नई दिल्ली: लिवरपूल विश्वविद्यालय और एबरिस्टविथ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को जाम्बिया के कलम्बो फॉल्स पुरातात्विक स्थल पर 476,000 साल पहले के इंटरलॉकिंग लॉग यानी लकड़ी के लट्ठों का ढेर मिला है. इससे पता चलता है कि प्रारंभिक मानव संरचनाओं के निर्माण के लिए पहले की तुलना में बहुत पहले लकड़ी का उपयोग कर रहे थे.
बुधवार को नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ यह अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि सबसे पुराने होमो सेपियन्स जीवाश्म 315,000 वर्ष पुराने हैं, जिसका अर्थ है कि ये लॉग 100,000 वर्ष से अधिक पुराने हैं.
प्रारंभिक पाषाण युग की लकड़ी की कलाकृतियां पुरातात्विक अभिलेखों में मिलना बहुत दुर्लभ बात है क्योंकि लकड़ी आमतौर पर इतने लंबे समय तक नहीं टिकती है. हालांकि, ज़ाम्बिया में लट्ठे को संरक्षित किया गया था क्योंकि वे जल जमाव वाले डिपॉज़िट्स में थे क्योंकि कलाम्बो फॉल्स में हमेशा उच्च जल स्तर होता था, जिससे संरक्षण के लिए अनूठी स्थितियां पैदा होती थीं.
जलमग्न लकड़ी संरक्षित हो जाती है क्योंकि सीमित ऑक्सीजन की आपूर्ति क्षय को धीमा कर देती है, और समय के साथ लकड़ी पर तलछट जमा होने से जीवाश्म संरचना भी बन जाती है.
अध्ययन में कहा गया है कि लॉग एक प्रकार की लकड़ी की कारीगरी को भी दर्शाते हैं जो पुरापाषाण युग के दौरान अफ्रीका या यूरेशिया में कहीं और नहीं देखी गई थी.
लकड़ियों के अलावा, वैज्ञानिकों ने कलम्बो साइट से एक कील, एक खुदाई करने वाली छड़ी, एक कटा हुआ लॉग और एक नोकदार शाखा भी बरामद की.
लकड़ी के अवशेषों पर कटे निशानों की जांच करके, शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि प्रारंभिक मनुष्यों ने बड़ी लकड़ियां बनाई और इकट्ठी कीं. धारणा यह है कि उन्होंने इसका उपयोग नींव या आवास जैसी संरचनाओं के हिस्सों को बनाने के लिए किया था, जो पुरातत्वविदों के लिए एक बहुत बड़े रहस्य जैसा है.
लकड़ी के उपयोग के शुरुआती उदाहरण भाले और खोदने वाली छड़ियों जैसे हथियारों तक ही सीमित हैं, लेकिन नई खोजें यह साबित कर सकती हैं कि जानबूझकर लकड़ी का काम पांच लाख साल पहले किया गया था. और पढ़ें.
विलुप्त जानवरों का पहला RNA विश्लेषण
वैज्ञानिकों ने 130 वर्षीय तस्मानियाई बाघ – एक प्रजाति जो अब विलुप्त हो चुकी है – की मांसपेशियों और त्वचा के ऊतकों से राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) को निकालकर और उसका विश्लेषण करके पैलियोजिनॉमिक्स के क्षेत्र में एक सफलता हासिल की है. यह पहली बार है कि किसी विलुप्त प्रजाति के संरक्षित नमूनों से आरएनए प्राप्त किया गया है.
पैलियाोजिनोमिक्स एक ऐसा क्षेत्र है जो प्राचीन और विलुप्त प्रजातियों के विकास, जनसंख्या परिवर्तन और पारिस्थितिक भूमिकाओं को समझने के लिए उनकी आनुवंशिक सामग्री का अध्ययन करता है.
जबकि डीएनए सिक्वेंसिंग इस क्षेत्र में एक मूल्यवान उपकरण रहा है, फिर इसकी अपनी सीमाएं हैं. यह इस बारे में विशिष्ट जानकारी प्रकट नहीं कर सकता है कि विभिन्न ऊतकों में जीन कैसे चालू या बंद होते हैं, कोशिकाओं में उनकी भूमिकाएं, या जीन कैसे विनियमित होते हैं. इस स्तर का विवरण प्राप्त करने के लिए, शोधकर्ता आरएनए – जीन अभिव्यक्ति में शामिल एक अणु – की ओर रुख करते हैं.
जीनोम रिसर्च जर्नल में प्रकाशित अध्ययन, जिसे इस महीने की शुरुआत में सार्वजनिक किया गया था, में कहा गया है कि आरएनए ने तस्मानियाई बाघ की आनुवंशिक गतिविधि, जैसे मांसपेशियों के प्रकार और रक्त से संबंधित विशेषताओं के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि का खुलासा किया.
शोध ने तस्मानियाई बाघ के जीनोम के एनोटेशन में भी सुधार किया, जिसका अर्थ है जीनोम के हिस्सों की पहचान करना और उनका वर्णन करना. शोधकर्ताओं को नए आनुवंशिक तत्व और माइक्रोआरएनए भी मिले जो पहले ज्ञात नहीं थे. इसके अलावा, अध्ययन ने सुझाव दिया कि ऊतक में प्राचीन आरएनए वायरस हो सकते हैं, जो हमें यह समझने में मदद कर सकते हैं कि कुछ वायरस कैसे विकसित हुए.
इस अध्ययन ने आरएनए का उपयोग करके एक विलुप्त प्रजाति में जीन अभिव्यक्ति की गतिशीलता पर प्रकाश डालकर, क्षेत्र में आगे के शोध के लिए रोमांचक संभावनाएं पेश कीं और आनुवंशिक अंतर्दृष्टि के माध्यम से प्राचीन जीवन की हमारी समझ का विस्तार करके नई जमीन तैयार की. और पढ़ें.
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नये स्पाइडर सिल्क का उत्पादन किया गया
चीन के डोंगहुआ विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने आनुवंशिक रूप से संशोधित रेशम के कीड़ों का उपयोग करके एक नए प्रकार का स्पाइडर सिल्क बनाया है जो बहुत मजबूत और सख्त है. नया स्पाइडर सिल्क केवलर से छह गुना अधिक मजबूत है, जिसका उपयोग बुलेटप्रूफ जैकेट बनाने के लिए किया जाता है.
मैटर वेंसडे जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि वैज्ञानिकों ने रेशम और पॉलियामाइड फाइबर के गुणों को मिलाकर स्पाइडर सिल्क फाइबर बनाए, जो मजबूत और सख्त दोनों थे.
वैज्ञानिक ऐसे फाइबर बनाना चाहते थे जो पर्यावरण के लिए अच्छे हों और जिन्हें आसानी से बनाया जा सके. नायलॉन और केवलर जैसे सिंथेटिक फाइबर मजबूत और टिकाऊ होते हैं, लेकिन वे प्राकृतिक नहीं होते हैं. स्पाइडर सिल्क एक नेचुरल सिल्क है जो बहुत सख्त होता है, लेकिन वैज्ञानिकों के लिए इसे व्यावसायिक रूप से पुन: उत्पन्न करना मुश्किल हो गया है.
वैज्ञानिक यह नहीं समझ पाए हैं कि मकड़ियां अपना रेशम कैसे बनाती हैं और इसका कम लागत पर बड़े पैमाने पर उत्पादन कैसे किया जा सकता है. उन्होंने नायलॉन और केवलर के यांत्रिक गुणों का अध्ययन किया और फिर रेशम में एक नई संरचना पाई.
इससे उन्हें रेशम के कीड़ों में स्पाइडर सिल्क बनाने में मदद मिली – एक प्रक्रिया जिसे उन्होंने स्थानीयकरण कहा. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह नया आविष्कार कपड़ा और सर्जिकल सामग्री जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए टिकाऊ स्पाइडर सिल्क के व्यावसायीकरण पर भारी प्रभाव डाल सकता है. और पढ़ें.
क्या माताएं बच्चों की चीखें सुन सकती हैं?
क्या माताएं अपने बच्चों के रोने पर ‘सहज’ प्रतिक्रिया देती हैं? हां, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में कहा गया है, जिसे एक तंत्रिका मार्ग मिला है जो माताओं के मस्तिष्क में ऑक्सीटोसिन बनाने वाले न्यूरॉन्स तक श्रवण संकेत (शिशु का रोना) पहुंचाता है.
ऑक्सीटोसिन एक रसायन है जो मनुष्यों और जानवरों दोनों में प्रसव और नर्सिंग जैसी मातृ प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह बच्चे के जन्म के दौरान और तब रिलीज़ होता है जब एक मां अपने बच्चे को दूध पिलाती है, दूध उत्पादन में मदद करती है.
शोधकर्ताओं ने अपना अध्ययन मातृ चूहों और उनके बच्चों पर किया, जो नेचर वेडनसडे पत्रिका में प्रकाशित हुआ.
उन्होंने चूहों में तंत्रिका संकेतों को मापने के लिए विशेष तकनीकों – इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल रिकॉर्डिंग और फोटोमेट्री – का उपयोग किया. उन्होंने पाया कि माताओं में ऑक्सीटोसिन के लिए तंत्रिका मार्ग उनके बच्चों के रोने की प्रतिक्रिया में सक्रिय होता था, लेकिन अन्य ध्वनियों की प्रतिक्रिया जवाब में नहीं.
बच्चे के रोने की आवाज़ मस्तिष्क के एक हिस्से, जिसे पोस्टीरियर इंट्रालैमिनर थैलेमस कहा जाता है, के माध्यम से ऑक्सीटोसिन न्यूरॉन्स तक जाती है. अगर बार-बार उत्तेजित किया जाए तो मस्तिष्क का यह हिस्सा ऑक्सीटोसिन न्यूरॉन्स को भी लंबे समय तक अधिक सक्रिय बना सकता है.
यह तंत्रिका मार्ग एक स्विच की तरह काम करता है, जो ऑक्सीटोसिन जारी होने पर नियंत्रण करता है और यह प्रभावित करता है कि जब माताएं अपने बच्चों को रोते हुए सुनती हैं तो उनका व्यवहार कैसा होता है. यह दर्शाता है कि बच्चे के संवेदी संकेत मां के मस्तिष्क में कैसे एकीकृत होते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उसका शरीर कुशल पालन-पोषण के लिए उचित प्रतिक्रिया देता है. और पढ़ें.
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बृहस्पति के चंद्रमा पर Co2
वैज्ञानिकों को बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा पर कार्बन डाइऑक्साइड मिली है, जिसकी बर्फीली सतह के नीचे एक छिपा हुआ महासागर है. यह एक बड़ी खोज है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण रसायन है जैसा कि हम जानते हैं.
डेटा नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से आया है, जिसने यूरोपा की सतह को स्कैन करने के लिए NIRSpec नामक एक विशेष उपकरण का उपयोग किया था, NASA ने बुधवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में इस बात की जानकारी दी.
कार्बन डाइऑक्साइड तारा रेजियो नामक क्षेत्र में पाया गया, जहां की सतह अपेक्षाकृत नई है और इसमें भूवैज्ञानिक गतिविधि के संकेत हैं. इस क्षेत्र में नमक भी है जो नीचे समुद्र से आता है. इससे पता चलता है कि कार्बन डाइऑक्साइड भी समुद्र से आया है, न कि उल्कापिंड जैसे बाहरी स्रोतों से.
यूरोपा को लंबे समय से इसकी बर्फीली परत के नीचे एक उपसतह महासागर की उपस्थिति के कारण अलौकिक जीवन के लिए एक संभावित कैंडीडेट माना जाता है. हालांकि, अब तक, शोधकर्ताओं ने इसकी पुष्टि नहीं की है कि इस महासागर में जीवन के लिए महत्वपूर्ण रासायनिक तत्व, विशेष रूप से कार्बन, मौजूद हैं या नहीं.
यह खोज इस संभावना को बढ़ाती है कि यूरोपा के महासागर में जीवन के समर्थन के लिए आवश्यक रासायनिक विविधता हो सकती है.
नासा का आगामी यूरोपा क्लिपर अंतरिक्ष यान, जो अक्टूबर 2024 में लॉन्च होने वाला है, यूरोपा में जीवन की संभावनाओं की क्षमता की और जांच करने के लिए उसके करीब से उड़ान भरेगा. यह हालिया खोज यूरोपा के रसायन विज्ञान और पृथ्वी से परे जीवन के आवास के रूप में इसकी क्षमता को समझने के महत्व को रेखांकित करती है. और पढ़ें.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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