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बुधवार, 30 अप्रैल, 2025
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33 साल में हुए 57 तबादले, IAS अधिकारी अशोक खेमका आखिरकार हुए सेवानिवृत्त

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले खेमका को अपने करियर के दौरान इतनी बार पदस्थापित किया गया कि औसतन हर 7 महीने में उनका एक तबादला होता था. उनका पूरा करियर विवादों से भरा रहा है.

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गुरुग्राम: भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने अडिग रुख और लगातार तबादलों के कारण अपने करियर में 57 अलग-अलग पोस्टिंग के लिए मशहूर रहे हरियाणा कैडर के 1991 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी अशोक खेमका 33 साल की सेवा के बाद बुधवार को सेवानिवृत्त हो गए.

अपने तीन दशक से अधिक के करियर में खेमका ने भारत के सबसे अधिक स्थानांतरित सिविल सेवकों में से एक के रूप में ख्याति अर्जित की — औसतन हर 7 महीने में उनका एक तबादला होता था. पोस्टिंग में यह बदलाव अक्सर उनके द्वारा अपने विभागों में कथित गड़बड़ियों को उजागर करने और राजनीतिक और नौकरशाही प्रतिष्ठानों के साथ परिणामी टकराव के मद्देनज़र हुआ.

2004 से 2014 के बीच, हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के तहत, उनका 21 से अधिक बार तबादला किया गया.

2014 के बाद से मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के तहत यह गति जारी रही, जिसमें पहले पांच साल में ही सात तबादले हुए.

खेमका को अक्सर राज्य के उन विभागों में भेजा जाता था जिन्हें लो-प्रोफाइल माना जाता था, जैसे अभिलेखागार, पुरातत्व, मुद्रण और स्टेशनरी, जिससे उन्हें दरकिनार किए जाने की चिंताएं व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया जाता था.

2019 में एक्स पर एक पोस्ट में, खेमका ने पुरातत्व और संग्रहालय विभाग में अपने 53वें तबादले के बाद अफसोस जताया कि “ईमानदारी का इनाम अपमान है”.

जनवरी 2023 में अभिलेखागार विभाग में अपने 55वें तबादले के बाद, उन्होंने एक्स पर लिखा, “archived again” और तत्कालीन हरियाणा के मुख्य सचिव को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में उनका वर्कलोड “हर हफ्ते 2-3 घंटे से ज़्यादा नहीं” था.

उन्होंने तर्क दिया कि उनके रैंक के एक अधिकारी को हर हफ्ते कम से कम 40 घंटे का वर्कलोड मिलना चाहिए, यह सुझाव देते हुए कि उनके कार्य जानबूझकर महत्वहीन थे.

अक्टूबर 2022 में, जब हरियाणा सरकार ने दूसरों को सचिव-रैंक पर पदोन्नत करते हुए उनके दावे को नज़रअंदाज किया, तो खेमका ने सोशल मीडिया पर एक निराशाजनक संदेश पोस्ट किया.

उन्होंने एक्स पर लिखा, “भारत सरकार में सचिव के रूप में नियुक्त मेरे बैचमेट्स को बधाई! यह खुशी का मौका है, लेकिन खुद को पीछे छोड़ देने की निराशा भी उतनी ही है. सीधे दरख्तों को हमेशा पहले काटा जाता है. कोई पछतावा नहीं. नए संकल्प के साथ, मैं आगे बढ़ता रहूंगा.”

खेमका का सबसे हालिया तबादला, उनका 57वां, दिसंबर 2024 में हुआ था, जब उन्हें भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी नवदीप विर्क की जगह परिवहन विभाग का अतिरिक्त मुख्य सचिव नियुक्त किया गया था.

महत्वपूर्ण मानी जाने वाली यह पोस्टिंग उनकी सेवानिवृत्ति से ठीक चार महीने पहले हुई थी और एक दशक के बाद विभाग में उनकी वापसी हुई थी.


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कौन हैं अशोक खेमका?

30 अप्रैल, 1965 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में जन्मे खेमका एक साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं. उनके पिता शंकरलाल खेमका एक जूट मिल में अकाउंटेंट थे.

खेमका की शैक्षणिक यात्रा अनोखी रही है, जो उनकी बौद्धिक क्षमता को दर्शाती है. दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से मैथ्स ग्रेजुएट, उन्होंने 1988 में खड़गपुर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) से कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग में बी.टेक की डिग्री हासिल की.

उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR), मुंबई से कंप्यूटर विज्ञान में पीएचडी की है.

इसके बाद खेमका ने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन और फाइनेंस में विशेषज्ञता के साथ एमबीए की डिग्री और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) से अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की, साथ ही पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ में ग्रेजुएशन की डिग्री भी हासिल की, जो उन्होंने 2016 से 2019 तक अपनी सेवा के दौरान हासिल की.

खेमका 2012 में राष्ट्रीय स्तर पर तब चर्चा में आए, जब हरियाणा के भूमि समेकन और जोत विभाग के महानिदेशक के रूप में उन्होंने पूर्व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से जुड़ी कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी और गुरुग्राम के मानेसर-शिकोहपुर में रियल्टी प्रमुख डीएलएफ के बीच 3.5 एकड़ ज़मीन सौदे के म्यूटेशन को रद्द कर दिया.

इस सौदे पर सवाल उठाने के बाद, खेमका का तुरंत तबादला कर दिया गया. बाद में उन्होंने दावा किया कि भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए उन्हें दंडित करने के लिए यह तबादला किया गया.

हालांकि, बाद की सरकारी समितियों ने वाड्रा को गलत कामों से मुक्त कर दिया, लेकिन खेमका ने अपना रुख बरकरार रखा, जिसे मार्च 2020 में प्रकाशित जस्ट ट्रांसफर्ड: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अशोक खेमका नामक किताब में अच्छी तरह से समझाया गया है.

पत्रकार भवदीप कांग और नमिता काला द्वारा लिखी गई किताब खेमका की यात्रा को बताती है, जिन्हें तब तक 27 साल में 53 तबादलों का सामना करना पड़ा और उन्होंने अपनी ईमानदारी से समझौता करने से इनकार कर दिया था.

लेखकों ने किताब के बारे में कहा, “2012 में रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ से जुड़े एक विवादास्पद ज़मीन के सौदे को रद्द करने के बाद सुर्खियों में आए खेमका ने लगातार राजनीतिक हस्तक्षेप और प्रणालीगत भ्रष्टाचार को चुनौती दी है. दरकिनार किए जाने, आरोप-पत्र दाखिल किए जाने और केंद्रीय पदस्थापना से वंचित किए जाने के बावजूद, उनकी अटूट ईमानदारी ने उन्हें नौकरशाही के साहस का प्रतीक बना दिया है. यह किताब एक ऐसे व्यक्ति की कहानी के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक प्रणाली के बारे में एक आकर्षक अंदरूनी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, जिसने पद से अधिक सिद्धांत को चुना.”

2013 में, हरियाणा बीज विकास निगम के प्रबंध निदेशक के रूप में कार्य करते हुए, खेमका ने फफूंदनाशकों और बीजों की खरीद में कथित गड़बड़ियों को उजागर किया, जिसके कारण उनका एक और तबादला हुआ. उनके कार्यों ने कथित तौर पर राज्य के खजाने को कई करोड़ रुपये बचाए.

हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग में अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान, खेमका ने भर्ती प्रक्रियाओं में संभावित अनियमितताओं को चिह्नित किया, जिसके परिणामस्वरूप उनका एक और तबादला हुआ.

2014 में केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद, ऐसी खबरें आईं कि खेमका को प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रतिनियुक्त किया जा सकता है. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ.

योगदान

लगातार तबादलों के बावजूद, खेमका ने प्रशासनिक सुधारों में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने हरियाणा में ज़मीन अभिलेखों के कम्प्यूटरीकरण का बीड़ा उठाया और कई ई-गवर्नेंस पहलों को लागू किया, जिससे सार्वजनिक सेवा वितरण में पारदर्शिता में सुधार हुआ.

परिवहन विभाग में सेवा करते हुए उन्होंने प्रौद्योगिकी-संचालित सुधार पेश किए, जिससे वाहन रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग में भ्रष्टाचार कम हुआ.

सामाजिक न्याय विभाग में उनके कार्यकाल के दौरान पेंशन योजनाओं के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का कार्यान्वयन देखा गया, जिससे बिचौलियों का सफाया हुआ और यह सुनिश्चित हुआ कि लाभ पात्र लाभार्थियों तक पहुंचे.

पिछले कुछ साल में खेमका को उनकी ईमानदारी के लिए नागरिक समाज संगठनों से व्यापक सार्वजनिक समर्थन और मान्यता मिली है. उनके करियर के चुनौतीपूर्ण समय के दौरान कई सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता और भ्रष्टाचार विरोधी समूह उनके पीछे खड़े रहे.

विभागीय जांच और कई पर्यवेक्षकों द्वारा “उत्पीड़न” के रूप में वर्णित किए जाने के बावजूद, खेमका शासन के प्रति अपने दृष्टिकोण में दृढ़ रहे.

उनके करियर की दिशा ने राजनीतिक बहसों को भी जन्म दिया. हरियाणा में विपक्षी दलों ने अक्सर उनके तबादलों को सत्तारूढ़ सरकार की ईमानदार अधिकारियों के प्रति “ज़ीरो टॉलरेंस” के सबूत के रूप में उद्धृत किया है. वैचारिक संबद्धता की परवाह किए बिना, लगातार सरकारों ने उन्हें बार-बार स्थानांतरित किया.

दुर्लभ सार्वजनिक बयानों और अपने सोशल मीडिया उपस्थिति के माध्यम से, खेमका ने कभी-कभी भारत की नौकरशाही प्रणाली पर विचार साझा किए हैं.

उन्होंने सिविल सेवकों के लिए निश्चित कार्यकाल और नौकरशाही को राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना काम करने के लिए अधिक स्वायत्तता की वकालत की है.

उनकी सेवानिवृत्ति एक विवादास्पद, लेकिन सिद्धांतवादी करियर का अंत है जो भारत में नौकरशाही की जटिलताओं को रेखांकित करता है.

जनवरी 2023 में उन्होंने तत्कालीन हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर को पत्र लिखकर “भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने” के लिए सतर्कता विभाग का नेतृत्व करने की पेशकश की थी.

उन्होंने कहा, “भ्रष्टाचार सर्वव्यापी है, जब मैं भ्रष्टाचार देखता हूं, तो मेरी आत्मा को ठेस पहुंचती है. कैंसर को जड़ से खत्म करने के अपने उत्साह में, मैंने अपने सेवा करियर का बलिदान कर दिया है.”

खेमका ने कहा, “अगर मौका मिला तो मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ वास्तविक लड़ाई होगी और कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी बड़ा या ताकतवर क्यों न हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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