नयी दिल्ली, 26 जनवरी (भाषा) गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित परेड में शुक्रवार को यहां छत्तीसगढ़ की झांकी में राज्य के बस्तर क्षेत्र में सामुदायिक स्तर पर निर्णय लेने की 600 साल पुरानी आदिवासी परंपरा ‘मुरिया दरबार’ को दर्शाया गया।
‘मुरिया दरबार’ प्राचीन काल से आदिवासी समुदायों में मौजूद लोकतांत्रिक चेतना और पारंपरिक लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करता है और साथ ही भारत में लोकतंत्र की उत्पत्ति और विकास की कहानी भी प्रस्तुत करता है।
झांकी में बस्तर में संसद के प्राचीन आदिवासी स्वरूप को दर्शाया गया है जिसे ‘‘मुरिया दरबार’’ के नाम से जाना जाता है।
‘‘मुरिया दरबार’’ की परंपरा 600 वर्ष से अधिक पुरानी है और प्रसिद्ध ‘‘बस्तर दशहरा’’ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है।
कुछ साक्ष्यों से पता चलता है कि ‘‘मुरिया दरबार’’ की परंपरा बहुत ही पुरानी है।
झांकी में बस्तर की प्राचीन राजधानी बड़े डोंगर में स्थित ‘‘लिमऊ राजा’’ नामक स्थान को दर्शाया गया है।
लोककथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में जहां राजा नहीं होते थे, वहां आदिवासी समुदाय पत्थरों से बने सिंहासन पर नींबू रखकर आपस में निर्णय लेते थे। इस परंपरा ने आगे चलकर ‘‘मुरिया दरबार’’ का रूप ले लिया।
भाषा हक मनीषा हक
मनीषा
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