नई दिल्ली: नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) ने इंदौर प्रशासन द्वारा सीरो-सर्विलांस सर्वे कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जो मंगलवार से शुरू हो रहा है.
सोमवार को जारी प्रशासन के बयान के अनुसार, 170 स्वास्थ्य कार्यकर्ता मध्य प्रदेश के शहरों के 85 वार्डों का सर्वेक्षण करेंगे जो क्षेत्र पहले प्रमुख कोरोनावायरस हॉटस्पॉट रह चुके हैं.
एक सीरो सर्वेक्षण में, संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी की उपस्थिति का पता लगाने के लिए व्यक्तियों के एक समूह के रक्त सीरम का परीक्षण किया जाता है, जो इस मामले में सार्स-कोवी-2 है. यह उन व्यक्तियों की पहचान करने में भी मदद करता है जो पहले वायरस से संक्रमित थे और अब ठीक हो गए हैं.
इंदौर में यह सर्वेक्षण लगभग सात दिनों तक चलने और 7,000 नमूने एकत्र किए जाने की उम्मीद है. प्रत्येक टीम- जिसमें प्रयोगशाला तकनीशियन, नर्स और छात्र नर्स भी शामिल होंगे- हर दिन 10-25 नमूने एकत्र करेंगे.
जिला कलेक्टर मनीष सिंह ने अपने बयान में कहा कि राजस्व अधिकारी, पुलिसकर्मी, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम), तहसीलदार, नायब तहसीलदार और पटवारी सभी अपने-अपने वार्ड में स्वास्थ्य कर्मचारियों की मदद करेंगे.
इंदौर में कोविड-19 के 8,724 मामले और अब तक 333 मौतें दर्ज की गई हैं. यहां अब तक 1,57,063 परीक्षण किए गए हैं.
दिल्ली, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बाद सीरो सर्वेक्षण करने वाला मध्य प्रदेश चौथा राज्य होगा.
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सर्वे का विवरण
सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज की डीन और सीरो सर्वेक्षण टीम की सदस्य डॉ ज्योति बिंदल के अनुसार, ‘सैंपल में 33 प्रतिशत बच्चे, 33 प्रतिशत महिलाएं और 33 प्रतिशत पुरुष शामिल हैं.’
उन्होंने कहा कि 1-18 वर्ष की उम्र के बच्चों को इसमें शामिल किया गया है.
अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि सर्वे ‘पूरी तरह से उम्र और जेंडर के मामले में रेंडम हो’, ये सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया जा रहा है.
स्वास्थ्य कार्यकर्ता रक्त के दो नमूने एकत्र करेंगे, एक नस से, जो एक कोशिका ट्यूब में जमा किया जाएगा और दूसरा उंगली से लिया जाएगा. नमूनों को एक कागज पर भिगोया जाएगा और अध्ययन के लिए संरक्षित किया जाएगा.
एमजीएम में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख और राज्य सीरो सर्वेक्षण टीम की सदस्य डॉ अनीता मुथा ने दो नमूनों की आवश्यकता के बारे में बताते हुए कहा, ‘यदि अध्ययन का निष्कर्ष दोनों रक्त नमूनों में एंटीबॉडी का स्तर समान बताता है, तो वीन्स से रक्त की जरूरत खत्म हो जाएगी.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसा करने से दूसरे जिलों में सर्वे करने में हमें मदद मिलेगी वो भी कम खर्च में.’
सभी नमूनों का परीक्षण एलिसा-आधारित रैपिड एंटीबॉडी परीक्षण का उपयोग करके किया जाएगा. एंजाइम-लिंक्ड इम्युनोसॉरबेंट एस्से (एलिसा) को विशेष रूप से एक समय में बड़ी संख्या में नमूनों की जांच के लिए डिज़ाइन किया गया है और ये बड़ी आबादी में बीमारी के प्रसार का पता लगाने के लिए उपयुक्त है.
दिप्रिंट से बात करते हुए अतिरिक्त कलेक्टर अभय बेडेकर ने कहा, ‘170 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम को दो बार प्रशिक्षित किया गया है. एक प्रशिक्षण सत्र तीन दिन पहले आयोजित किया गया था और नवीनतम सत्र आज (सोमवार) को आयोजित किया गया था.’
उन्होंने कहा, ‘हमने उन्हें सात दिनों का समय दिया है लेकिन हमें विश्वास है कि वे नमूना संग्रह प्रक्रिया को पांच दिन के भीतर खत्म कर लेंगे.’
जिले की एक मैपिंग भी कराई गई थी और यह निर्धारित किया गया था कि 18 वर्ष से कम आयु के हर तीसरे व्यक्ति का नमूना एकत्र किया जाएगा. इसका मतलब है कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों से लगभग 2,300 नमूने लिए जाएंगे.
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एंटीबॉडी के लिए रक्त दाताओं के परीक्षण का प्रस्ताव
एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने रक्त दाताओं पर एंटीबॉडी परीक्षण करने का प्रस्ताव भी दिया है.
अस्पताल के अधिकारियों का दावा है कि इससे सर्वेक्षण के लिए आवश्यक लागत और मानव संसाधन कम लगेंगे क्योंकि ब्लड बैंक पहले से ही चिकित्सा उपकरणों से लैस हैं और दाता स्वेच्छा से अस्पताल में आते हैं.
अस्पताल में ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ अशोक यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस सुझाव को बैठक में नोट किया गया. अब तक, हमारे पास 60-70 डोनर आए हैं. हम अन्य बीमारियों के साथ-साथ कोविड एंटीबॉडी के लिए उनका परीक्षण कर सकते हैं.’
जबकि प्रस्ताव को डिविजनल आयुक्त और प्रमुख सचिव द्वारा मंजूरी मिल गई है. उच्च अधिकारियों से आधिकारिक मंजूरी मिलनी अभी बाकी है.
यादव ने बताया कि इस प्रक्रिया में दो पायलट ट्यूबों में दाताओं का रक्त लेना शामिल होगा. नियमित प्रोटोकॉल के अनुसार- एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, मलेरिया और सिफलिस जैसी कई बीमारियों के लिए रक्त की पहले ही जांच कर ली जाती है- सूची में कोविड एंटीबॉडी के लिए परीक्षण को जोड़ा जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘जब हम जान जाते हैं कि व्यक्ति के पास एंटीबॉडी हैं, तो हम उन्हें प्लाज्मा दान के लिए भी कह सकते हैं.’
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