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Sunday, 22 December, 2024
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किन पांच कारणों से मोदी सरकार के लिए प्रदर्शनकारी किसानों से निपटना मुश्किल हो रहा है

संदिग्ध व्यक्तियों और उपद्रवियों को रोकने के लिए प्रदर्शन स्थल वाले पूरे इलाके में कम से कम 400 वालंटियर तैनात किए गए हैं.

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चंडीगढ़: आंदोलनकारी किसानों और मोदी सरकार के बीच पांच दौर की बातचीत के बाद भी दिल्ली की लगातार घेराबंदी का कोई समाधान नहीं निकल पाया है. किसान नेताओं की प्रतिबद्धता, कुछ अलग ही तरह के आचरण और नेतृत्व के तौर-तरीकों के बीच कोई समझौता करने से इनकार आदि वे वजहें हैं जिन्होंने सरकार के लिए उनसे निपटना मुश्किल बना दिया है.

मॉडीफाइड ट्रॉलियां- लंबे जमावड़े के लिए तैयार

किसान कई महीनों तक दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले रहने की तैयारी करके आए हैं. ऐसी ट्रैक्टर ट्रॉलियों में यात्रा करना पंजाब में कोई नई बात नहीं है जो रात में सोने की व्यवस्था के लिहाज से बखूबी इस्तेमाल हो सकती है.

फतेहगढ़ साहिब में दिसंबर के अंतिम सप्ताह में आयोजित होने वाले वार्षिक तीन दिवसीय शहीदी जोर मेले के दौरान वहां लाखों लोग जुटते हैं और वहां ये विशेष तौर पर मॉडीफाइड ट्रॉलियां नज़र आना एक आम बात है.

पंजाब भर के ग्रामीण इन ट्रालियों में राशन, बर्तन, खाना पकाने का ईंधन, लकड़ी, गैस सिलेंडर और यहां तक कि बाइक (आसपास छोटी-मोटी दूरी तय करने के लिए) आदि लादकर लोगों के लिए लंगर आयोजित करने के इरादे से मेले में पहुंच जाते हैं. सड़क के किनारे पार्क करके वह इन ट्रॉलियों को हफ्ते के लिए अपना अस्थायी घर बना लेते हैं.

इन ट्रॉलियों के अंदर लकड़ी के तख्ते लगाकर ऊपर सामान रखने की जगह बनाई जाती है और नीचे वाले हिस्से को कुशन का इस्तेमाल करके लेटने-बैठने के योग्य बनाया जाता है. मेला चूंकि अत्यधिक सर्दी वाले मौसम में लगता है, इसलिए इन ट्रालियों को पूरी तरह से प्लास्टिक शीट से कवर किया जाता है.

चुन्नी कलां निवासी किसान गुरदर्शन सिंह ने कहा, ‘इसमें कोई अचरज की बात नहीं है कि किसान दिल्ली पहुंचे और ऐसे इन ट्रॉलियों के बाहर रहना और खाना पकाना शुरू कर दिया जैसे हमेशा से इसी तरह जीवन गुजारते आए हैं. लेकिन यह देखने में जितना आसान लगता है, उतना होता नहीं है.’


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मंच प्रबंधन- राजनीति से दूर रखना

हालांकि, ट्रालियां सिंघु बॉर्डर की ओर जाने वाली सड़क पर कई किलोमीटर की दूरी तक खड़ी की गई हैं लेकिन विरोध प्रदर्शन का मुख्य स्थल वह है जहां पर एक अस्थायी मंच बनाया गया है. यहां लाउडस्पीकर की व्यवस्था भी की गई है जिससे पूरे दिन किसानों को संबोधित किया जाता रहता है.

सरकार के साथ हुई बैठकों के नतीजे और भावी रणनीति सभी के बारे में अहम घोषणाएं यहीं से की जाती हैं. पिछले कुछ दिनों में किसान नेताओं के अलावा विभिन्न एक्टिविस्ट, गायकों, अभिनेताओं और खिलाड़ियों आदि ने इस मंच से भाषण दिया है. आंदोलन पर ध्यान केंद्रित रखने के उद्देश्य से किसान संगठनों ने 30 वालंटियर तैनात किए हैं जो इस पर कड़ी नज़र रखते हैं कि किसे मंच पर आकर बोलने का मौका दिया जाएगा.

बीकेयू (दकौंडा) के उपाध्यक्ष गुरमीत सिंह ने कहा, ‘किसी भी राजनेता को बोलने की अनुमति नहीं है. और खालिस्तानी विचारधारा रखने वाला मंच से नहीं बोलेगा. आंदोलन को बाधित या पटरी से उतारने की कोशिश कर सकने वालों का भी यहां कोई स्वागत नहीं है.’

संदिग्ध व्यक्तियों और उपद्रवियों को रोकने के लिए प्रदर्शन स्थल वाले पूरे इलाके में कम से कम 400 वालंटियर तैनात किए गए हैं.

रोटेटिंग प्रधान- कोई एक शक्ति केंद्र नहीं

यद्यपि पंजाब में किसान संगठनों के बीच काफी ज्यादा गुटबाजी होती है लेकिन इस प्रदर्शन के दौरान ये सभी गजब की एकजुटता दिखा रहे हैं. जून में 10 किसान यूनियनों के साथ इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी लेकिन सितंबर तक इन संगठनों की संख्या बढ़कर 31 हो गई. तब से ही इन संगठनों ने बैठकों के संचालन और निर्णय लेने के लिए एक लोकतांत्रिक तरीका अपना रखा है. हर बैठक रोटेशन में इन 31 यूनियनों में से एक के प्रमुख की अध्यक्षता में होती है.

गुरमीत सिंह ने बताया, ‘जिस दिन जो प्रधान होता है वही बैठक की अध्यक्षता करता है और बाद में फैसले के बारे में प्रेस को संबोधित करता है. किसी भी संगठन के नेता को महसूस नहीं होना चाहिए कि चूंकि वह एक छोटी यूनियन का नेतृत्व करता है इसलिए उसे बड़ी यूनियन के प्रधान जितनी अहमियत नहीं मिलती.’

इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि किसी भी नेता को बाकी संगठनों को साथ लिए बिना कोई फैसला लेने का हक नहीं है. गुरमीत सिंह ने कहा, ‘इससे किसी के लिए भी एकजुटता को तोड़ना मुश्किल हो जाता है क्योंकि ऐसे नेतृत्व में हर कोई मायने रखता है.’


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कोई दाना-पानी नहीं- नैतिक संकल्प का प्रदर्शन

इसे ‘सत्याग्रह’ करार देते हुए किसान नेताओं ने मंत्रियों के साथ बैठकों के दौरान सरकार की तरफ से किसी भी आदर-सत्कार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. इसके बजाये वे प्रदर्शन स्थल के लंगर में बना अपना खाना ही साथ लेकर पहुंचे और इसे विज्ञान भवन में फर्श पर बैठकर खाया.

गुरमीत सिंह ने कहा, ‘यह सरकार के साथ-साथ हमारे साथ यहां जुटे हजारों समर्थकों दोनों को यह बताता है कि हमारा संकल्प कितना अटूट है. पहले दिन जब हमने आतिथ्य स्वीकार किया, मंत्रियों ने बाहर आकर कहा कि हमने चाय पी और बातचीत सौहार्दपूर्ण थी.’

उन्होंने कहा, ‘इसके बाद ही हमने फैसला किया कि हम सरकार को यह संदेश नहीं देंगे कि हम पूरी तरह गंभीर नहीं हैं या उनके साथ चाय-कॉफी पीना चाहते हैं. यह हमारी आजीविका और अस्तित्व को बचाने का मामला है और हमारे आचार-व्यवहार से यह स्पष्ट झलकना भी चाहिए.’

हां या नहीं- निर्णायक फैसले का दबाव

किसान नेताओं ने शनिवार को बैठक के पांचवें दौर के दौरान वस्तुतः बातचीत को रोक दिया, जब सभी ने चुप्पी साध ली, उन्होंने एक तरह से मौन व्रत धारण कर लिया और मंत्रियों के सामने अपनी मांग स्पष्ट कर दी कि तीन कानूनों को रद्द करने पर हां या ना में जवाब चाहिए.

किसान नेता और बीकेयू (उग्राहन) के प्रमुख जोगिंदर सिंह उग्राहन ने शनिवार को विज्ञान भवन के बाहर मीडिया से बातचीत में कहा, ‘इस मांग के साथ कोई समझौता स्वीकार नहीं है. सरकार उन्हें संशोधित करने को तैयार है लेकिन यह हमारे लिए स्वीकार्य नहीं है.’

उन्होंने आगे जोड़ा, ‘चूंकि बातचीत में घूम-फिरकर वही बातें की जा रही थीं और कुछ भी नया निकलकर सामने नहीं आ रहा था इसलिए हमने उनसे सीधे तौर पर एक शब्द हां या ना— में जवाब देने के लिए कहने का फैसला किया.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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