बेंगलुरु, 21 अप्रैल (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना है कि ‘लॉस ऑफ कंसोर्टियम’ के तहत मुआवजे के लिए न केवल पति या पत्नी, बल्कि मृतक के कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में वयस्क बच्चे भी मुआवजे के हकदार होते हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा कि मुआवजे का यह रूप किसी व्यक्ति की असामयिक मृत्यु के बाद पैदा होने वाले भावनात्मक और पारिवारिक शून्य की भरपाई के लिए होता है।
‘लॉस ऑफ कंर्सोटियम’ (साहचर्य की हानि) का मतलब है दुर्घटना में किसी व्यक्ति के घायल या मृत्यु होने के कारण उसके पति/पत्नी या परिवार के सदस्य को उसके साथ बिताए गए संबंधों, स्नेह, देखभाल, और समर्थन से वंचित होना।
आमतौर पर, जब सड़क दुर्घटना में किसी व्यक्ति को गंभीर चोटें आती हैं या वह मरणासन्न हो जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार के सदस्य, विशेष रूप से पति/पत्नी ‘लॉस ऑफ कंर्सोटियम’ के लिए क्षतिपूर्ति का दावा कर सकते हैं।
मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सी एम जोशी ने कहा कि सड़क दुर्घटना में मारे गए सुभाष नामक व्यक्ति की पत्नी और दो वयस्क बेटे ‘लॉस ऑफ कंर्सोटियम’ श्रेणी के तहत 52-52 हजार रुपये के हकदार हैं, जिससे कुल राशि 1.56 लाख रुपये हो जाती है।
कलबुर्गी निवासी सुभाष की 7 अप्रैल, 2019 को उस समय मौत हो गई थी, जब एक वाहन ने उनकी मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी थी। वह अपने पोते के साथ मंदिर से घर लौट रहे थे।
शुरुआत में, 18 मार्च, 2021 को कलबुर्गी में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने 10.30 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का आदेश दिया था।
सुभाष की पत्नी को आश्रित के रूप में मुआवजा मिला, वहीं उनके दो बेटों के दावों को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं और इसलिए उन्हें आश्रित नहीं माना जा सकता।
न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती देते हुए, परिवार ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और दलील दी कि मुआवजा अपर्याप्त था और निर्णय लेने में सुभाष की 15,000 रुपये की वास्तविक मासिक आय पर सही ढंग से विचार नहीं किया गया था।
न्यायमूर्ति जोशी ने एन जयश्री बनाम चोलामंडलम एमएस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले में उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया, जो पुष्टि करता है कि वाहन दुर्घटना में परिवार के सदस्य की मौत के कारण पीड़ित प्रत्येक कानूनी उत्तराधिकारी को मुआवजा मांगने का अधिकार है। उन्होंने सीमा रानी बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले का भी हवाला दिया, जिसमें विवाहित बेटियों को भी मोटर वाहन अधिनियम के तहत आश्रित के रूप में मान्यता दी गई थी।
भाषा वैभव मनीषा दिलीप
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