scorecardresearch
Friday, 20 December, 2024
होमदेशअफगान के तालिबान शासन ने मुंबई के वाणिज्य दूतावास में की पहले ‘कार्यवाहक वाणिज्यदूत’ की नियुक्ति

अफगान के तालिबान शासन ने मुंबई के वाणिज्य दूतावास में की पहले ‘कार्यवाहक वाणिज्यदूत’ की नियुक्ति

इकरामुद्दीन कामिल ने विदेश मंत्रालय की स्कॉलरशिप पर भारत में सात साल तक पढ़ाई की. अभी तक विदेश मंत्रालय की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. भारत का अफगानिस्तान में तालिबान शासन के साथ कोई आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं है.

Text Size:

नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान ने नई दिल्ली की दक्षिण एशियाई यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र इकरामुद्दीन कामिल को मुंबई स्थित वाणिज्य दूतावास में अपना ‘कार्यवाहक वाणिज्यदूत’ नियुक्त किया है — 2021 में देश पर कब्ज़ा करने के बाद से भारत में उनके शासन की ओर से पहली नियुक्ति है.

शासन के कार्यवाहक उप-विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई ने मंगलवार को एक्स पर एक पोस्ट में यह घोषणा की, जबकि तालिबान समर्थक मीडिया आउटलेट बख्तर न्यूज़ एजेंसी ने बताया कि कामिल पहले से ही मुंबई में हैं और राजनयिक के कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं.

विदेश मंत्रालय (MEA) की ओर से हालांकि, अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि एक “युवा अफगान छात्र, जिनसे MEA परिचित है” और जिन्होंने “MEA की स्कॉलरशिप पर दक्षिण एशिया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी करते हुए सात साल तक भारत में शिक्षा ली है”, मुंबई स्थित वाणिज्य दूतावास में “राजनयिक के रूप में कार्य करने” के लिए सहमत है.

सूत्र ने कहा, “जहां तक ​​उनकी संबद्धता या स्थिति का सवाल है, हमारे लिए वे भारत में अफगानों के लिए काम करने वाले एक अफगान नागरिक हैं. मान्यता के मुद्दे के संबंध में किसी भी सरकार को मान्यता देने के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया है और भारत इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ काम करता रहेगा.”

भारत, कई अन्य देशों की तरह, अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता नहीं देता है और काबुल के साथ उसका कोई आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं है. अगस्त 2021 में लोकतांत्रिक सरकार के पतन के बाद नई दिल्ली ने मध्य एशियाई देश में अपना दूतावास और सभी राजनयिक मिशन बंद कर दिए थे.

हालांकि, जून 2022 में विदेश मंत्रालय ने अफगान लोगों के साथ “ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंध” को ध्यान में रखते हुए मानवीय सहायता की निगरानी और समन्वय के लिए काबुल में एक तकनीकी टीम तैनात की थी.

मुंबई में तालिबान द्वारा कार्यवाहक वाणिज्यदूत की नियुक्ति संयुक्त सचिव (पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान) जेपी सिंह के नेतृत्व में भारत के अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल द्वारा पिछले सप्ताह पहली बार अफगानिस्तान के कार्यवाहक रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब से मुलाकात के बाद हुई है. याकूब तालिबान के पूर्व सर्वोच्च नेता मुल्ला उमर के सबसे बड़े बेटे हैं, जिनकी एक दशक से थोड़ा अधिक समय पहले मृत्यु हो गई थी.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल के अनुसार, 4 और 5 नवंबर को प्रतिनिधिमंडल की यात्रा के दौरान सिंह और याकूब के बीच चर्चा मानवीय सहायता और अफगानिस्तान में व्यवसायों द्वारा ईरान के चाबहार बंदरगाह के उपयोग पर केंद्रित थी.


यह भी पढ़ें: भारत में अफगान कैडेट्स को सरकार की तरफ से मिली थी लाइफलाइन, अब ‘तालिबान’ को सौंपे जाने का सता रहा डर


अफगानों द्वारा ‘काउंसलर सर्विस की ज़रूरत’

अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अशरफ गनी शासन द्वारा नियुक्त लगभग सभी राजनयिक पश्चिमी देशों में शरण लेने के लिए भारत छोड़ चुके हैं. नवंबर 2023 में, नई दिल्ली में अफगानिस्तान के दूतावास ने भारत से समर्थन की कमी के कारण इसके बंद होने की घोषणा की.

हैदराबाद और मुंबई में वाणिज्य दूतावासों में शेष दो अफगान महावाणिज्यदूतों ने उस समय विदेश मंत्रालय से मुलाकात की थी और अपनी भूमिकाओं में काम करना जारी रखा था. हालांकि, मई 2024 में ज़किया वरदाक ने हवाई अड्डे पर सोने की तस्करी की घटना के बाद मुंबई में महावाणिज्यदूत के रूप में अपनी भूमिका से इस्तीफा दे दिया.

उन्हें दुबई से भारत में कथित तौर पर 25 किलोग्राम सोने की तस्करी करते हुए पाया गया था. वरदाक ने अपनी भूमिका से हटने के बाद देश छोड़ दिया, जिससे सैयद मोहम्मद इब्राहिमखैल भारत में एकमात्र कार्यरत राजनयिक बन गए.

एक सरकारी सूत्र ने बताया, “पिछले तीन सालों में भारत में अफगान दूतावास और वाणिज्य दूतावासों में काम करने वाले अफगान राजनयिकों ने विभिन्न पश्चिमी देशों में शरण मांगी है और भारत छोड़ दिया है. एक अकेला पूर्व राजनयिक, जो यहां रह रहा है, किसी तरह अफगान मिशन/वाणिज्य दूतावासों को चला रहा है. हालांकि, तथ्य यह है कि भारत में एक बड़ा अफगान समुदाय रहता है, जिसे वाणिज्य दूतावास सेवाओं की ज़रूरत है. इसलिए भारत में वर्तमान में रह रहे अफगान नागरिकों को प्रभावी ढंग से सेवा प्रदान करने के लिए अधिक कर्मचारियों की ज़रूरत है.”

नए कार्यवाहक वाणिज्यदूत कामिल ने दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय में सात साल पढ़ाई की, जिसमें उन्होंने एलएलएम, एम.फिल और पीएचडी पूरी की. उन्होंने इस साल अगस्त में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: अफ़ग़ानी दूतावास में तालिबानी अधिकारी का वीजा समाप्त, आगे बढ़ाने को लेकर असमंजस में भारत सरकार


 

share & View comments