मीर में सत्ता के कट्टरपंथियों के दबाव को पीछे धकेला जा सके – उनमें इमरान भी शामिल थे.
यह भी पढ़ें: मिडिल-ईस्ट कश्मीर पर भारत का बड़ा सहयोगी बन सकता है,पर G20 में इसका शामिल न होना आगे की चुनौतियां दिखाता है
पाकिस्तान और यूके – सहयोग का इतिहास
हंटर के अनुसार, ब्रिटिश और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच प्रशिक्षण सहयोग 1950 के दशक में शुरू हुआ, जब सैंडहर्स्ट ने पहली बार विदेशी कैडेटों को स्वीकार करना शुरू किया. पाकिस्तान को 1959 के राष्ट्रमंडल सैन्य प्रशिक्षण सहायता योजना से 39 प्रतिशत धन आवंटित किया गया था. ब्रिटेन को उम्मीद थी कि यह सहायता ईरान और तुर्की जैसे देशों के साथ मिलकर सोवियत संघ के खिलाफ पश्चिम के नेतृत्व वाले गठबंधन में पाकिस्तान के सहयोग को सुरक्षित करने में मदद करेगी.
ब्रिटेन और इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस निदेशालय के बीच लंबे समय से चला आ रहा खुफिया सहयोग 9/11 के बाद गहरा गया, इस खुलासे के बीच कि बड़ी संख्या में पाकिस्तानी-ब्रिटिश जिहादी पाकिस्तान में प्रशिक्षण ले रहे थे.
एक सरकारी समीक्षा में इस्लामवादी कट्टरपंथ की एक नई लहर की आशंका व्यक्त की गई थी, जिसमें “ब्रिटेन के चरमपंथी समूहों के साक्ष्य के साथ-साथ यूके के साथ एक पाकिस्तानी मौलवी, हिंसा के उपयोग के लिए आह्वान” का हवाला दिया गया था.
फरवरी में जारी, समीक्षा में “कश्मीर पर आग लगाने वाली बयानबाजी करने वालों के साथ ईशनिंदा के इर्द-गिर्द सीमाएं लगाने की कोशिश करने वालों के बीच क्रॉसओवर का एक तत्व” भी बताया गया है.
जनरल सैंडर्स की यात्रा पाकिस्तानी सेना और पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान के बीच तीव्र तनाव के समय हो रही है. खबरों के मुताबिक, पाकिस्तानी सेना ने पिछले हफ्ते एक बैठक के लिए प्रमुख घरेलू समाचार आउटलेट्स के मालिकों और शीर्ष संपादकों को इस्लामाबाद आमंत्रित किया था, जहां उन्हें इमरान के बयानों को कवर नहीं करने का निर्देश दिया गया था.
बीबीसी की कैरोलिन डेविस ने बताया कि पाकिस्तानी मीडिया को निर्देश दिया गया था कि “इमरान खान का उल्लेख या प्रदर्शन न करें, उनके टिकर टेप पर भी नहीं”.
जबकि यह प्रतिबंध स्पष्ट रूप से नहीं दिया गया था, पाकिस्तान के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नियामक प्राधिकरण ने शुक्रवार को एक अस्पष्ट आदेश जारी किया, जिसमें “घृणा फैलाने वालों, दंगाइयों, उनके मददगारों और अपराधियों” के कवरेज पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
(लेखक दिप्रिंट के राष्ट्रीय सुरक्षा संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @praveenswami है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादनः ऋषभ राज)
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ें: मणिपुर में उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए जातीय समूहों का प्रयोग किया गया- अब वही आग फैल रही है