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Saturday, 1 November, 2025
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आप, शिअद और कांग्रेस ने पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट, सिंडिकेट के ‘पुनर्गठन’ पर केंद्र की निंदा की

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चंडीगढ़, एक नवंबर (भाषा) पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) और विपक्षी पार्टी-शिरोमणि अकाली दल (शिअद) तथा कांग्रेस ने पंजाब विश्वविद्यालय के संचालन निकायों-सीनेट और सिंडिकेट-के ‘पुनर्गठन’ को लेकर शनिवार को केंद्र पर निशाना साधा। अकाली दल ने इस फैसले को ‘तुगलकी फरमान’ करार दिया।

केंद्र ने 28 अक्टूबर की अधिसूचना जारी कर पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट और सिंडिकेट का पुनर्गठन किया था। उसने पंजाब विश्वविद्यालय अधिनियम, 1947 में संशोधन कर ऐसा किया। यह संशोधन तत्काल प्रभाव से लागू हो गया।

‘आप’ के वरिष्ठ नेता और पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत सरकार के ‘पंजाब विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन करने के कदम को संघवाद और क्षेत्रीय पहचान पर हमला’ बताया।

चीमा ने आरोप लगाया, ‘‘राज्य की भूमिका में कटौती करके, निर्वाचित सदस्यों की जगह केंद्र से मनोनीत सदस्यों को रखकर और अधिकार का हस्तांतरण करके अद्वितीय राज्य-केंद्र संयुक्त चरित्र को कमजोर करना सत्ता हथियाने का बेशर्म प्रयास है, जिससे स्वायत्तता पंगु हो रही है।’’

शिअद नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने दावा किया कि इस कदम से पंजाब विश्वविद्यालय के सिंडिकेट और सीनेट केंद्र सरकार के ‘रबर स्टैंप’ बन जाएंगे, क्योंकि सिंडिकेट के चुनाव समाप्त हो जाएंगे और इसे पूरी तरह से मनोनीत सदन बना दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा सीनेट को मनोनीत और पदेन सदस्यों से भर दिया जाएगा, जिससे इस विशिष्ट संस्थान पर पंजाब का नियंत्रण समाप्त हो जाएगा।

बठिंडा से सांसद हरसिमरत ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में यह भी कहा कि वह केंद्र के “तुगलकी फरमान” की निंदा करती हैं।

‘आप’ नेता और पंजाब के शिक्षा मंत्री हरजोत सिंह बैंस ने भी केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘यह पंजाब के गौरव, लोकतंत्र और प्रतिभा पर खुला हमला है। पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट और सिंडिकेट को भंग करने का भाजपा नीत केंद्र सरकार का कदम सुधार नहीं, बल्कि राजनीतिक बर्बरता है।’’

कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि भाजपा सरकार ने ‘‘अब लोकतंत्र पर अपने हमले का रुख हमारे युवाओं की जड़ों की ओर मोड़ दिया है।’’

पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता बाजवा ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘पंजाब विश्वविद्यालय की 59 साल पुरानी निर्वाचित सीनेट और सिंडिकेट को भंग करके नरेन्द्र मोदी सरकार ने शिक्षकों, विद्यार्थियों और विद्वानों – जो हमारे देश के भविष्य के सच्चे निर्माता हैं – की आवाज को दबा दिया है।’’

शिअद प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि वह पंजाबियों के शैक्षणिक और बौद्धिक जीवन के सबसे मजबूत प्रतीक पंजाब विश्वविद्यालय के सिंडिकेट और सीनेट को भंग करने के केंद्र के फैसले की कड़ी निंदा करते हैं।

उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘मैं केंद्र-शासित प्रदेश के नौकरशाहों को विश्वविद्यालय सीनेट में मनोनीत किए जाने से स्तब्ध हूं। मैं मौजूदा स्नातक निर्वाचन क्षेत्र को अचानक समाप्त करके उसकी जगह तानाशाही नौकरशाही नियंत्रण स्थापित करने की भी कड़ी निंदा करता हूं।’’

‘नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन’ ने शनिवार को पंजाब विश्वविद्यालय के 59 साल पुराने निकाय सीनेट (और सिंडिकेट) को भंग करने के केंद्र के कदम की निंदा की तथा इसे पंजाब एवं उसके प्रवासियों के अधिकारों और स्वायत्तता पर एक स्पष्ट हमला बताया।

नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन (एनएपीए) के कार्यकारी निदेशक सतनाम सिंह चहल ने कहा, ‘‘पंजाब दिवस के मौके पर लिया गया यह फैसला न केवल इस दिन के ऐतिहासिक महत्व के प्रति असंवेदनशीलता है, बल्कि भारत के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक के लोकतांत्रिक शासन पर सीधा हमला भी है।’’

उन्होंने कहा,‘‘दुनिया भर में पंजाबी प्रवासियों में गुस्सा और आक्रोश वास्तविक है तथा यह लगातार बढ़ रहा है। पंजाब की आवाज को दबाया जा रहा है।’’

भाषा राजकुमार पारुल

पारुल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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