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Sunday, 22 December, 2024
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कंटेनमेंट जोन 4,501 लेकिन पाबंदियां बस नाममात्र की हैं- दिल्ली में कोरोना के खिलाफ नाकाम होती जंग की कहानी

दिप्रिंट ने दिल्ली के 11 जिलों में से सात जिलों के कंटेनमेंट जोन वाले 13 इलाकों का जायजा लिया तो पाया कि कई जगहों पर प्रोटोकॉल का ठीक से पालन नहीं किया जा रहा है.

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नई दिल्ली: उत्तरी दिल्ली स्थित मजनू का टीला इलाके की एक कॉलोनी में बुधवार को नजारा कुछ ऐसा दिखा— 85 वर्षीय एक महिला अपने घर के गेट के पीछे खड़ी है, वह इधर-उधर अपनी दैनिक गतिविधियों में व्यस्त दूसरी महिलाओं, बच्चों और सब्जी विक्रेताओं को देख रही है. उसने मास्क नाक से नीचे लगा रखा है और कम ऊंचाई वाला यह गेट ही एकमात्र ऐसी बाधा है जो कोविड-19 पीड़ित इस महिला को भीड़भाड़ वाले बाहरी इलाके से अलग कर रहा है.

जाहिर है कि वहां से गुजरने वाले किसी भी व्यक्ति के कोविड-19 की चपेट में आने का खतरा है. लेकिन इस तथ्य के बारे में आगाह करने के लिए वहां कुछ भी नहीं था कि यह घर कंटेनमेंट जोन में आता है क्योंकि यहां रहने वाले पांच लोगों को संक्रमित पाया गया है.

दिप्रिंट ने अपनी पड़ताल में पाया कि दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर इस घर का पता कंटेनमेंट जोन के रूप में सूचीबद्ध है और वहां रहने वाले परिवार ने इसकी पुष्टि भी की.

कंटेनमेंट जोन के बाबत दिल्ली सरकार की वेबसाइट बताती है, ‘यदि कहीं पर तीन या तीन से ज्यादा कोरोना के केस सामने आते हैं तो उस जगह को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया जाता है, यहां तक कि किसी घर को भी इस आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है.

आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की तरफ से लागू प्रोटोकॉल के अनुसार, ऐसे क्षेत्रों में बैरीकेडिंग की जानी होती है और मरीज या जोखिम वाले संपर्क को अपने घर या क्षेत्र से बाहर निकलने से रोकने के लिए सिविल डिफेंस वॉलंटियर तैनात किए जाते हैं— इसके पीछे उद्देश्य संक्रमण को और ज्यादा फैलने से रोकना होता है.

इस माह की शुरुआत तक केजरीवाल सरकार दूसरों को आगाह करने के लिए कोविड मरीजों के घरों के बाहर पोस्टर लगवा रही थी. हालांकि, दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में यह व्यवस्था बंद कर दी गई जिसका उद्देश्य मरीजों को सामाजिक कलंक से बचाना था.

किसी कंटेनमेंट क्षेत्र को डी-कंटेनमेंट घोषित किया जाता है, ‘यदि चार सप्ताह तक उस कंटेनमेंट जोन में कोई पॉजिटिव केस सामने न आए.’

17 नवंबर तक के डाटा के मुताबिक दिल्ली में 4,501 कंटेनमेंट जोन हैं जिनमें से 1,000 को तो अकेले इसी महीने चिह्नित किया गया है क्योंकि राजधानी में कोविड केस नए सिरे से तेजी से बढ़े हैं.

बुधवार को दिप्रिंट ने दिल्ली के 11 में से सात जिलों के कंटेनमेंट जोन वाले 13 इलाकों का दौरा किया तो पाया कि कई जगह प्रोटोकॉल ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है.

उदाहरण के तौर पर 13 क्षेत्रों में केवल तीन— सभी दक्षिण पश्चिम दिल्ली जिले के नजफगढ़ में थे— में सिविल डिफेंस वॉलंटियर अपने निर्धारित स्थानों पर तैनात थे.

कम से कम छह जगहों पर आस-पड़ोस के लोगों को ही नहीं पता था कि उनके आसपास कोई कंटेनमेंट जोन है. बाकी चार में लोगों ने कहा कि उन्हें यह तो पता है कि आसपास कोई कंटेनमेंट जोन है लेकिन उसकी सही जगह के बारे में नहीं जानते थे.

टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने कहा कि कोविड के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए वे कंटेनमेंट जोन की संख्या बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. सिविल डिफेंस वॉलंटियर की गैरमौजूदगी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने यह कहते हुए अपना बचाव किया कि सामान्य कपड़ों में होने के कारण उन्हें पहचानने में इन पत्रकारों ने चूक कर दी होगी.

हालांकि, कुछ अधिकारियों ने ऑफ द रिकॉर्ड कहा कि प्रोटोकॉल लागू करना हमेशा बहुत आसान नहीं होता है.


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कंटेनमेंट जोन के अंदर की स्थिति

दिप्रिंट ने जिन 13 कंटेनमेंट जोन का दौरा किया उनमें नजफगढ़ के तीन क्षेत्रों के अलावा, पश्चिमी दिल्ली के पश्चिम पुरी के दो, नई दिल्ली का काली बाड़ी मार्ग और पूर्वी दिल्ली स्थित गीता कॉलोनी, उत्तरी दिल्ली के मजनू का टीला और महेंद्रू एन्क्लेव की एक-एक जगह, दक्षिणी दिल्ली में ग्रेटर कैलाश-1 और मध्य दिल्ली का बुराड़ी शामिल है.

ग्रेटर कैलाश-1 में एक कंटेनमेंट जोन— जहां प्रोटोकॉल में सूचीबद्ध कोई भी चिह्न अंकित नहीं था- के बगल वाले एक घर में कार्यरत एक गार्ड ने कहा कि उसे नहीं पता कि इसमें कोई कोविड मरीज था.

गार्ड रमेश सिंह ने कहा, ‘मैंने कुछ दिन पहले पीपीई किट्स में कुछ स्वास्थ्यकर्मियों को घर में दाखिल होते देखा था. लेकिन हमें नहीं पता कि इसे कंटेनमेंट जोन के रूप में सूचीबद्ध किया गया है या नहीं क्योंकि यहां कोई गार्ड या पुलिस नहीं है.’

काली बाड़ी मार्ग स्थित एक कॉलोनी में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करने वाले प्रेम सिंह को ऐसी जानकारी का अभाव खासा चिंताजनक लगता है.

उसने कहा, ‘मसलन, हम अपनी फीस लेने के लिए सभी घरों में जाते हैं. यदि हम यह भी नहीं जानते कि कौन-सा घर कंटेनमेंट जोन में आता है तो कैसे तय करेंगे कि किस घर से बचना है?’

हालांकि, कुछ क्षेत्रों में कोविड-19 मरीजों को ऐसी चिंताएं निराधार ही नज़र आती हैं.

मजनू का टीला निवासी राजेश्वर– जो एक परिवार के पांच कोविड पीड़ितों में से एक हैं- ने कहा कि उनके पड़ोसियों को उनका घर कंटेनमेंट जोन होने के बारे में जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा, ‘नहीं, उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई है. लेकिन हम अंदर ही रहते हैं और कोई भी यहां आता-जाता नहीं है.’

उन्होंने बताया कि उनसे पूछा गया था कि क्या घर के बाहर वालंटियर तैनात कर दिए जाएं लेकिन उन्होंने मना कर दिया. क्योंकि ‘हमारा मानना है कि हम खुद सुरक्षा कर सकते हैं.’

बुराड़ी के एक कोविड मरीज ने कहा कि बैरिकेडिंग केवल तभी आवश्यक है जब लोग सोशल डिस्टेंसिंग प्रोटोकॉल का पालन न करें. मरीज ने कहा, ‘बैरिकेडिंग तब की जानी चाहिए जब हम नियमों का पालन न करें या फिर पॉजिटिव होने के बावजूद बाहर जाएं. अगर हम क्वारेंटाइन नियमों का पालन कर रहे हैं तो फिर तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. अगर कुछ दिक्कत होती है तो पड़ोसी भी शिकायत कर सकते हैं.’

हालांकि, कुछ लोगों के लिए पहचान एक समस्या हो सकती है लेकिन दूसरों का कहना है कि सरकार और नागरिक एजेंसियों की तरफ से उन्हें पूरी मदद मिलती है. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियों से नियमित सहायता मिलती रहती है जिसकी वजह से घर के अंदर रहने में भी कोई दिक्कत नहीं होती.

राजेश्वर ने बताया, ‘हमारे पास दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग और एमसीडी से फोन आते रहते हैं. वे हमसे पूछते हैं कि क्या हमें दवाओं या किसी अन्य चीज की जरूरत तो नहीं है. घर के अन्य लोग भी सरकार की तरफ से आने वाले फोन रिसीव करते रहते हैं.’

गीता कॉलोनी में अब कोविड से उबर चुके एक मरीज के पड़ोसी रितेश शर्मा ने भी ऐसी पेशकश की पुष्टि की. उन्होंने बताया, ‘दिल्ली सरकार के अधिकारियों के साथ-साथ एमसीडी के लोग भी मुझे दवाएं देने आए थे. चौबीस घंटे चौकीदार तैनात रहते थे. हमें अंदर-बाहर जाने दिया जा रहा था. लेकिन (कोविड-संक्रमित) परिवार एक मंजिल तक ही सीमित था.’

पांच महीने की गर्भवती पश्चिमपुरी निवासी गुंजन ने बताया कि उनके कोविड-19 प्रभावित होने का पता चलते ही एक्रीडेटेडड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट्स या आशा कार्यकर्ताओं ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने में मदद की.

उन्होंने बताया, ‘अभी कल (मंगलवार) ही मेरा टेस्ट निगेटिव आया और मैं घर आ गई हूं. लेकिन एहतियात के तौर पर अभी घर में ही क्वारेंटाइन हूं. चूंकि मैं गर्भवती हूं, इसलिए आशा कार्यकर्ता और स्थानीय सरकारी डिस्पेंसरी मुझे दवाएं भेज रही हैं, उन्होंने मेरे लिए एलएनजेपी अस्पताल जाने की व्यवस्था भी की है.’

सिविल डिफेंस वॉलंटियर का कहना है कि वह जिन क्षेत्रों में तैनात हैं, वहां इसी तरह की भूमिका निभाते हैं.

नजफगढ़ के एक कंटेनमेंट जोन में तैनात सिविल डिफेंस वॉलंटियर पूनम यादव ने कहा, ‘हमारा काम यह सुनिश्चित करना होता है कि न कोई घर से बाहर निकले और न ही कोई वहां प्रवेश करे. अगर उन्हें किसी आवश्यक चीज की जरूरत होती है तो हम बिना संपर्क उसकी आपूर्ति की व्यवस्था करते हैं.’

उन्होंने आगे बताया, ‘तीन टीमें दिन में आठ घंटे की शिफ्ट में काम करती हैं. प्रत्येक क्षेत्र में 28 दिनों के लिए एक कंटेनमेंट जोन रहता है इससे पहले यह अवधि 14 दिन की थी. लेकिन अब 17वें दिन के बाद एक टेस्ट होता है और उसके बाद 10 दिन होम क्वारेंटाइन की व्यवस्था है.’


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‘लोगों को रोकना बहुत मुश्किल काम है’

जब दिप्रिंट ने विभिन्न जिलों के अधिकारियों से कई क्षेत्रों में सिविल डिफेंस वॉलंटियर की कमी होने के बारे में पूछा तो उनकी प्रतिक्रियाएं अलग-अलग थीं.

पश्चिमी दिल्ली की जिला मजिस्ट्रेट नेहा बंसल ने कहा, ‘सिविल डिफेंस वॉलंटियर हमेशा कंटेनमेंट जोन में तैनात किए जाते हैं. लेकिन ज्यादातर समय वे सादे कपड़ों में होते हैं इसलिए सूचीबद्ध घर या क्षेत्र में रखवाली करने के दौरान नज़र नहीं आते हैं.’

दक्षिण पश्चिम दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट नवीन अग्रवाल ने कहा, ‘यह तय करना जिला प्रशासन का काम है कि किसी जगह पर सिविल डिफेंस वॉलंटियर की जरूरत है या नहीं. हम सिविल डिफेंस वॉलंटियर को रखते हैं क्योंकि वे दो स्तरों पर काम करते हैं. वे यह सुनिश्चित करने में सहायता करते हैं कि इन क्षेत्रों में लोग बाहर न निकलें और उन्हें आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति हो सके.’

जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हमेशा बैरिकेडिंग की आदर्श स्थिति नहीं होती. अधिकारी ने कहा, ‘वैसे तो बैरिकेड और सिविल डिफेंस वॉलंटियर दोनों होने चाहिए लेकिन कभी-कभी कई क्षेत्रों में बैरिकेडिंग संभव नहीं हो पाती है.’

अधिकारी ने आगे कहा कि ‘लोगों को बाहर निकलने से रोकना और कोविड मानदंडों का पालन कराना बहुत मुश्किल काम है.’

उन्होंने कहा, ‘पहले, घर के बाहर पोस्टर लगने से लोगों में थोड़ा डर बढ़ जाता था कि क्षेत्र में मामले सामने आए हैं. लेकिन अब किसी को यह पता ही नहीं होता कि आसपास कोई मामला है और लोग आराम से आते-जाते रहते हैं.’

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कहीं संक्रमण सामने आता है तो कंटेनमेंट जोन बनाना जरूरी होता है और अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होता है कि प्रोटोकॉल ठीक से लागू किए जाएं. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) में महामारी विज्ञान और संक्रामक रोग मामलों के पूर्व प्रमुख डॉ. ललित कांत ने कहा, ‘कंटेनमेंट जोन के पीछे उद्देश्य संक्रमण को फैलने से रोकना है. सभी प्रोटोकॉल को लागू करना महत्वपूर्ण है. यदि लोगों को यह पता ही नहीं होगा कि कोई घर कंटेनमेंट जोन में है तो यह कैसे संभव हो पाएगा?’

उन्होंने कहा, ‘हमें कंटेनमेंट जोन में प्रोटोकॉल पूरी कड़ाई से लागू करने होंगे. यह सुनिश्चित होना चाहिए कि न तो कोई बाहर निकले और न ही अंदर आए. यह भी सुनिश्चित करें कि जो लोग कचरा लेने आ रहे हैं वे संक्रमण की चपेट में न आएं. यदि यह सब नहीं किया जाता तो कंटेनमेंट जोन केवल नाममात्र का होगा. कंटेनमेंट जोन में रहने वालों को जिम्मेदाराना रवैया अपनाने की जरूरत है.’

अब जबकि माना जा रहा है कि राजधानी कोविड संक्रमण की तीसरी लहर से जूझ रही है, जिला प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि वे बाजार क्षेत्रों कंटेनमेंट जोन बनाने पर विशेष ध्यान दे रहे हैं.

अग्रवाल ने कहा, ‘हम विशेष रूप से बाजार क्षेत्रों के आसपास कंटेनमेंट जोन के प्रयासों को तेज कर रहे हैं. हमने बाजारों में रैंडम टेस्ट भी शुरू किए हैं और जो भी दुकानदार पॉजिटिव पाया जाता है उसकी दुकान सील कर रहे हैं.’

बंसल ने बताया, ‘हमने 17 दुकानों को सील किया है और बाजारों में आठ कंटेनमेंट जोन बनाए हैं. हमने कुछ जगहों पर भीड़भाड़ होने को लेकर चालान भी काटे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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