रायपुर : 2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के अपने घोषणा पत्र में कांग्रेस पार्टी ने कहा था: ‘अगर कांग्रेस छत्तीसगढ़ में सत्ता में आती है, तो नक्सली ख़तरे का सामना करने के लिए एक नीति बनाने का प्रयास करेगी और समस्या का शांतिपूर्वक समाधान तलाशने के लिए गंभीरता के साथ संवाद शुरू करने की कोशिश करेगी.
लेकिन ढाई साल बाद, भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार जो राज्य में दिसंबर 2018 में सत्ता में आई थी अभी तक नई नीति बनाने और नक्सल हिंसा का शांतिपूर्ण हल निकालने में कामयाब नहीं हो पाई है.
लेकिन, राज्य सरकार का दावा है कि नई नीति बनाने के काम में, उसे केंद्र का सहयोग नहीं मिल रहा है, लेकिन फिर भी वो इस दिशा में बातचीत की एक नई प्रक्रिया की पहल करेगी.
मुख्यमंत्री बघेल के सलाहकार राजेश तिवारी ने कहा, ‘छत्तीसगढ़ में नक्सल-विरोधी नीति बनाना एक तकनीकी विषय है. केंद्र सरकार के समर्थन के बिना ये नीति बनाना मुश्किल है, लेकिन अभी तक राज्य को उससे कुछ ख़ास सहायता नहीं मिली है. राज्य में नक्सल-विरोधी नीति को लेकर केंद्र का रवैया बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है. जब भी राज्य के प्रतिनिधियों और मुख्यमंत्री ने दिल्ली में गृहमंत्री या अन्य अधिकारियों से मुलाक़ात की, तो वो हमारी सुझाई गई नीति पर चर्चा को लेकर इच्छुक नहीं थे’.
तिवारी ने ये भी कहा कि नक्सल ख़तरे से निपटने के प्रयास पहले ही शुरू किए जा चुके हैं, जिनके तहत बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए विकास योजनाएं और सरकारी स्कीमें शुरू की गई हैं. इसमें अधिक लघु वन उपज (एमएफपी) को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के अंतर्गत लाना शामिल है. महिला स्व सहायता समूहों को, एमएफपी एकत्र करने का ज़िम्मा सौंपा गया है और प्रॉसेसिंग यूनिट्स भी स्थापित की जा रही हैं.
तिवारी ने आगे कहा, ‘प्रयास किए जा रहे हैं कि उन क़ैदियों को छोड़ा जाए, जिन्हें नक्सली होने के झूठे आरोपों में फंसाया गया है, जबकि महामारी से पहले मुख्यमंत्री ने नक्सल पीड़ितों, सरेंडर कर चुके माओवादियों और अन्य हितधारकों के साथ, स्वयं बातचीत की पहल की है’.
इस बीच, मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रुचिर गर्ग ने कहा कि महामारी के कारण हुई देरी के बावजूद सरकार अपने वादों को पूरा करेगी.
गर्ग ने आगे कहा, ‘नीति निर्माण एक व्यापक प्रक्रिया होती है. इसके लिए न केवल केंद्र से परामर्श करने की ज़रूरत है, बल्कि पड़ोसी राज्यों में भी माओवाद की स्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है. छत्तीसगढ़ की दक्षिणी, पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं से लगा हर राज्य नक्सल समस्या से ग्रसित है. जहां तक संवाद प्रक्रिया की बात है, मुख्यमंत्री ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि सरकार माओवादियों के साथ तभी बातचीत करेगी, जब वो हथियार और हिंसा त्याग देंगे’.
दिप्रिंट ने राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू से फोन और संदेशों के ज़रिए संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के छपने के समय तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला था.
लेकिन, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा: ‘अभी तक राज्य में नक्सल पॉलिसी बनाने का काम निष्क्रिय पड़ा हुआ है. (राज्य गृह) मंत्री या मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से अभी औपचारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है. ये कहना मुश्किल है कि कल क्या होगा, लेकिन (राज्य गृह) मंत्री या सीएम की ओर से मिले किसी भी दिशा-निर्देश का विभाग द्वारा पूरी तरह से पालन किया जाएगा.
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‘कांग्रेस की दुविधा’
जहां बघेल सरकार केंद्र को दोषी ठहरा रही है, वहीं विपक्षा का कहना है कि कांग्रेस को पता ही नहीं है कि नक्सल समस्या से कैसे निपटना है. उसने ये भी कहा कि चुनाव घोषणापत्र में पार्टी के तमाम वादे सिर्फ सत्ता में आने के लिए किए गए थे.
पूर्व आईएएस अधिकारी और बीजेपी प्रदेश सचिव, ओपी चौधरी का कहना था कि राज्य में नक्सल समस्या केवल एक सामाजिक-आर्थिक मसला नहीं है, बल्कि क़ानून-व्यवस्था का भी मुद्दा है ‘जो कांग्रेस सरकार की तब समझ में आया, जब माओवादियों ने सुरक्षाकर्मियों को मारना शुरू कर दिया और 3 अप्रैल जैसे घात लगाकर हमले हुए, जिसके नतीजे में दक्षिण बस्तर में 22 सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई’.
उन्होंने कहा, ‘बघेल सरकार बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं है कि राज्य में नक्सल समस्या से कैसे निपटना है. 2018 में सत्ता में आने के बाद, उन्होंने शुरू में माओवादियों का हमदर्द बनने की कोशिश की और इसे कभी क़ानून व्यवस्था की समस्या स्वीकार ही नहीं किया. उन्होंने ऐसा माओवादियों को ख़ुश करने के लिए और उनकी सराहना हासिल करने के लिए किया, ये सोचते हुए कि वो बीजेपी के 15 वर्ष के शासन से नाख़ुश थे’.
चौधरी ने आगे कहा, ‘वो (कांग्रेस) पूरी तरह भ्रमित है और उसकी समाधान निकालने की मंशा ही नहीं है बावजूद इसके कि उसने इसे अपने चुनावी वादों में रखा हुआ है’.
बीजेपी नेता ने ये भी कहा कि ‘कांग्रेस पार्टी ने 2018 के अपने चुनावी घोषणापत्र में वो सब शामिल कर लिया था, जो उनके अग्र संगठनों ने सिर्फ सत्ता में आने के लिए कराया था और आज उनकी समझ में नहीं आ रहा कि माओवादियों से कैसे निपटा जाए. उन्होंने लोगों को ये विश्वास दिलाने का प्रयास किया कि सत्ता में आने के बाद, वो कोई चमत्कार कर देंगे और अब वो मुद्दों को छूना ही नहीं चाहते’.
राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, धरमलाल कौशिक ने कहा: ‘कांग्रेस सरकार ने ऐसा कोई ठोस काम नहीं किया, जिसे छत्तीसगढ़ में नक्सल नीति के निर्माण की दिशा में एक सकारात्मक क़दम कहा जा सके, जैसा कि उन्होंने लोगों से वादा किया था. समर्थन मांगना तो दूर उन्होंने इस विषय पर केंद्र से बात तक नहीं की है. अब जो वो कह रहे हैं वो सिर्फ अपना मुंह छिपाने की चाल है’.
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