रायपुर: छत्तीसगढ़ के पूर्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह 1994 बैच के आईएएस अफसर संबलपुर ओडिशा के रहने वाले हैं. सत्ता के हमेशा करीबी रहने वाले अफसरों में शुमार जीपी सिंह एक टेक्नोक्रैट हैं और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (पूर्व में आरईसी) राउरकेला के पासआउट हैं.
1990 में आरईसी राउरकेला से मैकेनिकल इंजीनियरिंग के डिग्री लेकर सिंह टेल्को में कुछ दिनों तक नौकरी की. 1994 में उनका इंडियन पुलिस सर्विस (IPS) में चयन हो गया और उन्हें छत्तीसगढ़ कैडर मिला.
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भाजपा से लेकर कांग्रेस तक रहे हैं चहेते
चाहे 15 साल तक छत्तीसगढ़ पर शासन करने वाली भाजपा की रमन सिंह सरकार हो या फिर 2018 में बनने वाली कांग्रेस की बघेल सरकार, जीपी सिंह का सिक्का दोनों तरफ पूरी तरह से चलता रहा.
सिंह को भाजपा सरकार ने राज्य के रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, नक्सलवाद प्रभावित बस्तर जैसे बड़े जिलों में एसपी, डीआईजी और आईजी जैसे महत्वपूर्ण पदों से नवाजा तो वर्तमान भूपेश बघेल सरकार ने सत्ता संभालने के बाद फरवरी 2019 में राज्य पुलिस विभाग के महत्वपूर्ण विंग एन्टी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) का मुखिया बनाया.
राज्य के प्रशासनिक महकमे में ऐसा माना जाता है कि एसीबी का मुखिया मुख्यमंत्री के पसंदीदा अफसर को बनाया जाता है.
जीपी सिंह के एसीबी चीफ रहते हुए बघेल सरकार ने राज्य के पूर्व (भाजपा सरकार में) डीजीपी मुकेश गुप्ता के विरुद्ध नान घोटाला में एफआईआर दर्ज किया.
जीपी सिंह के कार्यकाल में ही पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के प्रमुख सचिव रहे अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में भी एफआईआर दर्ज की गई.
दोनों मामले अभी न्यायालय में लंबित हैं. गुप्ता का प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है और अमन सिंह को उच्च न्यायालय से राहत मिली हुई है.
सिंह के एसीबी प्रमुख रहते हुए पूर्व मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के खिलाफ एफआईआर तो हुई लेकिन इससे आगे सरकार कुछ नही कर पाई.
इसके बाद राज्य सरकार ने सिंह को अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एसीबी से हटाकर उनका स्थानांतरण राज्य पुलिस अकादमी के निदेशक के रूप में कर दिया. राज्य के प्रशासनिक महकमे में माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उनके एक मंत्री और कुछ अधिकारियों द्वारा सिंह के खिलाफ शिकायत करने पर उन्हें एसीबी से हटाया था.
करीब 15 महीनों तक एसीबी चीफ रहने के दौरान सिंह के खिलाफ मिली अवैध वसूली और करोड़ों की संपत्ति इकट्ठा करने की शिकायतों पर एसीबी ने खुफिया जांच जून में शुरू की. जांच में शिकायतों को सही पाए जाने पर एसीबी एवं राज्य के आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (ईओडब्लू) ने एक जुलाई को तड़के जीपी सिंह के रायपुर स्थित सरकारी निवास सहित, राजनांदगांव, भिलाई और ओडिशा में उनसे जुड़े करीब 15 ठिकानों पर छापा मारा.
करीब 68 घंटों तक लगातार खोजबीन के बाद एसीबी ने बताया कि उनके खिलाफ बेहिसाब बेनामी संपत्ति, अवैध लेन देन सबंधित कागजात, कई बैंक एकाउंट, अवैध जेवरात, ओडिशा के खदानों में निवेश और मनी लांड्रिंग के सबूत मिले.
एसीबी के अनुसार सिंह के ठिकानों से करीब 10 करोड़ की अनुपातहीन संपत्ति के साथ साथ सरकार के खिलाफ साजिशों से जुड़े दस्तावेज भी पाए गए हैं.
छापे में पाए गए दस्तावेजों के आधार पर एडीजीपी सिंह के खिलाफ रायपुर पुलिस ने 3 जुलाई को उनके एफआईआर दर्ज किया और सरकार ने 5 जुलाई को उन्हें निलंबित कर दिया.
निलंबन के बाद सरकार ने 8 जुलाई को देर रात सिंह के विरुद्ध देशद्रोह का भी मुकदमा दायर कर दिया.
बता दें कि रायपुर पुलिस ने 8 जुलाई को देर रात सिंह के खिलाफ धारा 124 और धारा 153 के तहत मुकदमा दर्ज किया है. धारा 124 के तहत लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र और 153 के अंतर्गत ऐसी गतिविधियां जिनसे समाज में वेमनस्ता फैले के मामले आते हैं.
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सिंह ने कहा -‘उन्हें फंसाया जा रहा है’
अपने ठिकानों पर एसीबी और ईओडब्लू की कार्यवाही से लेकर निलंबन तक चुप रहने के बाद शुक्रवार को पहली बार सिंह ने अपने खिलाफ की गई कार्यवाही पर सीबीआई जांच की मांग की.
बिलासपुर हाई कोर्ट में एक रिट दायर कर सिंह ने कहा, ‘उनके खिलाफ एसीबी और रायपुर सिटी कोतवाली में जो केस दर्ज किए गए हैं उनकी जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा कराया जाए.’
एडीजी ने अपने रिट पिटीशन में कहा है कि’ उन्हें कुछ अधिकारियों ने ट्रैप कराया है.’
गौरतलब कि सिंह ने पिटीशन में अपने खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की वकालत नहीं की है बल्कि उसकी जांच सीबीआई या स्वतंत्र एजेंसी द्वारा कराने की मांग की है.
सिंह ने अपनी याचिका में कहा है, ‘जिन कागजों और डायरी के आधार पर उनके खिलाफ अपराध दर्ज किया गया है वह सालों पुराने हैं और कचरों और नाली में फेंके हुए थे.’ याचिका में एडीजी ने यह भी कहा है कि ‘छापा मारने वाले ये कागजात खुद ढूंढकर लाए थे और जब्ती उनके सामने नही की गई है.’
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