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Monday, 23 December, 2024
होमदेशहाईकोर्ट बार ने सीजेआई को बताया, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से 99% हैबियस कार्पस याचिकाएं लंबित

हाईकोर्ट बार ने सीजेआई को बताया, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से 99% हैबियस कार्पस याचिकाएं लंबित

25 जून को लिखे पत्र में समिति ने कहा कि 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने के बाद से कश्मीर घाटी से क़रीब 13,000 लोग जम्मू-कश्मीर क्रिमिनल प्रोसीजर कोड और सैकड़ों दूसरे लोग पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार किए गए हैं.

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नई दिल्ली: पिछले साथ अगस्त में अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के बाद से जम्मू व कश्मीर हाईकोर्ट में दायर 99 प्रतिशत बंदी प्रशिक्षण याचिकाएं अभी तक लंबित चल रही हैं.

श्रीनगर में जम्मू और कश्मीर बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति ने ये बात भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबड़े को लिखे एक पत्र में कही.

25 जून को लिखे पत्र में समिति ने कहा कि 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने के बाद से, कश्मीर घाटी से क़रीब 13,000 लोग जम्मू-कश्मीर क्रिमिनल प्रोसीजर कोड और सैकड़ों दूसरे लोग पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार किए गए हैं.

पत्र में कहा गया है, ‘6 अगस्त 2019 से श्रीनगर में केंद्र-शासित जम्मू व कश्मीर के माननीय हाईकोर्ट के सामने 600 से अधिक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं और आज तक हाईकोर्ट में इनमें से 1 प्रतिशत का भी फैसला नहीं हुआ है.’

पत्र में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियां अब्दुल क़य्यूम के लिए दायर की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का भी हवाला दिया गया और कहा गया कि हाईकोर्ट ने याचिका पर फैसला लेने में 6 महीने और अपील पर फैसले में और तीन महीने का समय लिया.

बार एसोसिएशन ने जम्मू और कश्मीर में इंटरनेट स्पीड पर लगी बंदिशों की वजह से वकीलों को पेश आ रही दिक़्क़तों पर भी रोशनी डाली. पत्र में कहा गया कि अगस्त 2019 के बाद से ख़ासकर श्रीनगर में वकीलों को ‘बहुत मुश्किलों’ का सामना करना पड़ रहा है.

पत्र में कहा गया, जम्मू और कश्मीर में 4-जी के ऑपरेशन पर लगी बंदिशों की वजह से, वर्चुअल मोड में मुक़दमों पर बहस करना बहुत मुश्किल हो जाता है. हालांकि वकील को कोर्ट के सामने पेश होने का विकल्प दिया जाता है. जिन वकीलों के केस लिस्ट में होते हैं, उन्हें तो कोर्ट परिसर में घुसने दिया जाता है, लेकिन उनके क्लर्क्स और जूनियर्स को अंदर नहीं आने दिया जाता, जिसकी वजह से वकील कोर्ट की ठीक से मदद नहीं कर पाते.’

एसोसिएशन ने सीजेआई के साथ मीटिंग की दरख़्वास्त की है और मांग की है कि इसकी शिकायतों के निपटारे के लिए आदेश जारी किए जाएं.

हाईकोर्ट चीफ जस्टिस से ‘कोई जवाब नहीं’

अपने पत्र में बार एसोसिएशन ने ये भी कहा कि वो अपनी चिंताओं को लेकर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस गीता मित्तल के पास भी गई थी. लेकिन कोई ठोस क़दम नहीं उठाए गए.

पत्र में कहा गया, ‘केंद्र-शासित जम्मू व कश्मीर के माननीय हाईकोर्ट की माननीय मुख्य न्यायाधीश ने लॉकडाउन से एक हफ्ता पहले श्रीनगर में जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति से मुलाक़ात की थी. जिसमें समिति ने हर लॉर्डशिप को जे एंड के हाईकोर्ट बार एसोसिएशन श्रीनगर के सदस्यों को पेश आ रही समस्याओं से अवगत कराया था. लेकिन, अभी तक केंद्र-शासित जम्मू व कश्मीर हाईकोर्ट की माननीय मुख्य न्यायाधीश की ओर से समस्याओं को सुलझाने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाए गए.’

एसोसिएशन ने ये भी कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन लगाए जाने के बाद इसकी कार्यकारी समिति ने चीफ जस्टिस गीता मित्तल से एक और मीटिंग करने की कोशिश की, लेकिन ‘कोई जवाब नहीं मिला.’

पत्र में कहा गया कि एसोसिएशन को ‘मजबूरी’ में सीजेआई को लिखना पड़ा, क्योंकि चीफ जस्टिस गीता मित्तल ‘कोई फैसला नहीं ले सकीं हैं’ और न ही उन्होंने इसके सदस्यों के साथ मीटिंग की है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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