नई दिल्ली: अधिकारियों ने कहा है कि मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (केएनपी) में सभी रेडियो-कॉलर वाले फ्री-रेंजिंग चीतों को बारीकी से जांच के लिए उनके बाड़ों में वापस लाया जा सकता है और जंगल में उनकी निगरानी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकता है.
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने रविवार को कहा था कि रेडियो कॉलर जैसे कारकों को बड़े चीतों की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराने वाली मीडिया रिपोर्टें ‘वैज्ञानिक सबूत के बिना, अटकलों और अफवाहों’ पर आधारित थीं.
हालांकि, चीता पुनरुत्पादन परियोजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कुछ विशेषज्ञों ने स्वीकार किया कि दक्षिण अफ्रीका के एक नर चीते की रेडियो कॉलर के उपयोग से संक्रमण के कारण मृत्यु हो गई.
सोमवार को चीता परियोजना संचालन समिति की बैठक में भाग लेने वाले एक अधिकारी ने कहा, “सभी रेडियो कॉलर वाले चीतों को कड़ी निगरानी के लिए उनके बाड़ों में वापस लाया जा सकता है. दक्षिण अफ्रीका से एक अन्य विशेषज्ञ चीता के अवलोकन और उपचार पर आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए मंगलवार को केएनपी पहुंचेंगे.”
दक्षिण अफ़्रीकी विशेषज्ञों ने भारत सरकार से चीता की मौत की जांच, योजनाबद्ध अतिरिक्त उपायों और संबंधित विकास के बारे में उन्हें सूचित रखने का अनुरोध किया है.
चीता परियोजना में शामिल उनमें से एक ने समिति को बताया कि जानवरों को जंगल में छोड़े जाने के पहले वर्ष के भीतर संस्थापक आबादी का 50 प्रतिशत का नुकसान स्वीकार्य मानकों के भीतर आता है.
विशेषज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दक्षिण अफ्रीका में रेडियो कॉलर से संबंधित कोई समस्या सामने नहीं आई है और ऐसी मौतों को रोकने के लिए नवीन प्रबंधन कार्रवाई आवश्यक होगी.
पर्यावरण मंत्रालय ने रविवार को कहा कि नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 20 वयस्क चीतों में से पांच की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई और रेडियो कॉलर जैसे कारकों को मौत के लिए जिम्मेदार बताने वाली मीडिया रिपोर्टें “वैज्ञानिक सबूत के बिना, अटकलों और अफवाहों” पर आधारित थीं.
दक्षिण अफ्रीका से स्थानांतरित नर चीता सूरज की शुक्रवार को श्योपुर के केएनपी में मृत्यु हो गई, जबकि एक अन्य स्थानांतरित नर चीता, तेजस की पिछले मंगलवार को मृत्यु हो गई.
चीता परियोजना संचालन समिति के प्रमुख राजेश गोपाल ने पीटीआई को बताया था कि चीतों की मौत का कारण रेडियो कॉलर के इस्तेमाल से सेप्टीसीमिया हो सकता है.
यह बेहद असामान्य है. यह चिंता का कारण है और हमने (मध्य प्रदेश वन विभाग के कर्मचारियों को) सभी चीतों की जांच करने का निर्देश दिया है.
उन्होंने कहा था, “हम भारत में लगभग 25 वर्षों से वन्यजीव संरक्षण में कॉलर का उपयोग कर रहे हैं. मैंने ऐसी कोई घटना कभी नहीं देखी. आजकल हमारे पास अच्छे, स्मार्ट कॉलर उपलब्ध हैं. फिर भी, अगर ऐसी कोई घटना होती है, तो हमें इसे निर्माताओं के ध्यान में लाना होगा.”
दक्षिण अफ़्रीकी चीता मेटापॉपुलेशन विशेषज्ञ विंसेंट वैन डेर मेरवे ने कहा था कि अत्यधिक गीली स्थिति रेडियो कॉलर के कारण संक्रमण पैदा कर रही है और संभवत, यही चीतों की मौत का कारण है.
मंत्रालय ने कहा कि चीता परियोजना अभी भी प्रगति पर है और “एक साल के भीतर इसकी सफलता या विफलता का आकलन करना जल्दबाजी होगी.”
चीता परियोजना का समर्थन करने के लिए कई कदमों की योजना बनाई गई है, जिसमें बचाव, पुनर्वास, क्षमता निर्माण और व्याख्या की सुविधाओं के साथ चीता अनुसंधान केंद्र की स्थापना भी शामिल है.
मंत्रालय ने कहा कि परिदृश्य-स्तरीय प्रबंधन के लिए अधिक वन क्षेत्रों को केएनपी के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया जाएगा.
इसमें कहा गया है कि अतिरिक्त फ्रंटलाइन स्टाफ तैनात किया जाएगा और एक चीता सुरक्षा बल स्थापित किया जाएगा. मध्य प्रदेश में गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में चीतों के लिए एक दूसरे घर की कल्पना की गई है.
प्रोजेक्ट चीता के तहत, नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से केएनपी में कुल 20 रेडियो-कॉलर वाले जानवरों को आयात किया गया था.
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