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Sunday, 3 November, 2024
होमडिफेंसनाइक नज़ीर अहमद वानी : कैसे एक आतंकवादी बना अशोक चक्र विजेता

नाइक नज़ीर अहमद वानी : कैसे एक आतंकवादी बना अशोक चक्र विजेता

आतंकी से भारतीय सेना में शामिल हुए शहीद लांस नायक नजीर अहमद वानी को भारत के सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित किया जाएगा.

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नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर के शोपियां में नवंबर में एक आतंकी विरोधी अभियान के दौरान अपनी जान की बाजी लगाने वाले, आतंकी से भारतीय सेना में शामिल हुए शहीद लांस नायक नजीर अहमद वानी को भारत के सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित किया जाएगा.

‘लांस नायक वानी जब तक जिंदा रहे वह एक अच्छे सैनिक की तरह चैलेंजिंग मिशन में बढ़-चढ़ कर भाग लेते रहे. राष्ट्रपति भवन ने अपनी अधिसूचना में कहा कि लांस नायक ने अपनी वीरता का परिचय दिया, उन्होंने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अच्छा काम किया. विपरीत परिस्थितियों में भी साहस का प्रदर्शन किया. भारतीय सेना की 162 टेरीटोरियल आर्मी बटालियन से संबंध रखने वाले वानी को दो बार साहसी कार्यों के लिए सेना पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है.

उनकी पत्नी को 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड के दौरान अशोक चक्र प्रदान किया जाएगा.

नवंबर ऑपरेशन

वानी 23 नवंबर 2018 को 34 राष्ट्रीय राइफल्स के साथ काम कर रहे थे. जब खुफिया जानकारी से पता चला था कि बड़गाव में छह हथियारबंद हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी मौजूद हैं.

कुलगाम निवासी वानी और उनकी टीम को आतंकवादियों के संभावित भागने के मार्ग को रोकने का काम सौंपा गया था.

अधिसूचना में कहा गया है कि ‘खतरे को भांपते हुए आतंकवादियों ने आंतरिक घेरा तोड़ने का प्रयास किया, अंधाधुंध फायरिंग की और ग्रेनेड दागे. स्थिति को समझते हुए वानी खुद जमीन पर लेट गए और उन्होंने इस मुठभेड़ में एक आतंकवादी को मार गिराया.

इसके बाद 38 वर्षीय वानी एक घर में घुस गया जहां एक और आतंकवादी छुपा हुआ था. जैसे ही आतंकवादी ने भागने की कोशिश की वानी ने उसे हाथापाई के लिए उकसाया. घायल होने के बावजूद, उसने आतंकवादी को ख़त्म कर दिया.

हालांकि, वानी को गंभीर चोटें आईं थीं जिसकी वजह से उन्होंने इलाज के दौरान सैन्य अस्पताल में दम तोड़ दिया.

बहादुर दिल

लांस नायक ने 2004 में टेरीटोरियल आर्मी की 162 बटालियन के साथ अपना करियर शुरू किया था. 162 टेरीटोरियल आर्मी में बड़े पैमाने पर ‘इख्वानी’ शामिल हैं, इख्वानी उन्हें कहा जाता है जो कभी आतंकी होते हैं और बाद में आत्मसमर्पण करते हैं और भारतीय सेना में शामिल हो जाते हैं.

162 टेरीटोरियल आर्मी के सैनिक जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. स्थानीय क्षेत्रों से आने वाले इन सैनिकों के पास एक मजबूत नेटवर्क है, जिससे वे आतंकवादियों की उपस्थिति के बारे में जानकारी को ट्रैक करने में सक्षम होते हैं.

26 नवंबर को उनके गांव में उनके शरीर को कब्र में दफनाया गया था. वानी को 21 गन की सलामी दी गई. उनके पार्थिव शरीर को जब सेना ने गांव में लाया और उनके परिवार को सौंपा था उस वक़्त उन्हें तिरंगे में लपेटा गया था.

उनके अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में कश्मीरी इकट्ठा हुए थे.

जम्मू में कार्यरत एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘वह एक असली बहादुर थे और आतंकवाद विरोधी अभियान में उनकी भागीदारी के लिए 2007 में सेना पदक और पिछले वर्ष फिर स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर उन्हें सेना पदक से सम्मानित किया गया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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