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Friday, 15 November, 2024
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म्यांमार के 75 नागरिकों को मानवाधिकार आयोग के दौरे के बाद मणिपुर जेल से बाहर किया गया, पर अंदर क्या मिला

सजीवा जेल और डिटेंशन सेंटर के 'औचक निरीक्षण' में मणिपुर मानवाधिकार आयोग ने कैदियों, गर्भवती महिलाओं, बच्चों को सजा काटने के बाद भी 'अवैध रूप से हिरासत में' पाया.

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इम्फाल: मणिपुर मानवाधिकार आयोग (एमएचआरसी) द्वारा “आश्चर्यजनक निरीक्षण” के पांच दिन बाद, सजीवा स्थित केंद्रीय जेल के लगभग 75 कैदियों को फॉरेन डिटेंशन सेंटर (एफडीसी) में ट्रांसफर कर दिया गया है. ये सभी म्यांमार के नागरिक हैं. इसकी जानकारी दिप्रिंट को जेल अधीक्षक एस.के. भद्रिका ने दी.

उन्होंने कहा, “सजीवा डिटेंशन सेंटर में 30 महिला शरणार्थियों को जल्द ही इंफाल सेंट्रल जेल के पास दूसरे केंद्र में ट्रांसफर कर दिया जाएगा.”

उन्होंने आगे कहा कि एक गर्भवती महिला को इलाज के लिए इंफाल स्थित जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में भर्ती कराया गया हैं

पिछले शुक्रवार को एमएचआरसी की दो सदस्यीय टीम- जिसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति यू.बी. साहा और सदस्य के.के. सिंह थे, एक कानून अधिकारी के साथ, इंफाल पूर्वी जिले के सजीवा में मणिपुर सेंट्रल जेल का निरीक्षण करने पहुंचे थे. जब वह निरीक्षण कर रहे थे उसी वक्त आस-पास के डिटेंशन सेंटर में बंद म्यांमार के नागरिक चिल्ला रहे थे. निरीक्षण करने पहुंचे अधिकारियों ने उनकी हताशापूर्ण दलीलें सुनीं.

यह ऐसे समय में आया है जब मणिपुर सरकार म्यांमार से “पहचाने गए अवैध अप्रवासियों” के बायोमेट्रिक्स इकट्ठा कर रही हैं. यह चंदेल जिले से शुरू हुआ था और इस सप्ताह की शुरुआत में सीमावर्ती जिले टेंग्नौपाल में किया गया. राज्य फिलहाल पिछले चार महीनों से आदिवासी कुकी और गैर-आदिवासी मैतेई समुदायों के बीच नैतिक संघर्ष की चपेट में हैं. इस हिंसा के चलते लगभग 180 लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं. पिछले 48-72 घंटों में आठ लोगों की मौतों की सूचना मिली हैं.

शुक्रवार के निरीक्षण का आदेश एमएचआरसी अध्यक्ष साहा ने 28 अप्रैल को दिया था, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि जेल अधिकारियों को म्यांमार के कैदियों को उनकी सजा पूरी करने और जुर्माना जमा करने के बाद तुरंत रिहा कर देना चाहिए, ताकि उन्हें “या तो उनके देश भेजा जा सके या फॉरेन डिटेंशन सेंटर में रखा जा सकें.”

लेकिन निरीक्षण के दौरान, एमएचआरसी की टीम ने पाया कि जेल के कुछ कैदियों को उनकी सजा पूरी होने के बाद भी केंद्रीय जेल में “अवैध रूप से हिरासत में” रखा गया था. म्यांमार के एक नागरिक को 2018 से जबकि कई अन्य को 2021 से सजा काटते हुए पाया गया.

इंफाल के एक वकील ने दिप्रिंट को बताया, “राज्य सरकार की नजर में वे अवैध अप्रवासी हैं, और इसलिए उन्हें जेल में बंद रखा गया है. राज्य उन्हें शरणार्थी नहीं मान सकता क्योंकि उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत दोषी ठहराया गया था, लेकिन वे पहले ही साल छह महीने की सजा भुगत चुके हैं और उन्हें जेल से रिहा किया जाना चाहिए. या फिर उनके वापस लौटने तक उन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा जाना चाहिए.”

एमएचआरसी द्वारा निरीक्षण किया गया एफडीसी वही केंद्र है जहां जनवरी में 32 वर्षीय म्यांमार के नागरिक लामखोचोन गुइटे की मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद शरणार्थी अधिकारों के लिए काम करने वाले अधिकार समूहों की ओर से काफी आपत्ति जताई गई थी. म्यांमार के तमू टाउनशिप के सयारसन गांव के लामखोचोन गुइटे को 70 अन्य म्यांमार नागरिकों के साथ हिरासत में रखा गया था, जिन्हें 27 जनवरी को तेंगनौपाल जिले के मोरेह उप-मंडल से गिरफ्तार किया गया था.

डिटेंशन सेंटर में अधिकांश म्यांमार के नागरिक आजीविका की तलाश में भारत आए थे. कुछ लोग कोविड-19 महामारी से पहले आए थे और कई फरवरी 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद से जुंटा के अत्याचारों से भाग कर आए थे. साल 2021 में म्यांमार में नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की चुनी हुई सरकार को सत्ता से हटा दिया था.

एमएचआरसी के दौरे के समय, डिटेंशन सेंटर में 105 म्यांमार नागरिक थे, जिनमें से 75 पुरुष और 30 महिलाएं थीं, जिनमें छह बच्चे भी शामिल थे. मणिपुर के रहने वाले लोग ज्यादातर म्यांमार के सागांग क्षेत्र, चिन राज्य और मैगवे क्षेत्र से हैं, और बड़े पैमाने पर कुकी-चिन-ज़ोमी-मिज़ो जनजाति के हैं, जो एक-दूसरे से जातीय और पारिवारिक संबंधों से बंधे हैं.

सागांग में सैन्य छापों से भागकर, म्यांमार नागरिक मणिपुर के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गुप्त मार्ग अपनाते हुए मोरेह के माध्यम से भारत में प्रवेश करते हैं. चिन राज्य की सीमा पश्चिम में मिजोरम और उत्तर में मणिपुर से लगती हैं.

भारत और म्यांमार चार राज्यों मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में 1,643 किलोमीटर का बॉर्डर शेयर करते हैं. दोनों देशों के पास एक मुक्त आवाजाही व्यवस्था (एफएमआर) भी है जो सीमा पर रहने वाले लोगों को बिना वीजा के एक-दूसरे के क्षेत्रों में 16 किलोमीटर की यात्रा करने की अनुमति देती है. पड़ोसी देश के साथ मणिपुर 390 किलोमीटर बॉर्डर शेयर करता है.

Inside the Foreigner Detention Centre near Manipur Central Jail at Sajiwa of Imphal East district | Karishma Hasnat | ThePrint
इंफाल पूर्वी जिले के सजीवा में मणिपुर सेंट्रल जेल के पास फॉरेन डिटेंशन सेंटर के अंदर का दृश्य | फोटो: करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

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एमएचआरसी टीम को क्या मिला?

अपने दौरे के दौरान एमएचआरसी ने डिटेंशन सेंटर और केंद्रीय जेल में भोजन, आवास और स्वास्थ्य सहित अन्य सुविधाओं के बारे में जानकारी ली.

ऐसा पता चला है कि दौरे के समय, डिटेंशन सेंटर केंद्रीय जेल के “कार्यवाहक जेलर” के प्रभार में था, जिसे राज्य मानवाधिकार निकाय ने “अनुचित” पाया.

डिटेंशन सेंटर के एक कमरे में कुल 26 पुरुषों को रखा गया था, जबकि 30 महिलाओं को पास के दूसरे कमरे में रखा गया था. हिरासत में लिए गए लोगों में दो गर्भवती महिलाएं और एक शिशु भी शामिल हैं. कमरों में फर्श की चटाई पर मुड़े हुए कम्बल रखे हुए थे. प्रत्येक कमरे में दो अटैच्ड बाथरूम थे.

एक डॉक्टर हर सप्ताह के अंत में कैदियों से मिलने जाता था. दो गर्भवती महिलाओं को फोलिक एसिड और कैल्शियम की गोलियां दी जाती थी. इसकी जानकारी डिटेंशन सेंटर में रहने वाली महिलाओं के साथ बातचीत के दौरान दिप्रिंट को पता चला. गर्भवती महिलाओं ने कहा कि उन्हें बच्चों के कपड़े और पौष्टिक भोजन की अत्यंत जरूरत है.

अधिकांश कैदियों ने डिटेंशन सेंटर में परोसे जाने वाले भोजन के बारे में शिकायत की. कैदियों ने अपनी शिकायत में कहा कि उन्हें खाने में चावल, जो कभी-कभी “अधपका” रहता है, दाल और उबली हुई गोभी दी जाती है.

एक कैदी ने एमएचआरसी टीम को बताया, “सुबह 8 बजे नाश्ता दिया जाता है जिसमें चाय और रोटी रहती है. 10 बजे दोपहर का भोजन और 3.30 बजे रात का खाना दिया जाता है.” इस बारे में पूछे जाने पर केयरटेकर ने कहा कि “निर्देश” के तहत शाम 5 बजे गेट बंद होने से पहले भोजन परोसा जाना चाहिए, इसके चलते जल्दी खाना दिया जाता है.

इसके बाद जस्टिस साहा ने कहा, “आप शाम 5 बजे उन पर ताला कैसे लगा सकते हैं? यह जेल नहीं, बल्कि डिटेंशन सेंटर है. आप उनके भोजन और स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी अधिकारों को नहीं छीन सकते. भले ही वे दोषी हों या विचाराधीन कैदी हों.”

हालांकि जेल अधीक्षक भद्रिका ने दिप्रिंट को बताया कि ये फैसला पिछली घटनाओं को देखते हुए उठाए गए थे जब जनवरी में म्यांमार के तीन नागरिक चुराचांदपुर जिले के “अस्थायी जेल” से भाग गए थे.

‘काम की तलाश में भारत आए थे’

म्यांमार के चिन राज्य के लुनमुअल गांव की 26 वर्षीय जेनी को हिरासत में लिए हुए चार महीने हो गए हैं. उसने भारत में प्रवेश करने के लिए मिजोरम में सीमा पार की थी और पुणे, महाराष्ट्र चली गई थीं.

उसने दिप्रिंट को बताया, “मैं काम ढूंढने के लिए भारत आई थी. मैं पुणे में एक रेस्तरां में काम कर रही थी और मैंने मणिपुर के रास्ते घर लौटने के बारे में सोचा. मुझे जनवरी में इंफाल हवाई अड्डे पर हिरासत में लिया गया था.”

40 वर्षीय विनबो ने 2018 में भारत में प्रवेश किया था, जबकि 52 वर्षीय आंग क्या वू ने 2021 में मणिपुर के चुराचांदपुर में सीमा पार की थी. दिप्रिंट से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि वे उन 80 म्यांमार नागरिकों में से थे, जिन्होंने काम करने के लिए “बिना दस्तावेजों” के भारतीय क्षेत्र की यात्रा की थी. विनबो ने कहा कि उनके नाबालिग बच्चे जेल की सजा पूरी करने के बाद भी अपनी मां के साथ इंफाल के केंद्रीय जेल में बंद हैं.

इससे पहले जनवरी में मोरेह के मामले पर बात करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट सरुंगबाम मंगलेबी की अदालत ने कहा था कि 27 जनवरी को मणिपुर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 71 म्यांमार नागरिक भारत में “अवैध अप्रवासी” के रूप में नहीं, बल्कि “शरणार्थी” के रूप में आए थे, जिनके पास “कोई विकल्प नहीं था”. ये कुछ समय के बाद अपने देश लौट जाते. इसके बाद अदालत ने आरोपी को सजीवा स्थित एफडीसी में भेज दिया था.

अदालत ने 1951 के शरणार्थी सम्मेलन या शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन से ‘शरणार्थियों’ की परिभाषा का हवाला दिया था, जो एक शरणार्थी को “किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो किसी समस्या के कारण अपने मूल देश में लौटने में असमर्थ या अनिच्छुक हैं.” इसमें जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनीतिक राय के कारणों से सताए जाने का डर की बात की गई थी.

यह स्वीकार करते हुए कि भारत 1951 शरणार्थी कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, अदालत ने बताया था कि “भारत यूडीएचआर (यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स, 1948) का एक पक्ष है. खासकर अनुच्छेद 14, जिसमें बताया गया है कि “हर किसी के पास हैं उत्पीड़न से बचने के लिए दूसरे देशों में शरण लेने और अपना जीवन बिताने का अधिकार है.”

पिछले साल अप्रैल में, सुप्रीम कोर्ट ने मई 2021 में मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें सात म्यांमार नागरिकों को संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) की सुरक्षा पाने के लिए नई दिल्ली की यात्रा करने के लिए सुरक्षित मार्ग की अनुमति दी गई थी. शीर्ष अदालत को सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि संबंधित व्यक्तियों का “पता नहीं चल पा रहा है” और उन्होंने “अवैध रूप से” भारत में प्रवेश किया था और मोरेह में शरण ली थी.

मणिपुर सेंट्रल जेल में, म्यांमार के बंदियों के अलावा, दूसरे अन्य कैदी मणिपुर, असम और यहां तक ​​​​कि गुजरात से भी हैं. एक सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि उनमें से ज्यादातर को नशीले पदार्थ और प्रतिबंधित पदार्थ ले जाने के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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