नई दिल्ली: पिछले हफ्ते गुरुग्राम की एक गगनचुंबी ईमारत ‘चिंटेल पारादीसो’ में कई अपार्टमेंटों की छतों के ध्वस्त होकर गिरने की घटना – जिसमें दो लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे – के साथ ही चिंटल्स इंडिया लिमिटेड के अध्यक्ष अशोक सोलोमन के संदिग्ध अतीत – जिसमें कानून के साथ उनकी कई भिड़ंत भी शामिल हैं – ने फिर से ख़तरनाक रुप से सर उठा लिया है.
सोलोमन के नाम पर 400 किलोग्राम हशीश, मनी लॉन्ड्रिंग (काले पैसे को सफ़ेद करना), एक अमेरिकी जेल में काटी गयी 8 साल की सजा, चेक की धोखाधड़ी सहित कई मामले दर्ज हैं और दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा 1977 में उसे एक घोषित अपराधी भी घोषित कर दिया गया था. वह किसी-न-किसी बिंदु पर ज्यादातर भारतीय कानून एवं प्रवर्तन एजेंसियों के निगाह में बना रहा है – चाहे वह स्थानीय पुलिस हो या फिर अपराध शाखा, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) हो.
हालांकि, 2019 में ईडी द्वारा दर्ज एक मामले, जिसकी अभी भी जांच चल रही है, को छोड़कर उसे हर मामले में बरी कर दिया गया है.
10 नवंबर, 1973 को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा दर्ज एक मामले में उसे ‘केस की फाइलें नष्ट कर दिए जाने’ के कारण बरी कर दिया गया था. इसी तरह 1977 में सीबीआई द्वारा दर्ज एक अन्य मामले में, उसे मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद भी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा ‘सुबूतों की कमी’ की वजह से बरी कर दिया गया था. पुलिस सूत्रों ने कहा कि 1986 में दिल्ली पुलिस द्वारा नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट, 1985 के तहत दर्ज एक मामले में भी उसे बरी कर दिया गया था क्योंकि ‘गवाह ही मुकर गए थे’. साथ ही, इन सूत्रों ने बताया कि इन सब उदाहरणों का उल्लेख अदालत के रिकॉर्ड में मिलता है.
इंडिया टुडे पत्रिका में शेखर गुप्ता द्वारा साल 1986 में प्रकाशित की गई एक खबर के अनुसार, सोलोमन ने आपातकाल की अवधि के दौरान अब निरस्त हो चुके आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम, 1971 (मेंटेनेंस ऑफ़ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट – मीसा) के तहत भी जेल में समय गुजारा था. इस मामले में भी उसने दिल्ली हाई कोर्ट से अपनी रिहाई हासिल कर ली थी.
शराब से दूर रहने वाला और पूरी तरह से शाकाहारी यह शख्श फ़िलहाल ईडी द्वारा दर्ज किए गए मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत पर बाहर है, लेकिन अब वह एक विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा गैर इरादतन हत्या के मामले में की जा रही ‘जांच के दायरे’ आ गया है. यह मामला ‘पारादीसो’ के आंशिक रूप से धवस्त होने के सम्बन्ध में दर्ज किया गया है एसआईटी ने दिल्ली पुलिस से सोलोमन के पिछले सभी विवरण भी मांगे हैं.
दिप्रिंट ने अशोक सोलोमन की एक कथित ड्रग तस्कर से एक सफल रियल एस्टेट डेवलपर बनाने तक के सफर के धागों को एक सूत्र में पिरोने के लिए उसके पिछले सभी रिकॉर्ड, दर्ज प्राथमिकियों, अदालती आदेशों को खंगाला और इन मामलों के जांचकर्ताओं से भी बात की.
‘चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाला, तेज दिमाग शख्स’
सेंट स्टीफंस कॉलेज से की जा रही पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले और एक टैक्सी ड्राइवर के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले सोलोमन से जुड़े मामलों की जांच करने वाले जांचकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि वह एक ‘चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाला’ और ‘तेज दिमाग’ वाला आदमी था, जिसके ‘संपर्क सूत्र काफी अच्छी तरह से जुड़े हुए’ थे और इसी वजह से कई मामलों में उसका नाम आने के बावजूद वह सभी तरह की परेशानी से बच निकलने में कामयाब रहा.
दिल्ली पुलिस के एक सेवानिवृत्त अधिकारी, जो अपना नाम बताना नहीं चाहते थे, ने बताया, ‘हम उसकी संलिप्तता के बारे में सब जानते थे, लेकिन हमारे पास कोई सबूत नहीं था. मुझे 1986 के उस मामले की जांच अब भी याद है, जब उसकी कार से 100 किलोग्राम से अधिक हशीश बरामद किया गया था और उसकी निशानदेही पर और 300 किलोग्राम से भी अधिक ड्रग्स पाया गया था. मगर उस मामले में भी, दोष सिद्ध नहीं हो सका क्योंकि गवाहों ने अपनी गवाही नहीं दी.’
मैक्सवेल परेरा, जो सोलोमन के साथ अपनी भिड़ंत के दौरान दक्षिण दिल्ली के पुलिस उपायुक्त थे, ने कहा, ‘इस मामले का एक पहलु, जो मुझे याद है, वह अफवाह है जिसे सोलोमन ने मेरे बारे में फैलाया था. उसने कहा था कि हमारी आपसी रंजिश उस समय की है जब हम सेंट स्टीफंस कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे और यह मामला मेरे लिए उसे एक झूठे मामले में फंसा कर प्रतिशोध लेने का समय था. उसके दुर्भाग्य से, मैं पूरी तरह से मैंगलोर के सेंट एलॉयसियस और बैंगलोर के सेंट जोसेफ का छात्र रहा था.’
परेरा ने आगे बताया, ‘1985-86 में भी यह आज ही की तरह इंटरपोल से ‘वांछित सूची’ के आधार पर कुख्यात ड्रग डीलरों, इसके तस्करों और अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों के बारे में ख़ुफ़िया जानकारी (इनपुट) प्राप्त करना आम बात थी और हर जिले में विशेष स्टाफ (पुलिस बल) इस तरह के इनपुट पर और जानकारी विकसित करने के लिए काम करता था. जब मैं डीसीपी साउथ था तो लखमिंदर बराड़ के नेतृत्व में मेरे अपने विशेष स्टाफ ने इस मामले और (… अन्य सनसनीखेज मामलों के साथ-साथ) इसी तरह के अन्य मादक पदार्थों की तस्करी का पर्दाफाश करने के लिए काफी ख्याति हासिल की थी. उस समय शायद हम मादक पदार्थों की बरामदगी के लिए देश के सबसे ज्यादा पुरस्कार जीतने वाले थे.’
हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता, जिन्होंने 1986 के इस मामले में सोलोमन का प्रतिनिधित्व किया था, ने दिप्रिंट को बताया कि सोलोमन को इस वजह से बरी कर दिया गया था क्योंकि यह पूरा मामला पुलिस द्वारा फर्जी तरीके से गढ़ा गया था.
उन्होंने कहा, ‘सोलोमन को गिरफ्तार कर लिया गया था और उस मामले में पेश सबूत पूरी तरह से मनगढ़ंत और फर्जी थे. वह मामला मेरिट के आधार पर लड़ा गया और इसी वजह से वह बरी हो गया. पुलिस के यह कहने का क्या मतलब है कि उसने जुगाड़ से बरी होने में ‘सफलता’ प्राप्त की? यह (उसका बरी होना) तो रिकॉर्ड पर साबित हुआ था.’
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‘ड्रग्स इन हैंडलूम’- सीबीआई केस और अमेरिका में मिली सजा
1980 के दशक में सोलोमन की जांच करने वाले जांचकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि वह ‘विदेशी पर्यटकों को चरस और हशीश उपलब्ध कराता था, जिससे उसने अच्छा-खासा पैसा कमाया.
पुलिस सूत्रों ने बताया कि उसने धीरे-धीरे विदेशों में संपर्क विकसित किये और मादक पदार्थों (ड्रग्स) की तस्करी का एक सिंडिकेट शुरू किया. साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि ड्रग्स से कमाए पैसे के बल पर ही वह रियल एस्टेट (अचल संपत्ति की खरीद फरोख्त का कारोबार) वाले धंधे में घुस गया.
मई 1977 में, सीबीआई द्वारा सोलोमन के खिलाफ आपराधिक साजिश और औपनिवेशिक युग से चले आ रहे डेंजरस ड्रग्स एक्ट 1930 की धाराओं के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी. सीबीआई के एक इन्स्पेक्टर (निरीक्षक) बी.एन. मिश्रा इस मामले की जांच करने के लिए अमेरिका गए थे.
अदालत के रिकॉर्ड के मुताबिक, इस मामले की जांच सीबीआई और कस्टम विभाग ने की थी.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, हथकरघा के बने गए कपड़े (हैंडलूम) की 42 गांठों की एक खेप में छिपाया गया हशीश लॉस एंजिल्स, यूएसए में खोजी कुत्तों द्वारा सूंघ कर निकाला गया था और इस संबंध में अमेरिका के ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (डीईए) द्वारा भारत के राजस्व खुफिया निदेशालय (डायरेक्टरेट ऑफ़ रेवेन्यू इंटेलिजेंस – डीआरआई) को जानकारी दी गई थी.
यह आरोप लगाया गया था कि 1976 में, सोलोमन ने अपने भाई रमेश और अन्य लोगों के साथ भारत से अवैध रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका को हशीश निर्यात करने की साजिश रची थी.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, इस समूची साजिश को अंजाम देने के लिए दिल्ली के टॉल्स्टॉय मार्ग पर एक अपार्टमेंट के एक हिस्से को किराए पर लिया गया था और हशीश के अवैध निर्यात के लिए खड़ी की गई एक फर्जी फर्म के नाम पर चालान के फॉर्म और लेटर हेड छपवाए गए थे. साथ ही, हशीश को पैक करने के लिए साउथ एक्सटेंशन में एक ईमारत भी किराए पर ली गई थी.
जैसा कि इस केस की फाइलों में दिखता है, इसके बाद जापान एयरलाइंस की उड़ानों द्वारा इस सारी खेप को यूएसए भेज दिया गया था, लेकिन लॉस एंजिल्स अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ही इसका पता लगा लिया गया था.
सोलोमन को 20 मई, 1977 को एक अमेरिकी अदालत ने हशीश रखने और इसे उस देश में आयात करने के लिए दोषी ठहराया गया और फिर सजा सुनाई गई.
दिप्रिंट द्वारा हासिल किए गए एक अदालती दस्तावेज़ के अनुसार, इस ड्रग्स की खेप को भारत से लॉस एंजिल्स, कैलिफ़ोर्निया के माध्यम से आयात किया गया था और फिर इसे मिनियापोलिस, मिनेसोटा में घरेलू हवाई वाले माल के रूप में भेजा जाना था .
अदालत के दस्तावेज के अनुसार, उस समय, सोलोमन कथित तौर पर ‘डीसी दास’ नाम से जाली पासपोर्ट पर सफर कर रहा था. सोलोमन ने अपना दोषी होना कुबूल किया था और फिर उसे 10 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी. एक पुलिस सूत्र ने बताया कि अमेरिकी जेल में बिताये गए अरसे के दौरान उसने एक डिग्री भी हासिल की. उसे 1983 में वापस भारत भेज दिया गया था. इसके साथ ही उस पर 5,30,000 अमेरिकी डॉलर का जुर्माना और अमेरिका में प्रवेश करने पर निश्चित अवधि का प्रतिबंध भी लगाया गया था.
मगर, सीबीआई द्वारा इसी मामले में भारत में दर्ज केस की सुनवाई के दौरान, सोलोमन ने कहा कि वह इस मामले के किसी अन्य आरोपी को नहीं जानता क्योंकि वह 1972 से ही कनाडा में रह रहा था. हालांकि, उसे सीबीआई वाले मामले में साल 1992 में दिल्ली के एक मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी ठहराया गया था, फिर भी उसे उसी मामले में एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश और विशेष न्यायाधीश (एनडीपीएस) ने 2013 में इस आधार पर बरी कर दिया था कि ‘अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा है कि अशोक सोलोमन इस समूची साजिश का ‘सरगना’ था या फिर उसकी इस साजिश के भारतीय अंश के साथ कोई ‘मिली-भगत’ थी.
संक्षेप में, उसे अमेरिका में तो हशीश के आयात के लिए दोषी ठहराया गया था, लेकिन भारत में उसे इसके निर्यात के आरोपः से बरी कर दिया गया था.
एक पूर्व पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह एक बहुत ही उलझा हुआ केस था. अभियोजन पक्ष यहां भारत में हुए अपराध के लिए अदालत को मना नहीं सका. इसमें एक बड़ी भूमिका सोलोमन की थी, जो बहुत ही विश्वास से भरा दिखता था.’
मगर, इस मामले में भी सोलोमन के वकील रहे रमेश गुप्ता ने कहा कि ‘सोलोमन द्वारा किसी भी प्रतिबंधित पदार्थ का निर्यात करने का कोई सबूत नहीं था, कोई बरामदगी नहीं हुई थी, और इसलिए यह बरी हो गया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘सीबीआई के पास इस मामले में सोलोमन की संलिप्तता के खिलाफ एक ज़रा सा भी सबूत नहीं था, और यही कारण है कि उसे बरी कर दिया गया.’
अदालत ने अपने आदेश, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, में इस बात का भी उल्लेख किया था कि सोलोमन ‘निर्विवाद रूप से प्रासंगिक समय पर – अर्थात भारत में हुए कथित अपराध के समय से उससे पहले – भारत में मौजूद नहीं था.’
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‘भारत में फलता-फूलता रैकेट’
जांचकर्ताओं के अनुसार, सोलोमन ने अमेरिका से भारत लौटने के बाद ही अपनी तस्करी की गतिविधियां – एक ऐसा दावा जिस पर उसके वकीलों द्वारा विवाद खड़ा किया जाता है – शुरू की, जिसके संबंध में 1986 में उसके खिलाफ एक मामला दर्ज किया गया था.
प्रवर्तन एजेंसियों का कहना है की मादक पदार्थों की तस्करी का कारोबार काफी फला-फुला और उसने 70, 80 और 90 के दशक के दौरान अच्छी खासी कमाई की. फिर ड्रग्स से कमाए गए इसी पैसे का इस्तेमाल जमीन की खरीद में निवेश करने के लिए किया गया था.
सूत्र के अनुसार, सोलोमन ने अमेरिका द्वारा उसे भारत निर्वासित किये जाने के बाद अपने ड्रग सिंडिकेट को पुनर्जीवित किया. वे बताते हैं, ‘उसे कई बार गिरफ्तार किया गया था, लेकिन हर बार, उसने किसी न किसी तरह अपनी रिहाई करवाने में कामयाबी हासिल की और यहां तक कि उसे इनमें बरी भी कर दिया गया. इन्हीं मामलों ने दिल्ली पुलिस का एनडीपीएस वाला मामला भी शामिल था.’
21 जुलाई, 1986 को, दिल्ली पुलिस को सुबह लगभग 6.30 बजे एक ख़ुफ़िया खबर मिली कि ‘एक अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्कर’ कुछ व्यापारिक फर्मों की आड़ में नशीले पदार्थों का निर्यात करने जा रहा है.
इसी सुराग पर आगे काम किया गया और दिल्ली के विक्रम होटल के पास एक पुलिस दल को तैनात किया गया. जांचकर्ताओं ने एक कार (डीबीडी-2577) का उस समय से पीछा करना शुरू किया जब वह होटल से बाहर निकली. काफी तेज रफ़्तार से पीछा किये जाने के बाद उसे सर्विस रोड के पास रोका गया और इससे 96 किलोग्राम चरस (हशीश) बरामद किया.
एक दूसरे सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी, जो उस समय इस मामले से जुड़े थे, ने कहा, ‘वह (सोलोमन) खुद उस कार को चला रहा था. पूछताछ के दौरान, उसने पुलिस दल को 331 किलोग्राम चरस के ऐसे जखीरे तक पहुंचाया, जिसे ओखला में निर्यात के मकसद से पैक करने के लिए रखा गया था. एक मामला दर्ज किया गया. हमें लगा कि इस बार हमने उसे पकड़ ही लिया है. लेकिन अंत में, वह (इसमें भी) बरी हो गया.’
हालांकि, सोलोमन के वकील रमेश गुप्ता ने कहा कि सोलोमन की गिरफ्तारी के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिखाए गए सबूत ‘मनगढ़ंत’ थे.
उन्होंने कहा, ‘पुलिस के मुताबिक दोपहर 3 बजे ओखला से 230 किलो से ज्यादा हशीश बरामद हुई, लेकिन इसे दोपहर 2 बजे ही एक संवाददाता सम्मलेन में प्रेस को दिखाया गया! ये कैसे संभव हुआ? उन्हें दोपहर 2 बजे ही कैसे पता चल गया कि वे दोपहर 3 बजे ओखला से हशीश की फलां… मात्रा बरामद करेंगे? यह सब कुछ मनमाने तरीके से गढ़ा गया था.’
‘रियल एस्टेट के धंधे में आने से काफी पैसा बनाया’
सोलोमन का रियल एस्टेट के धंधे में आना उसके ड्रग्स मामले से बरी होने के बाद हुआ.
प्रवर्तन एजेंसी वाले सूत्र ने बताया, ‘कई ऐसे जुआरी या मादक पदार्थों की तस्करी में शामिल लोग थे, जो अपनी एक साफ-सुथरी छवि बनाने के लिए और अपने द्वारा जमा किए गए धन का निवेश करने के लिए रियल एस्टेट के धंधे में स्थानांतरित हो गए थे. सोलोमन एक बुद्धिमान व्यक्ति है. उस वक्त वह जानता था कि यह एक साफ-सुथरे कारोबार में घुस जाने का समय है. उसने एक रियल एस्टेट कंपनी में निवेश करने और इसे शुरू करने के लिए पर्याप्त पैसा कमा लिया था.’
फ़िलहाल, अशोक सोलोमन चिंटल्स समूह की कंपनियों का प्रबंध निदेशक और मालिक हैं, जो रियल एस्टेट विकास में लगी हुई है और इसके पास राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और उसके आसपास काफी सारी जमीन वाला लैंड बैंक है. पुलिस सूत्रों के मुताबिक इस लैंड बैंक की जमीन को 80 और 90 के दशक में खरीदा गया था.
एक लैंड बैंक एक सरकारी या गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी(कम-से-कम कुछ अंश में) संस्था होती है जो शहरी संपत्ति के पुन: उपयोग या उसके पुनर्विकास को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से खाली भूमि को इकट्ठा करने, इस अस्थायी रूप से प्रबंधित करने और फिर से बेच देने लिए स्थापित की जाती है.
चिंटल्स समूह ने गुरुग्राम, हरियाणा में या तो स्वयं के द्वारा अथवा किसी अन्य फर्म के साथ सहयोग कर विकसित किये जाने के माध्यम से कई आवासीय और वाणिज्यिक परियोजनाएं शुरू की है. इनमें से कुछ परियोजनाओं में चिंटेल पारादीसो, चिंटेल सेरेनिटी, इंटरनेशनल सिटी और शोभा सिटी शामिल हैं.
प्रवर्तन एजेंसी के सूत्रों के अनुसार, ‘सोलोमन ने मादक पदार्थों के कारोबार से बहुत बड़ी संपत्ति बनाई और फिर अपने गलत तरीके से अर्जित धन को वैध बनाने के लिए, इसने एनसीआर और उसके आसपास की भूमि में नकद में निवेश करना शुरू कर दिया.’ उन्होने बताया, ‘1990 और 2000 के दशक के अंत में, उसने खुद को ड्रग व्यवसाय से दूर कर लिया और एक रियल एस्टेट डेवलपर बन गया.’
सूत्रों ने कहा कि गुरुग्राम में विभिन्न परियोजनाओं के लिए डायरेक्टर (टाउन एंड कंट्री प्लानिंग), हरियाणा द्वारा चिंटल्स को कई लाइसेंस जारी किए गए थे. इन सूत्रों का यह भी कहना है कि चिंटल्स समूह ने विभिन्न परियोजनाओं के विकास के लिए अन्य बड़े बिल्डरों के साथ भी सहयोग किया.
जांच अधिकारियों द्वारा लगाए गए इन आरोपों के जवाब में कि सोलोमन अपने रियल एस्टेट व्यवसाय में मादक पदार्थों के धंधे से कमाए पैसे का उपयोग कर रहा है, उसके वकील रमेश गुप्ता ने कहा, ‘यदि उसका सारा कॉन्ट्रैबेंड (अवैध माल) जब्त ही कर लिया गया था और वह अमेरिका की में जेल में था, तो फिर उसने यह सारा पैसा कैसे कमाया? दरअसल, 1986 के मामले में उसे गिरफ्तार करने वाले इंस्पेक्टर को ही बाद में एक मामले में गिरफ्तार किया गया था.’
यह कहते हुए कि सोलोमन के खिलाफ ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं है जिसमें किसी एजेंसी ने उन पर ‘अपने रियल एस्टेट के कारोबार में गलत तरीके से कमाए गए धन का निवेश करने’ का आरोप लगाया हो, गुप्ता ने कहा कि सोलोमन ने जमीन में निवेश करके पैसा कमाया है.’
गुप्ता ने कहा, ‘वास्तव में मेरे पास तो यह भी जानकारी है कि एक आयकर छापे के दौरान, वह एकदम पाक-साफ निकले थे और उनके सभी रिकॉर्ड ठीक-ठाक थे. वह एक धनाढ्य परिवार से आते हैं. वह जब कॉलेज में थे तभी उनके पिता ने गोल्फ लिंक्स हाउस बनाया था, जिसकी कीमत आज सैकड़ों करोड़ में होगी.’
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‘लाइसेंस के नियमों का उल्लंघन’ – ईडी के साथ भिड़ंत’
ईडी के सूत्रों के अनुसार, गुरुग्राम में ‘इंटरनेशनल सिटी’ नामक एक आवासीय परियोजना में, चिंटल्स समूह ने 25 प्रतिशत भूखंडों को बिना लाभ या हानि के (नो प्रॉफिट नो लॉस-एनपीएनएल) बेचने के बारे में लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन किया था. उसने एनपीएनएल के भूखंडों को बाजार मूल्य पर बेचा और इससे खूब सारा अवैध मुनाफा कमाया.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 31 मार्च 2007 को, गुरुग्राम में 149 एकड़ जमीन के स्वामित्व वाली चिंटल्स इंडिया लिमिटेड ने एक आवासीय कॉलोनी विकसित करने के लिए लाइसेंस प्रदान किये जाने हेतु हरियाणा के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग (डीटीसीपी) को आवेदन दिया था.
एक साल बाद, चिंटल्स और क्यूवीसी रियल्टी कंपनी लिमिटेड (क्यूवीसी), जिसके नाम पर उक्त भूमि के आवंटित थी, ने शोभा लिमिटेड के साथ एक बिक्री योग्य क्षेत्र को साझा करने के आधार पर इसे विकसित करने के लिए एक समझौता किया. इस आवेदन के समर्थन में लाइसेंस प्रदान करने के लिए डीटीसीपी के समक्ष एक समझौता पेश किया गया था.
इस समझौते के अनुसार, चिंटल्स द्वारा विकसित आवासीय भूखंडों का 25 प्रतिशत एनपीएनएल के आधार पर बिक्री के लिए आरक्षित किया जाना आवश्यक था. इसके आलावा, इस समझौते के भागीदारों के बीच यह सहमति भी हुई कि एनपीएनएल के 75 प्रतिशत भूखंड पंजीकृत आवेदकों को लकी ड्रॉ के माध्यम से (यदि ऐसा आवश्यक हो तो) आवंटित किए जाएंगे और शेष 25 प्रतिशत विशिष्ट संस्थाओं को आवंटित किया जाएगा.
मगर, 10 दिसंबर, 2018 को, डीटीसीपी ने गुरुग्राम पुलिस को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि इस समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया गया है.
प्रवर्तन एजेंसी के सूत्र ने बताया, ‘एनपीएनएल भूखंडों को वस्तुतः खुद को ही आवंटित करके, शोभा, चिंटल्स और क्यूवीसी ने धोखाधड़ी करने की साजिश रची थी और साथ ही लाइसेंस / समझौते की शर्तों का भी उल्लंघन किया था.’
इस अधिकारी ने कहा, ‘समझौते के अनुसार चिंटल्स को कुछ विशिष्ट संस्थाओं को जमीन देनी थी. लेकिन इसके बजाय उसने पहले अपनी कंपनियों या साझेदार कंपनियों को जमीन आवंटित की और उन्हें वापस अपने पास ही भेज दिया. यह समझौते का उल्लंघन था और इसलिए एक धोखाधड़ी थी.’
इसी वजह से गुरुग्राम पुलिस से अनुरोध किया गया था कि वह चिंटल्स, शोभा, क्यूवीसी और एलएलपी के खिलाफ धोखाधड़ी और विश्वासघात की धाराओं के तहत दंडात्मक कार्रवाई करे.
इसी मामले में ईडी ने जनवरी 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच भी शुरू की क्योंकि एजेंसी को संदेह था कि यहां मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध भी किया गया था. इस मामले में जांच के सिलसिले में 15 फरवरी, 2021 को सोलोमन और उसके सहयोगी साथी प्रकाश गुरबक्सानी को गिरफ्तार किया गया था.
एक पुलिस सूत्र ने कहा, ‘यह आम जनता के साथ की गई धोखाधड़ी थी. मामला दर्ज होने के बाद, चिंटल्स और उसके सहकर्मियों ने अग्रिम जमानत के लिए विभिन्न अदालतों का दरवाजा खटखटाया, जिन्हें अस्वीकार कर दिया गया, लेकिन अंततः उन्हें सुप्रीम कोर्ट से ‘बलपूर्वक कोई कार्रवाई नहीं करने’ (नो कोवेर्सिव एक्शन) का आदेश मिल गया.’
सोलोमन और प्रकाश गुरबक्सानी को 16 फरवरी, 2021 को गुरुग्राम की एक विशेष अदालत के समक्ष पेश किया गया, लेकिन अदालत ने उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया.
ईडी ने तब दलील दी थी कि सोलोमन को जब्त किए गए दस्तावेजों के साथ बैठा कर पूछताछ करने की जरूरत है, लेकिन उसकी पुलिस हिरासत दिए जाने से इनकार कर दिया गया था.
इसके बाद, सोलोमन और गुरबक्सानी अगले 106 दिनों तक भोंडसी जेल में बंद रहे, और उनकी जमानत याचिका को पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्डरिंग एक्ट) अदालत ने भी खारिज कर दिया.
मगर, जून 2021 में दोनों को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने बढ़ी हुई आयु और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के आधार पर जमानत दे दी गई थी. उच्च न्यायालय ने इस बात का भी ध्यान दिया था कि आरोपी 13 विभिन्न मौकों पर जांच में शामिल हुए थे.
हालांकि ईडी ने इस जमानत को चुनौती दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा.
दिप्रिंट ने ईडी वाले मामले में चिंटल्स समूह और सोलोमन का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता मानव गुप्ता से टेक्स्ट मैसेज और फोन कॉल के माध्यम से उनकी टिप्पणी लेनी चाही, लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. उनके द्वारा कोई जवाब दिए जाने के बाद इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.
ईडी के सूत्रों के अनुसार, अब तक चिंटल्स की 50 करोड़ रुपये की संपत्ति एजेंसी द्वारा कुर्क की जा चुकी है, और एनपीएनएल के भूखंडों को ‘ओपन कैटेगरी’ के भूखंडों के रूप में बेचकर की गयी अवैध आय और कमाई के मामले में जांच जारी है.
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