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Friday, 27 December, 2024
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भारतीय कैदियों के जीवन की दशा-दिशा को सार्वजनिक विर्मश में लाने वाली एक नयी पुस्तक

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नयी दिल्ली, 19 जनवरी (भाषा) भारतीय कैदियों का जीवन और उनकी स्वतंत्रताओं को एक पुस्तक ने सार्वजनिक विमर्श के केंद्र में लाने का प्रयास किया है। ‘‘ होप बिहाइंड बार्स-नोट्स फ्रॉम इंडियन प्रिजंस ’’ शीर्षक यह पुस्तक कारावास के जटिल विचार के बारे में पाठकों के समक्ष कई मूल्यवान दृष्टियां रखती है।

यह पुस्तक निबंधों का एक संकलन है जिसके लेखकों में सर्वोच्च अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के अलावा कई पूर्व जेल प्रशासक, वकील, पत्रकार, शिक्षाविद, शोधकर्ता और जमीनी स्तर के संगठनों के नेता और पूर्व कैदी शामिल हैं। इसे राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (सीएचआरआई) के निदेशक संजय हजारिका और सीएचआरआई के जेल सुधार कार्यक्रम की प्रमुख मधुरिमा धानुका द्वारा संपादित किया गया है।

पैन मैकमिलन इंडिया द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का उद्देश्य प्रणाली की अपारदर्शिता पर प्रकाश डालना है। पुस्तक के लेखों का मकसद जेल प्रणाली को न केवल अधिक मानवीय बनाना बल्कि यह दिखाना भी है कि जर्जर एवं अप्रभावी प्रक्रियाओं की कमजोरियों के बावजूद कानून के वर्तमान दायरे में रहकर क्या हासिल किया जा सकता है।

संपादकों ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा, ‘‘कारागार अपने आप में एक अलग दुनिया है, जहां रहने वाले उस समर्थन प्रणाली के बिना रहते हैं जिसे बाहर के लोग सहजता से उपलब्ध होने के कारण बेहद सामान्य बात मानते हैं। कैदियों की यही उम्मीद एवं इच्छा रहती हैं कि यह दिन कारावास में उनका आखिरी दिन हो। हमें उम्मीद है कि ‘सीखचों के पीछे उम्मीद’ की कहानियां उन जिंदगियों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करेंगी जो सामान्य से भी कमतर होती हैं।’’

सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर, प्रतिष्ठित मानवाधिकार वकील वृंदा ग्रोवर, पत्रकार सुनेत्रा चौधरी और सीएचआरआई शोधकर्ता सबिका अब्बास, सुगंधा माथुर और अमृता पॉल उन लेखकों में शामिल हैं, जिनकी रचनाओं को पुस्तक में संकलित किया गया है।

भाषा संतोष माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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