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Wednesday, 25 December, 2024
होमदेशमारपीट, थूक और क्वारंटाइन से भाग रहे लोगों से निपट रहीं हैं कोरोना से जारी लड़ाई की ये आखिरी योद्धा

मारपीट, थूक और क्वारंटाइन से भाग रहे लोगों से निपट रहीं हैं कोरोना से जारी लड़ाई की ये आखिरी योद्धा

डॉक्टरो, नर्सों व मेडिकल स्टाफ के अलावा आंगनवाड़ी व आशा वर्करों का ये टास्कफोर्स भी भारत की कोरोना से लड़ाई में एक अहम रोल निभा रहा है. देश के आखिरी कोने तक राशन पहुंचाने जैसा अहम रोल निभाने वाली ये महिलाएं किसी योद्धा से कम नहीं हैं.

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नई दिल्ली: कोरोना महामारी के मद्देनजर डोर टू डोर सर्वे की जिम्मेदारी आंगनवाड़ी हेल्पर्स, आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स पर आ गई है. राजस्थान के कोटा जिले की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भारती चौधरी बताती हैं, ‘बाहर से आए जिन लोगों को घरों में क्वारंटाइन किया गया है, उसकी रिपोर्ट तैयार करती हैं. झुग्गी-झोपड़ियों में जाकर सैनिटाइजेशन और मास्क के बारे में जागरूक करना, बच्चों को कुपोषण से बचाने और प्रेग्नेंट औरतों को लिए राशन पहुंचाने का काम भी हमारे ऊपर ही है.’

डॉक्टरो, नर्सों व मेडिकल स्टाफ के अलावा आंगनवाड़ी व आशा वर्करों का ये टास्कफोर्स भी भारत की कोरोना से लड़ाई में एक अहम रोल निभा रहा है. देश के सबसे आखिरी कोने तक राशन पहुंचाने जैसा अहम रोल निभाने वाली ये महिलाएं किसी योद्धा की तरह इस वक्त काम कर रही हैं. देश में आंगनवाड़ी वर्कर्स की संख्या 13,99,697 है तो आंगनवाड़ी हेल्पर्स की संख्या 12,82,847 है. हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने लॉकडाउन के दौरान प्रेग्नेंट महिलाओं की सुरक्षा के लिए देश की 2 लाख आंगनवाड़ी वर्कर्स को ऑनलाइन सेशन भी दिए हैं.


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लेकिन इस बीच आशा वर्करों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ बदसुलूकी की घटनाएं भी सामने आ रही हैं. हाल ही में कर्नाटक के बेंगुलरू में आशा वर्कर्स के साथ उस वक्त हैक्लिंग (हाथा-पाई) हुई जब वो खांसी और बुखार का डाटा इकट्ठा करने गई थीं. हालांकि बाद में पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया. पंजाब से भी मास्क व दस्तानों की कमी की खबरें सामने आ रही हैं.

असम से राखी बौरामन द्वारा भेजी गई फील्ड की तस्वीर.

दिप्रिंट ने देश के अन्य राज्यों की आंगनवाड़ी वर्कर्स से बात कर उनकी समस्याओं और अनुभव को जानने की कोशिश की. असम की राजधानी गुवाहटी से करीब 450 किलोमीटर दूर बसे तिनसुकिया जिले की 42 वर्षीय पुटुला सुबह दस बजे काम पर निकलती हैं और शाम के सात बजे घर लौटती हैं.

वो दिप्रिंट को टेलिफोन पर हुई बात-चीत में बताती हैं, ‘मैंने घर-घर जाकर सर्वे तो कर लिया है. लोगों को साबुन से हाथ धोने के सही तरीके भी सिखाए हैं. राशन भी पहुंचा दिया है समय से. लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत बाहर से वापस लौटे लोग पैदा कर रहे हैं. वो क्वारंटाइन से भाग जाते हैं. उन्हें पकड़ कर लाना पड़ता है. फिर समझाना पड़ता है. रोज रिपोर्ट तैयार करके सुपरवारइजर को भेजनी होती है.’,

पुटुला की सुपरवाइजर राखी बौरमान हैं. वो कहती हैं, ‘सच में, क्वारंटाइन में रखे गए जब लोग भाग जाते हैं तो हमें बड़ी परेशानी होती है. कई बार मास्क की भी कमी पड़ती है लेकिन हमने अपने गमछों के मास्क बना लिए हैं. जिनके पास नहीं हैं उनको भी भिजवा रहे हैं.’ असम में कोरोना के मरीज केरल, मध्यप्रदेश या राजस्थान जैसे राज्यों की तुलना में बेहद कम हैं लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी बाहर से लौटे क्वारंटाइन में रखे गए लोगों पर नजर बनाए रखना है.

राजस्थान के कोटा जिले की 30 वर्षीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भारती चौधरी के लिए चैलेंजेज थोड़े ज्यादा है. वो बताती हैं,’ तीन दिन पहले ही एक मोहल्ले में जब सैंपल इकट्ठा करने गए तो हम पर हमला कर दिया. हमारे कागजात छीनने की कोशिश की. हमारी एक ओर टीम पर थूक भी दिया. बाद में पुलिस को बुलाना पड़ा. प्रशासन को जब इस तरह की शिकायत करते हैं तो वो कहते हैं कि उन गलियों में मत जाओ. ज्यादातर लोग कॉपरेट करते हैं लेकिन कुछ इलाकों में परेशानी हो रही है. हमें भी अपने परिवारों के लिए डर लगता है.’

इन मामलों को लेकर आंगनवाड़ी वर्कर्स एसोसिएशन की प्रदेशाध्यक्ष पूजा राठौर का कहना है, ‘मैंने मांग उठाई है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का भी इन्शयोरेंस किया जाए. ये लोग भी लोगों के डायरेक्ट कॉन्टेक्ट में आती हैं. प्रशासन भी मदद करने की बजाय कन्नी काटने में लगा रहा है. कईयो के मुझे फोन आते हैं कि बदतमीजी होती है, हम नहीं जाएंगी. जिसके पास मास्क है वो मास्क लगा लेती है नहीं तो चुन्नी बांधकर ही काम चल रहा है.’

राजस्थान के कोटा से पूजा राठौर द्वारा भेजी गई तस्वीरें.

भारती, ग्रेजुएट हैं और 9 साल से आंगनवाड़ी सेविका का काम कर ही हैं. उनकी तरह ही मध्यप्रदेश के इंदौर की नीरू फेलिक्स सोलोमन भी पढ़ी लिखी हैं. 55 साल की नीरू ने इकोनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है और 2006 से ही आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रही हैं.

गौरतलब है कि इंदौर से ही डॉक्टरों व मेडिकल स्टाफ पर पत्थर फेंकने के वीडियोज सामने आए थे. इस बात को साफ करते हुए नीरू बताती हैं, ‘कई जगहों पर दिक्कतें आई हैं. लोगों की लगता है कि हम एनआरसी या सीएए के लिए जानकारी इकट्ठा करने आए हैं. मैं हिंदू क्षेत्रों में भी जाती हूं और मुस्लिम क्षेत्रों में भी. बहुत बार लोग अपने परिवार में से किसी के बीमार होने या बाहर से आने की जानकारी छुपाते हैं तो विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है लेकिन बहुत बार ठीक से समझाने पर मान जाते हैं. मेरे साथ एक एचएनएम भी होती है, बीमार मिलने पर हम दवाई भी बांटते हैं.’


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नीरू और भारती, दोनों ने बताया कि सीएए-एनआरसी की वजह से भी लोग अपने जानकारी देने में हिचक रहे हैं. जानकारी में फैमिली के हेड के बारे में पूछा जाता है, मेंबर्स, बाहर से आए व्यक्ति का खुलासा, बीमारियों की जानकारी इत्यादि.

आंगनवाड़ी कार्यकर्तओं के साथ हो रही इन घटनाओं व आंगनवाड़ी वर्कर्स एसोसिएशन की बीमा जैसी मांगों को लेकर हमने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से सवाल पूछे हैं कि क्या सरकार इन रिपोर्ट्स का संज्ञान ले रही है. जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.