रायपुर: प्रदेश में उद्योगों को दोबारा चालू करने के सरकारी आश्वासन के बाद भी श्रमिकों के निरंतर घर लौटने से छत्तीसगढ़ में उद्योगपतियों की चिंता बढ़ती जा रही है. उद्योगपतियों का कहना है कि केंद्र सरकार ने आने वाले दिनों में यदि औद्योगिक उत्पादन के लिए कोई ठोस कदम नही उठाया तो उन्हें कुशल (स्किल्ड) श्रमिकों के साथ-साथ बंद पड़े उद्योगों के लिए वर्किंग कैपिटल की भारी कमी का सामना करना पड़ेगा.
छत्तीसगढ़ के उद्यमियों और औद्योगिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने दिप्रिंट को बताया कि प्रदेश की औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले असंगठित और कुशल कारीगर दोनों को मिलाकर करीब 60-70 प्रतिशत श्रमिक अपने घर वापस जा चुके हैं. उद्यमियों के अनुसार श्रमिकों का पलायन अभी भी जारी है जो आने वाले दिनों में प्रदेश के औद्योगिक उत्पादन की वापसी में एक बड़ी बाधा बन सकता है. इन उद्यमियों को चिंता इस बात से भी है कि वापस जाने वाले मजदूर अब जल्दी नही लौटेंगे.
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मज़दूरों का भरोसा टूटा, फैक्ट्रियों से 70 प्रतिशत श्रमिक वापस गए
दिप्रिंट से बात करते हुए कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) के छत्तीसगढ़ प्रभारी सतीश पांडेय कहते हैं ‘सरकार के आश्वासन के बावजूद भी दूसरे राज्यों के श्रमिकों का वापस जाना नही रुक रहा है. ये ज्यादातर स्किल्ड (दक्ष) श्रमिक हैं जिनका जल्दी लौटना अब मुश्किल होगा. ये वो मजदूर हैं जो आज सौ रुपए में अपने क्षेत्र में काम करने को तैयार हो जाएंगे लेकिन दूसरे राज्य में 500 रुपए के लिए भी नही जाएंगे. बाहर जाकर काम करने के प्रति अब इनका विश्वास टूट चुका है जिससे इनको वापस आने में काफी वक्त लगेगा. प्रदेश के उद्योगों को स्थानीय श्रमिकों पर ज्यादा निर्भर होना पड़ेगा लेकिन इन श्रमिकों में ज्यादातर असंगठित क्षेत्र से हैं और तकनीकी कार्यों में दक्षता भी कम है.’
ऐसा ही कुछ कहना है रायपुर स्थित उरला इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष अश्विन गर्ग का जिनके अनुसार वापस जा रहे उत्तर प्रदेश, बिहार या मध्य प्रदेश के श्रमिक तकनीकी तैर पर काफी दक्ष हैं और इनके चले जाने से उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है. गर्ग का कहना है, ‘छत्तीसगढ़ के औद्योगिक इकाइयों से तकरीबन 70 प्रतिशत श्रमिक अपने घर वापस जा चुके हैं. इनकी कमी फिलहाल कोई पूरी नहीं कर सकता है. इन मजदूरों में बाहर काम करने के प्रति अविश्वास का अंदाज इस बात से लग जाता है कि इन्होंने अपने कार्यस्थलों पर रुकने से अच्छा वहां से 1000-1500 किलोमीटर पैदल या फिर साइकिल से जाना भी मंजूर था.’
गर्ग ने कहा, ‘छत्तीसगढ़ के जो श्रमिक दूसरे राज्यों से लौट रहे हैं वे तकनीकी दक्षता में यहां से वापस जाने वाले मजदूरों से कम है और फिर वे भी काम पर इतनी आसानी से नही आएंगे क्योंकि उनकी वापसी बहुत ही मुश्किल से हुई है, अब वे कुछ दिन घरों में समय बिताना चाहेंगे. जिन हालातों में राज्य के प्रवासी श्रमिक घर वापस लौटे हैं उससे लगता नहीं है कि ये आने वाले 2-3 महीनों तक उद्योगों में काम करने को इच्छुक होंगे.’ गर्ग के अनुसार 70 प्रतिशत मजदूरों के वापस जाने से राज्य सरकार द्वारा 30-40 प्रतिशत मजदूरों के साथ काम शुरू करने की छूट भी उन्हें अपर्याप्त लग रही है.
वर्किंग फण्ड की भारी कमी अनिश्चितता में उद्योग
प्रदेश के उद्यमियों का कहना है की लॉकडाउन के लंबे अंतराल के दौरान उनका रोलिंग कैपिटल बाजार में फंस गया है जिससे अब उन्हें काम दोबारा चालू करने के लिए वर्किंग फण्ड की अवश्यकता है लेकिन इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने से प्रदेश के उद्यमी अभी अनिश्चितता के दौर में हैं.
‘लॉकडाउन में पूरे देश के उद्योगों का 10 से 15 लाख करोड़ रुपये रोलिंग फण्ड के रूप में फंसा हुआ है. इसमें छत्तीसगढ़ के उद्योगों का करीब 30,000 करोड़ रुपए रोलिंग फंड के रूप में मार्केट में फंसा है जिसे वापस पाने के लिए सरकार से वर्किंग कैपिटल की है सरकार को कोई विशेष आर्थिक पैकेज देने की आवश्यकता है’.
हालांकि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक लाख करोड़ के वर्किंग फण्ड पैकेज की अपनी सरकार से मांग की है लेकिन केंद्र द्वारा इस मामले में अभी कोई ठोस निर्णय नही लिया गया है. हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार इस दिशा में जल्द कोई उद्योगों को बचाने वाला निर्णय ले.’
90 प्रतिशत बाजार बंद, किसके लिए बढ़ाएं उत्पादन
राज्य के उद्यमियों का कहना है कि छत्तीसगढ़ एक ऐसा उत्पादक राज्य है जिसका 90 प्रतिशत बाजार अभी पूरी तरह से कोविड-19 की जकड़ में है.
गर्ग के अनुसार यही कारण है की छत्तीसगढ़ के माल की डिमांड पूरी तरह से ठप है. गर्ग कहते हैं, ‘हमारे उद्योगों का 90 प्रतिशत उत्पाद महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के बाजारों में जाता है लेकिन यही राज्य कोविड-19 संक्रमण से सबसे अधिक प्रभावित हैं जिससे हमारे माल की डिमांड अभी जीरो है. यदि बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हो जाय तो भी माल की खपत कहां होगी.’ कुछ इकाइयों में काम चालू तो हो गया है, उनके पास मांग भी हैं लेकिन यह शार्ट टर्म मांग है जो छोटे स्थानीय स्टॉकिस्टों के द्वारा आयी है.’
गर्ग और पांडेय का मनना है की प्रदेश के कोर सेक्टर जिसमे स्टील, रोलिंग मिल्स, पावर और सीमेंट में उत्पादन तो चालू हो गया है लेकिन डिमांड के अभाव में पीएसयू को छोड़कर बाकी कारखाने कितना उत्पादन करेंगे इसमें संशय है.
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सरकार ने माना परेशानी लेकिन इससे निपटने की गिनाई तैयारी
दिप्रिंट ने जब सरकार का पक्ष जानना चाहा कि उद्योगों की परेशानी का निवारण कैसे होगा तो विभाग के अतिरिक्त निदेशक प्रवीण शुक्ला ने माना कि प्रदेश के उत्पादों का 90 प्रतिशत मार्केट अभी ठप्प पड़ा है लेकिन सरकार के अपने स्तर पर इससे निपटने के लिए प्रयास जारी हैं. शुक्ला ने बताया ‘राज्य सरकार ने निर्माण की अपनी सभी परियोजनाएं शुरू कर दी हैं जिससे हमारे उद्योगों के कोर सेक्टर को बाजार मिल सके’.
शुक्ला ने आगे कहा कि ‘छत्तीसगढ़ के उद्योगों में 80 प्रतिशत श्रमिक राज्य से हैं, कुछ विशेष तकनीकी कार्य जैसे फर्नान्स, या फॉउंडरी में काम करने वाले श्रमिक ही अन्य राज्यों से आए हैं लेकिन हमारे लिए बड़ी चुनौती घर चले गए श्रमिकों को काम पर वापस लाना है क्योंकि अब इनके गांव के ही साथी इन्हें नहीं आने दे रहे हैं. गांव वाले इन श्रमिकों को धमकी दे रहें है कि यदि वे गांव से बाहर गए तो वहां दोबारा नहीं आने दिया जाएगा’.