नई दिल्ली: प्रीति गुप्ता पिछले पांच सालों से दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु कॉलेज में गणित पढ़ा रही थीं. लेकिन उनकी इतनी सालों की सर्विस भी उन्हें स्थाई शिक्षक बनने के काबिल नहीं बना पाई. दर्जनों अन्य एड हॉक या गेस्ट टीचर्स की तरह वह ‘स्थायी’ शिक्षकों को नियुक्त करने के लिए डीयू के चल रहे इंटरव्यू में सफल नहीं हो पाईं और फिलहाल बेरोजगार हैं.
40 साल की गुप्ता ने कहा, ‘कुल मिलाकर मैंने डीयू में एड हॉक प्रोफेसर के तौर पर 12 साल तक पढ़ाया है. मुझे हर साल टीचिंग पोजीशन के लिए फिट समझा गया और फिर अचानक एक दिन मैं अनफिट हो गई? इस विचारहीन कदम ने न केवल मेरे निजी जीवन और कमाई को खतरे में डाला है, बल्कि एक टीचर के रूप में मेरी प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाया है.’
उन्होंने आगे कहा, “अब मैं जहां भी आवेदन करती हूं, हर कॉलेज एक ही सवाल करता है, ‘आपको क्यों हटाया गया?” लेकिन गुप्ता अपने इस दुख में अकेली नहीं हैं.
शिक्षकों ने दावा किया कि सितंबर में भर्ती शुरू होने के बाद से हंसराज, लक्ष्मीबाई, दौलत राम, देशबंधु और रामजस जैसे डीयू कॉलेजों से 50 से ज्यादा एडहॉक प्रोफेसरों को हटा दिया गया है. अभी इस लाइन में और भी टीचर्स के खड़े हो जाने की संभावना है. इनमें से कई टीचर्स ने दिप्रिंट के साथ अपनी परेशानी साझा की. उन्होंने कहा कि वे काफी दुखी महसूस कर रहे हैं क्योंकि कॉलेज को इतने साल देने के बाद आज वह जीरो हो गए हैं. इनमें से कितने शिक्षक तो एक दशक से ज्यादा लंबे समय से पढ़ा रहे थे.
कई लोग नाराज भी हैं और आरोप लगा रहे हैं कि चयन प्रक्रिया अनुचित, अपारदर्शी और राजनीतिक कारकों से प्रभावित है. उन्होंने मांग की कि कॉलेजों के स्थायी संकायों में नियुक्ति के लिए उनकी सालों की सर्विस पर कुछ विचार किया जाना चाहिए.
पिछले शनिवार, कुछ छात्रों के समर्थन में कई प्रोफेसरों ने रामजस कॉलेज में चयन समिति की बैठक के दौरान आंदोलन किया और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रधानाध्यापक संघ ने भर्ती अभियान के दौरान सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंता जाहिर की.
एड हॉक टीचर्स की चिंताओं के बारे में पूछे जाने पर डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने कहा कि चल रही प्रक्रिया ‘निष्पक्ष’ और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मानदंडों के अनुसार है.
यूजीसी रेगुलेशन, 2018 में अस्थायी या एड हॉक टीचर्स की सेवाओं को उनकी कार्यकाल के आधार पर नियमित करने का कोई प्रावधान नहीं है.
रजिस्ट्रार ने कहा, ‘ एड हॉक की नियुक्ति को स्थायी बनाने का कोई प्रावधान नहीं है. अगर हम इस पर विचार भी करे, तो यह डीयू के नियमों का उल्लंघन होगा.’
केंद्रीय विश्वविद्यालयों, खासकर डीयू में कर्मचारियों की कमी एक पुरानी समस्या है.
जुलाई में केंद्र सरकार ने संसद को बताया था कि डीयू फैकल्टी में 900 पद खाली हैं. खाली पदों की यह संख्या बाकी सभी सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में सबसे ज्यादा है. शिक्षा मंत्रालय के लोकसभा में दिए गए एक अन्य जवाब से पता चलता है कि किसी भी अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय की तुलना में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले शिक्षकों की संख्या डीयू में सबसे ज्यादा (1,044) है.
शिक्षा मंत्रालय ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को सितंबर 2021 से शुरू किए गए ‘मिशन मोड’ के तहत एक साल के भीतर अपनी रिक्तियों को भरने का निर्देश दिया था.
खासकर डीयू के पास करने के लिए बहुत कुछ है क्योंकि यहां 2010 के बाद से बहुत कम नई नियुक्तियां हुई हैं. पहले शिक्षक चयन मानदंड निर्धारित नहीं किए जाने के कारण और फिर कई अन्य वजहों के चलते शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की जा सकी. मसलन 2020 में महामारी और इससे पहले 2018 में शिक्षण पदों में आरक्षण के लिए एक नए फॉर्मूले पर काम करने के यूजीसी के निर्देश पर विवाद.
बड़े पैमाने पर फैकल्टी की कमी के बावजूद डीयू कॉलेजों में कक्षाएं निरंतर चलती रहीं तो इसकी एकमात्र वजह एडहॉक शिक्षक ही रहे. उन्होंने इसमें काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लेकिन आज इनमें से कई शिक्षक शिकायत कर रहे हैं कि बदले में उनके साथ अनुचित और प्रतिकूल व्यवहार किया गया है.
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पूरी तरह से योग्य, लेकिन कोई लाभ या सुरक्षा नहीं
डीयू में काम करने वाले सभी एडहॉक टीचर्स के पास कॉलेज के प्रोफेसर बनने के लिए जरूरी शैक्षणिक योग्यता है और उन्होंने यूजीसी की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) को पास भी किया है.
एडहॉक प्रोफेसर्स की नियुक्ति ज्यादा सा ज्यादा चार महीने के लिए की जाती है और अगर जरूरी हुआ तो उनके कार्यकाल को आगे बढ़ा दिया जाता है – जो कि आम तौर पर होता है. उन्हें बाकी शिक्षकों की तरह हफ्ते में एक दिन की छुट्टी भी मिलती है.
उन्हें स्थायी शिक्षकों के बराबर शुरुआती वेतन दिया जाता है (जिन टीचर्स ने दिप्रिंट से बात की उन्होंने बताया कि यह वेतन 80 हजार से लेकर एक लाख रुपये तक है). लेकिन उन्हें कोई इंक्रीमेंट नहीं मिलता और न ही पीपीएफ या स्वास्थ्य बीमा जैसा कोई लाभ मिलता है.
पिछले कई सालों से अपने-अपने कॉलेजों में पढ़ा रहे कई एडहॉक प्रोफेसर, स्थायी संकाय में शामिल होने के लिए कुछ समय से जोर दे रहे हैं. कई प्रोफेसरों ने कहा कि मौजूदा भर्ती अभियान चेहरे पर तमाचा मारने जैसा है. उन्होंने दावा किया कि बड़े पैमाने पर एडहॉक प्रोफेसरों को हटाने का काम चल रहा है, हालांकि कॉलेजों ने प्रतिक्रिया के डर से सटीक संख्या को गुप्त रखा हुआ है.
डीयू की एकेडमिक काउंसिल के सदस्य और हंसराज कॉलेज में प्रोफेसर मिथुनराज धूसिया ने बताया, ‘हम एडहॉक और अस्थायी टीचर्स को परमानेंट किए जाने की मांग कर रहे हैं. वो इतने सालों से मेधावी छात्रों को पढ़ा रहे हैं. किसी भी परिस्थिति में उन्हें हटाया नहीं जाना चाहिए.’
उन्होंने कहा, सच तो यह है कि इन शिक्षकों को ‘10 सालों तक एक अस्थायी स्थिति में पढ़ाने के लिए मजबूर किया गया है. ये स्थिति एक प्रणालीगत विफलता को दर्शाती है.’
उन्होंने कहा, ‘चूंकि ये शिक्षक विश्वविद्यालय की बेसिक शिक्षण जरूरतों को पूरा करते हैं, इसलिए इन्हें नए उम्मीदवारों की तुलना में पहले साक्षात्कार का मौका दिया जाना चाहिए.’
नौकरी से ‘हटाए गए’ कई एडहॉक शिक्षकों के लिए यह स्थिति काफी अपमानजनक है और भविष्य भी अधर में लटक गया है.
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एक दशक से अधिक समय से अध्यापन कर रहे एक एडहॉक प्रोफेसर ने कहा, ‘ अब हमें नौकरियों के लिए प्राइवेट यूनिवर्सिटीज की ओर रुख करना पड़ सकता है.’ उन्होंने नाम बताने से इंकार कर दिया.
एक अन्य एडहॉक प्रोफेसर ने भी नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हम ऐसी अनिश्चित स्थिति में हैं कि अपनी चिंताओं को भी खुलकर सामने नहीं ला सकते. हम अभी भी अन्य कॉलेजों में खाली पड़े पदों के लिए आवेदन कर रहे हैं. अगर एक कॉलेज हमें स्थायी फैकल्टी के रूप में नहीं चाहता है, तो हमारे पास दूसरे कॉलेजों में अपनी किस्मत आजमाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.’
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‘राजनीति’ और ‘भाई-भतीजावाद’ के आरोप
दिप्रिंट के साथ बातचीत करते हुए कई एडहॉक प्रोफेसरों ने आरोप लगाया कि भर्ती प्रक्रिया अनुचित तरीके से की जा रही है. एडहॉक शिक्षकों को अन्य विश्वविद्यालयों के ‘बाहरी लोगों’ के पक्ष में भाई-भतीजावाद से लेकर उनके राजनीतिक पहुंच तक के कारणों से अलग रखा जा रहा है.
कुछ प्रोफेसरों ने आरोप लगाया कि ज्यादा से ज्यादा ‘दक्षिणपंथी’ संकाय सदस्यों को जानबूझकर इलाहाबाद और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों से लाया जा रहा है. दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की पूर्व सदस्य प्रोफेसर आभा देव ने दावा किया कि ऐसा यूनिवर्सिटी की ‘दिशा और विचार प्रक्रिया’ को बदलने के लिए किया जा रहा है.
पिछले साल , खासकर योगेश सिंह की डीयू के कुलपति के रूप में नियुक्ति पर इस बारे में कुछ चर्चा हुई थी. क्योंकि उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शिक्षक विंग भारतीय शिक्षण मंडल के साथ घनिष्ठ संबंध माना जाता है.
इस बीच कुछ शिक्षकों का आरोप है कि इससे भी बड़ी समस्या भाई-भतीजावाद की है.
मिसाल के तौर पर प्रीति गुप्ता ने दावा किया कि उनकी जगह दूसरे कॉलेज के प्रिंसिपल के बेटे ने ले ली है. अन्य एडहॉक प्रोफेसरों ने बताया कि किसी उम्मीदवार की नियुक्ति उसके ट्रैक रिकॉर्ड के बजाय इस आधार पर निर्भर करती हैं कि उच्च पदस्थ डीयू संकाय सदस्यों से उसे एक शानदार सिफारिश मिल सकती है या नहीं.
प्रोफेसरों ने यह भी दावा किया है कि हंसराज कॉलेज में हो रहे इंटरव्यू के दौरान उन्हें थीसिस, घड़ियां और मोबाइल फोन जैसी किसी भी चीज को अंदर अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं थी. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि साक्षात्कार के दौरान कुछ उम्मीदवारों को दूसरों की तुलना में कम समय दिया गया.
इन आरोपों पर डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने कहा, ‘मेरी जानकारी के मुताबिक चयन प्रक्रिया में कोई पक्षपात नहीं किया गया है. दूसरे कॉलेजों के कई प्रोफेसर डीयू में नियुक्त किए गए हैं और हमारे विभागों के कई प्रोफेसर अलग-अलग कॉलेजों में चले गए हैं.’
इस शुक्रवार को जब दिप्रिंट ने रामजस कॉलेज का दौरा किया, तो एडहॉक टीचर्स का एक समूह भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक छोटा सा विरोध कर रहा था. वे एक अन्य कारण से भी परेशान थे- लखनऊ के बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमल जायसवाल की जूलॉजी विभाग में शिक्षकों के लिए विशेषज्ञ साक्षात्कारकर्ता के रूप में नियुक्ति. 2016 में उन पर जातिवादी टिप्पणी करने और छात्रों को परेशान करने का आरोप लगाया गया था.
इस बारे में पूछे जाने पर विकास गुप्ता ने कहा कि जायसवाल को इंटरव्यूअर के तौर पर रखने में कोई बुराई नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हमें यूजीसी द्वारा पैनल विशेषज्ञों की एक सूची दी गई है. हम जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रोफेसरों का चयन करते हैं.’
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