नई दिल्ली : ‘कौन कहता है आसमान में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो’ दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां 16 वर्षीय रियाज़ के मामले में बिलकुल सटीक बैठती हैं. रियाज़ दिल्ली के सर्वोदय बाल विद्यालय में पढ़ रहा वो लड़का है जिसे आज भारत के राष्ट्रपति ने एक रेसिंग साइकिल भेंट में दी है.
अब पूछने वाली बात है कि रियाज़ न ऐसा क्या किया. दरअसल बिहार के मधुबनी जिले का रहने वाला रियाज़ आर्थिक तौर पर बहुत ही कमज़ोर परिवार से संबंध रखता है. लेकिन प्रतिभा पैसे की मोहताज नहीं होती. रियाज़ की प्रतिभा है कि वो बेहतरीन साइकिलिस्ट है और कई रेस जीत चूका है. रियाज़ के पिता ढाबे पर खाना बनाने का काम करते हैं और मां उसके बाकी चार भाई-बहनों के साथ अपने पुश्तैनी गांव में रहती है. रियाज़ खुद भी गाज़ियाबाद में एक जगह पर बर्तन धोने का काम करते हैं. पर ये सभी परिस्थितियां भी उसके हौसलों को कम नहीं कर पायी. ढाबे पर काम करने के अलावा वो बाकी समय में साइकिलिंग की ट्रेनिंग लेते हैं और स्कूल जाते हैं.
एक हिंदी अखबार द्वारा छापी गयी इसी कहानी को पढ़ कर महामहिम राष्ट्रपति प्रभावित हुए और उसकी मदद करने का फैसला किया. इसी के तहत आज रियाज़ को राष्ट्रपति भवन में बुला कर एक साइकिल भेंट दी गई.
पहली ही रेस में गया था डर, फिर हासिल की जीत
इस होनहार खिलाड़ी ने 2016 में दिल्ली के सर्वोदय बाल विद्यालय में छठीं कक्षा में दाखिला लिया. उसे खेल कूद में पहले से ही रूचि थी पर इस स्कूल में आकर उसे इस रूचि को आगे बढ़ने का एक मंच मिला. दिप्रिंट से हुई बातचीत में रियाज़ ने बताया कि उन्होंने पहली बार साइकिल गुवाहाटी में हुई एक रेस में ही देखी थी जहां उन्हें जाने का मौका अचानक ही मिल गया था. रियाज़ ने बताया, ‘मैं दौड़ता था, 400 मीटर और लॉन्ग जम्प में मैडल भी लेकर आता था, पर कभी साइकिलिंग नहीं की थी. जब गुवाहाटी की उस रेस के दौरान कुछ कारणवश प्रतिभागी कम पड़े तो कोच अजय आर्य ने उस से पूछा कि क्या वो साइकिलिंग के लिए चलना पसंद करेगा. रियाज़ ने हामी भर दी.
हालांकि न उसके पास अपनी साइकिल थी और न ही उसने कभी कोई ट्रेनिंग ली थी. यहां तक कि रेस भी उसने किसी दूसरे की साइकिल से लगायी. इस के बावजूद वो उस रेस में पांचवे नंबर पर आया.
‘पहले तो मैं 50- 60 लोगों को देख कर डर गया था. पर सर ने मेरा हौंसला बढाया और मैं पहली ही रेस में पांचवे नंबर पर आया.’
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इसके बाद कोच अजय आर्य और प्रमोद शर्मा ने उसे साइकिलिंग जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया.
साधारण साइकिल पर प्रैक्टिस, अपने पैसे खुद कमाता
रियाज़ ने बताया की उसके बाद से उसने राष्ट्रीय स्तर की अन्य प्रतियोगिताएं में भी भाग लिया. पर उसके पास अभी भी अपनी साइकिल नहीं थी. हालांकि, इस बात से भी उसकी ट्रेनिंग और लगन में कोई फर्क नहीं पड़ा. रियाज़ ने बताया की वो अपने घर से एक भी पैसा नहीं लेता है. फिलहाल वह गाज़ियाबाद में एक किराये के मकान में 2500 रुपये भाड़े पर रहा रहा है और उसके पैसे भी वो खुद कमा कर देता है. ‘घर वाले मुझे बोलते थे की कुछ काम सीख. कब तक ऐसे साइकिल चलाता रहेगा, फिर मैंने डेंटिंग पेंटिंग का काम सीखा. ऐसी रिपेयर का भी काम किया. मैं कुछ न कुछ करता रहता हूं अपने गुज़ारा चलाने के लिए.’
लॉकडाउन के दौरान जब उसके पिता वापिस बिहार चले गए तो वे रियाज़ को भी साथ लेकर जाना चाहते थे. पर उसने मना कर दिया क्योंकि उसकी ट्रेनिंग इस से प्रभावित होती.
रियाज़ के कोच अजय आर्य ने भी दिप्रिंट को बताया कि यह लड़का बहुत संघर्षशील है. ‘हमने देखा है की वो कई बार रात 12 बजे तक भी दूकान पर काम करता है और फिर सुबह 4 बजे ट्रेनिंग के लिए उठा जाता है.’
फिलहाल वो दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में ट्रेनिंग कर रहा है.
रियाज़ ने बताया, ‘अपनी नयी साइकिल मिलने से रियाज़ बहुत खुश है. ईद से एक दिन पहले उसे ईदी मिल गयी है. कोई भी रेस वाली साइकिल 50,000 से कम में नहीं आती है. अच्छी से अच्छी साइकिल दो-ढाई लाख तक की मिलती है. मैंने सपने में भी नहीं सोचा था मुझे राष्ट्रपति जी से साइकिल मिलेगी.’
रियाज़ के माता पिता का इस पर क्या कहना है, यह पूछने पर उसने बताया की उसकी उनसे अभी तक बात नहीं हुई है.
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