नयी दिल्ली, आठ मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक महिला की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने अपने अलग हुए पति और ससुराल वालों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के आदेश को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने महिला के ‘अस्पष्ट बयानों’ को छोड़कर किसी भी शारीरिक हिंसा का कोई विशेष आरोप नहीं पाया। महिला की शादी बिहार के एक पूर्व राज्यपाल के परिवार में हुई थी।
शीर्ष अदालत को महिला के आरोपों को पुष्ट करने वाला कोई सबूत नहीं मिला।
अदालत ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता ने विपरीत रुख अपनाया था और मजिस्ट्रेट के समक्ष दी गई शिकायत और बयान में विसंगतियां हैं, जो हमें यह निष्कर्ष निकालने के लिए प्रेरित करती हैं कि कार्यवाही अदालत की प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग है, जैसा कि उच्च न्यायालय ने माना है।’’
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी, क्योंकि अलग रह रहे पति और उसके माता-पिता ने अधीनस्थ अदालत के समन के खिलाफ अदालत का रुख किया था।
महिला का मामला भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (घरेलू हिंसा), 325 (जान-बूझकर गंभीर चोट पहुंचाना) और 506 (आपराधिक धमकी) तथा दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा-तीन एवं चार के तहत दर्ज किया गया था।
महिला की शादी 11 दिसंबर 2019 को हुई थी।
भाषा संतोष सुरेश
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