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Saturday, 21 December, 2024
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8 मौतें, हर तीसरे दिन एक दाह संस्कार: यूपी का यह परिवार राज्य में कोविड की तबाही का गवाह है

22 अप्रैल से 15 मई के बीच हुई तमाम मौतों से, भौंचक्के रह गए परिवार ने 31 मई को, मारे गए सभी सदस्यों की तेरहवीं का आयोजन किया, जो हिंदू परंपरा के अनुसार मृतक के दुख मनाने का आख़िरी दिन होता है.

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लखनऊ: एक के बाद एक चिताएं जलीं, कभी कभी एक दिन में दो-लखनऊ के बाहरी हिस्से में बसे इमलिया गांव में, यादव परिवार के आठ सदस्य, सिर्फ 24 दिन में कोविड का शिकार हो गए, जिससे अंदाज़ा होता है कि महामारी उत्तर प्रदेश में कितनी तबाही मचा रही है.

छह बेडरूम के उनके पुश्तैनी मकान में, अब एक ख़ालीपन, दुख, और मातम के सिवा कुछ नहीं है. हॉल के अंदर एक मेज़ पर, परिवार के पांच मृत सदस्यों के फोटो रखे हुए हैं, जिनके आसपास उनके सम्मान में जलाए गए, दीयों और अगरबत्तियों का धुआं भरा है. (तीन महिला रिश्तेदारों के फोटो, उनकी ससुराल के घरों में हैं).

अपने पति विजय कुमार यादव के फोटोग्राफ की ओर इशारा करते हुए, कुसमा यादव ने कहा, ‘उजड़ गया है सब. जीने का अब क्या मतलब? सबको ले गए. हमें बिधवा और बच्चों को बिन मां-बाप का कर गए’.

उसके पास खड़ी थीं उसकी देवरानी और जिठानी, अनुपमा यादव और सीमा सिंह, जो अपने पतियों – विनोद कुमार यादव और निरंकार यादव- की ओर इशारा करती हुईं बुरी तरह रो रहीं थीं, और उनके बच्चे बेबसी से उन्हें ताक रहे थे.

22 अप्रैल से 15 मई के बीच हुई तमाम मौतों से, भौंचक्के रह गए परिवार ने 31 मई को, मारे गए सभी सदस्यों की तेरहवीं का आयोजन किया, जो हिंदू परंपरा के अनुसार मृतक के दुख मनाने का आख़िरी दिन होता है.

मौतें, मौतें और मौतें- तीन दिनों में एक अंत्येष्टि

इस सब की शुरूआत 7 अप्रैल को हुई, जब कुसमा के भतीजे कुंवर प्रताप सिंह को सांस फूलने, दर्द और बुख़ार की शिकायत हुई.

27 वर्षीय कुंवर का ऑक्सीजन लेवल गिरने के बाद, उसे अस्पताल में दाख़िल कराया गया.

कुंवर ने कहा, ‘मुझे 7 अप्रैल से लक्षण शुरू हो गए थे, और जब मेरा ऑक्सीजन लेवल गिरकर 80 आ गया, तो मुझे जल्दी से अस्पताल लेजाया गया’. कुमार को अभी भी सांस लेने में परेशानी हो जाती है. उसने आगे कहा, ‘4-5 दिन के बाद परिवार के बाक़ी लोग बीमार पड़ने शुरू हो गए, और उनमें से चार को भर्ती कराना पड़ा, चूंकि उनका ऑक्सीजन लेवल भी गिर गया था’.

मृतक परिवार के सदस्यों को श्रद्धांजलि देते पड़ोसी | फोटो: प्रवीण जैन / दिप्रिंट

अगले कुछ दिनों में, उसके पिता विनोद कुमार यादव, और चाचा विजय कुमार यादव, निरंकार यादव, तथा सत्यप्रकाश यादव, सब अस्पताल पहुंच गए.

परिवार में पहली मौत कुंवर की बुआ, 56 वर्षीय मिथिलेश यादव की हुई-जो 22 अप्रैल को चल बसीं. उनके बेटे उन्हें उनकी ससुराल, एक दूसरे गांव इशापुर ले गए थे.

27 वर्षीय कुंवर ने कहा, ‘हमें कुछ समझ ही नहीं आया, कि क्या हो रहा था; उन्होंने कहा कि वहां पर बुआ की देखभाल करना आसान रहेगा. वहां पहुंचने के तीन-चार दिन के भीतर उनकी मौत हो गई’.

कुंवर प्रताप सिंह परिवार में सबसे पहले बीमार पड़े | फोटो: प्रवीण जैन / दिप्रिंट

तीन दिन बाद 25 अप्रैल को, कुंवर के 42 वर्षीय चाचा निरंकार यादव, और उसकी 80 वर्षीय दादी कमला देवी वायरस की भेंट चढ़ गए. 27 अप्रैल को एक और बुआ, 55 वर्षीय शैल यादव भी गुज़र गईं.

दो दिन बाद, उसके पिता 61 वर्षीय विनोद की मौत हो गई, और फिर उसके बाद 1 मई को उसके ताऊ, 63 वर्षीय विजय भी चल बसे.

11 मई को कुंवर के दादा की बहन, 85 वर्षीय रूप रानी की मौत हुई, और चार दिन बाद 15 मई को, कुंवर के सबसे छोटे चाचा 38 वर्षीय सत्यप्रकाश यादव भी गुज़र गए, जो चाल साल की एक बेटी पीछे छोड़ गए.

कुंवर ने कहा, ‘बिस्तर और ऑक्सीजन के लिए, हम एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भागते रहे, और जब तक हम कुछ बंदोबस्त कर पाते, वो सब एक के बाद एक गुज़र गए’.

‘हर जगह अफरा-तफरी थी, ज़्यादातर अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं थी. मेरे दादा का ऑक्सीजन लेवल सामान्य था, लेकिन उनके गुर्दे फेल हो गए. सत्यप्रकाश चाचा बिल्कुल ठीक थे, लेकिन निगेटिव टेस्ट आने के बाद, उनके फेफड़ों में इनफेक्शन हो गया. उन्हें तुरंत वेंटिलेटर बेड चाहिए थी, लेकिन कोई बेड ख़ाली नहीं थी. आख़िरकार सुबह 4 बजे हमें एक बेड मिला, लेकिन तब तक उनका ऑक्सीजन लेवल गिरकर 50 रह गया था, और उनकी मौत हो गई’.

लगभग 30 लोगों के इस परिवार में, तक़रीबन हर आदमी वायरस से संक्रमित हुआ था. उन्होंने बताया कि जो कुछ पैसा उन्होंने बचाया हुआ था, वो अस्पताल के बिल भरने में चला गया, और अब अपने बच्चों को पढ़ाने या खिलाने के लिए, उनके पास कुछ नहीं बचा है.

बख्शी का तालाब सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) सुभे सिंह, जिनके दायरे में ये गांव आता है- की ओर से 18 मई को, लखनऊ ज़िला मजिस्ट्रेट अभिषेक प्रकाश को सौंपी गई रिपोर्ट में, जिसकी कॉपी दिप्रिंट ने देखी है, कहा गया है कि जांच में पता चला है, कि परिवार संक्रमण का शिकार तब हुआ, जब उनमें से एक व्यक्ति एक दूसरे गांव में, अपनी बहन की अंत्येष्टि में शरीक हुआ था. रिपोर्ट में ये भी कहा गया था, कि वहां पर 18 मई को सैनिटाइज़ेशन कराया गया था.

लेकिन, इन आरोपों से इनकार और रिपोर्ट को ख़ारिज करते हुए, कुंवर ने कहा, ‘मेरे पिता मेरी साली की ओर के किसी रिश्तेदार के, अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए 9 मई को उस गांव में गए थे. जबकि मुझे 7 मई को लक्षण हुए थे. ये ग़लत है’.

दिप्रिंट ने कॉल्स और व्हाट्सएप संदेशों के ज़रिए, लखनऊ डीएम अभिषेक प्रकाश से, कई बार संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन इस ख़बर के छपने तक उनका कोई जवाब नहीं मिला.

निरंकार यादव के पुत्र कर्ण यादव अपने पिता की समाधि पर कफन लगाते हैं | फोटो: प्रवीण जैन / दिप्रिंट

लक्षण वाले ग्रामीण

इमलिया के स्थानीय निवासियों का कहना है, कि दूसरी लहर के दौरान एक समय गांव के तक़रीबन आधे लोगों में कोविड के लक्षण थे. सिर्फ 10-20 लोगों ने अपनी जांच कराई, जबकि बाक़ी सभी होम आइसोलेशन में रहे, और उन्होंने टेस्ट नहीं कराए.

एक गांव वासी राम प्यारे ने कहा, ‘कागज़ पर केवल 10-20 लोगों के टेस्ट पॉज़िटिव आए, जबकि 50-60 दूसरे लोग अपने घरों में छिपे हुए थे’. उन्होंने आगे कहा, ‘मैं ख़ुद एक महीने तक बिस्तर पर था, लेकिन न तो मैंने किसी को उस समय बुख़ार के बारे में बताया, और ना ही अपना टेस्ट कराया, क्योंकि फिर उन्होंने मुझे अस्पताल में भर्ती करा दिया होता, और मैं भी आख़िरकार मर गया होता. मैंने नीम और बबूल का हर्बल जूस पिया था’.

गांव वालों ने बताया कि दूसरी लहर में कोविड-19 से 11 लोगों की मौत हुई, जिनमें कुंवर के परिवार के आठ लोग शामिल हैं.

कुंवर के परिवार के एक दूर के रिश्तेदार, अतुल यादव ने कहा, ‘गांव के लगभग आधे लोगों में लक्षण थे, ये नहीं कह सकता कि उनमें कितने लोग पॉज़िटिव थे’.

अतुल के पिता में अप्रैल के पहले सप्ताह में लक्षण दिखे थे, और बाद में उनकी जांच पॉज़िटिव आई. अगल कुछ दिनों में वो और उनकी पत्नी भी, वायरस की चपेट में आ गए. यादव ने आगे कहा, ‘मेरे पिता में सबसे पहले लक्षण दिखने शुरू हुए’.

पूछे जाने पर, कुछ गांव वालों का कहना था, कि संक्रमण फैलने की वजह पंचायत चुनाव थे. ये गांव लखनऊ नगर निगम के अंतर्गत आता है, और यहां चुनाव नहीं हुए, लेकिन स्थानीय निवासियों ने संक्रमण के लिए चुनाव प्रचार, और लोगों के एक गांव से दूसरे गांव आने जाने को ज़िम्मेदार ठहराया. कुछ दूसरे लोगों ने कहा कि उन्हें ये वायरस शहर से मिला होगा.

यादवों के रिश्तेदार और परिवार के सदस्य | फोटो: प्रवीण जैन / दिप्रिंट

राज्य की ओर से चिंता की कमी, बेपरवाही

यादव परिवार का ये भी आरोप था, कि ज़िला अधिकारियों ने उनके प्रति चिंता का कोई इज़हार नहीं किया है, और एसडीएम केवल एक बार वहां आए थे.

कुंवर ने कहा, ‘एसडीएम केवल एक बार, एक हफ्ता पहले मई में आईं थीं, और हमसे कहा था कि दो घंटे के भीतर सैनिटाइज़ेशन हो जाएगा, लेकिन उनकी तरफ से कोई नहीं आया. बाद में एक एनजीओ इस काम के लिए आई’.

अतुल यादव ने कहा, ‘एसडीएम मैडम क़रीब 5-6 मिनट के लिए आईं थीं, उसके अलावा और कोई नहीं आया, कोई विधायक नहीं, कोई सांसद नहीं’.

मौजूदा एसडीएम विकास सिंह ने दिप्रिंट से कहा, कि उन्होंने कुछ दिन पहले ही ज्वॉयन किया है, लेकिन उन्होंने कहा कि पिछले एसडीएम सूभे सिंह ने, परिवार का दौरा किया था, और घर को सैनिटाइज़ कराया था.

18 मई को लखनऊ डीएम को पेश की गई रिपोर्ट में, इसका उल्लेख किया गया है. बृहस्पतिवार को जब रिपोर्टर्स ने इस बारे में, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों से बात की, उसके बाद एसडीएम विकास सिंह परिवार से मिलने गए, और उन्हें मदद का आश्वासन दिया. कुंवर ने कहा, ‘एसडीएम ने हमारे परिवार में हुई सब मौतों का ब्योरा लिया, और बच्चों की भी जानकारी ली, जो निर्भर हैं और फिलहाल पढ़ रहे हैं’.

परिवार के सदस्यों और गांव वालों की ये भी शिकायत थी, कि सत्तारूढ़ बीजेपी के कोई नेता उनके पास नहीं आए हैं.

राम प्यारे ने कहा, ‘बस मीडिया वाले आते हैं, और कोई नहीं. आठ लोग फुक गए 20 दिन में इनके यहां. जैसे पानी से मछली निकालो, वैसे तड़पे हैं हम’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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