नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) यूएनडीपी के सर्वेक्षण में शामिल करीब 65 प्रतिशत कूड़ा बीनने वालों या ‘सफाई साथियों’ के पास औपचारिक शिक्षा नहीं है और यह प्रतिशत सामाजिक रूप से वंचित समूहों में अधिक है।यह जानकारी यूएनडीपी ने अपनी रिपोर्ट में दी है।
विश्लेषण के मुताबिक सर्वेक्षण में शामिल आधे से अधिक प्रतिभागी घूम-घूम कर कूड़ा बीनने, सड़कों पर झाडू लगाने या कूड़ा डालने के स्थान से कूड़ा बीनने का काम करते हैं और उच्च श्रेणी के असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा भारत में सफाई साथी की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘ सामाजिक रूप से वंचित समूह और वे जिनके पास औपचारिक शिक्षा नहीं है अधिकतर अनौपचारिक कार्यों में सलंग्न हैं।’’
यह विश्लेषण भारत में बड़े पैमाने पर किए गए आकलनों पर आधारित है जिसमें 14 शहरों के 9,300 सफाई साथियों को शामिल किया गया है।
यह सर्वेक्षण यूएनडीपी के प्लास्टिक कचरा प्रबंधन कार्यक्रम के तहत चल रही परियोजना ‘‘उत्थान- राइज विद रिजिलियंस’ के हिस्से के तौर पर किया गया है। ‘उत्थान’ यूएनडीपी का भारत में कोविड-19 प्रतिक्रिया कार्यक्रम है जो सफाई साथियों को सरकारी योजनाओं तक पहुंच देने और अधिक लचीला समुदाय बनाने में मदद करता है।
सर्वेक्षण के मुताबिक 10 सफाई साथियों में से छह ने बताया कि बैंक में उनके खाते हैं जबकि केवल 21 प्रतिशत को जनधन योजना का लाभ मिला है।
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘आधार और मतदाता पहचान पत्र क्रमश: 90 और 60 प्रतिशत से अधिक सफाई साथी के पास है।इसके अलावा अन्य पहचान पत्र जैसे जन्म, आय, जाति, व्यवसाय प्रमाणपत्र की पूरे समुदाय में भारी कमी है।’’
रिपोर्ट के मुताबिक करीब 50 प्रतिशत सफाई साथी के पास राशन कार्ड है, लेकिन स्वास्थ्य बीमा पांच प्रतिशत से भी कम सफाई साथी के पास है।
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘90 प्रतिशत सफाई साथ को निरंतर पेयजल की आपूर्ति होती है जबकि 80 प्रतिशत बिजली का इस्तेमाल करते हैं। स्वच्छता सुविधा केवल 60 प्रतिशत सफाई साथी के पास है।’’
भाषा धीरज नरेश
नरेश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.