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Friday, 1 November, 2024
होमदेशयूपी में मध्यस्थता मामले निपटारे से जुड़ी 43,000 याचिकाएं लंबित, एक तो 1981 से लंबित है

यूपी में मध्यस्थता मामले निपटारे से जुड़ी 43,000 याचिकाएं लंबित, एक तो 1981 से लंबित है

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 2 अप्रैल को जानकारी मांगे जाने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह डेटा जुटाया है. सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मध्यस्थता मामलों की बड़ी संख्या पर चिंता जताते हुए हाई कोर्ट से इनके निपटारे का रोडमैप मांगा है.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में अधीनस्थ न्यायपालिका की विभिन्न अदालतों में आर्बिट्रेशन अवार्ड यानी मध्यस्थता के जरिये विवाद सुलझाने संबंधी फैसलों पर अमल की मांग करने वाली 43,000 से अधिक याचिकाएं लंबित हैं. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गुरुवार को दायर एक हलफनामे से यह जानकारी सामने आई है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट की तरफ से तैयार हलफनामे में 31 मार्च 2022 तक यूपी में लंबित मध्यस्थता निष्पादन संबंधी मामलों का जिले और वर्ष के हिसाब से ब्योरा दिया गया है. नियमित अदालतों में पुराने के साथ-साथ संशोधित मध्यस्थता कानून के तहत लंबित निष्पादन याचिकाओं की कुल संख्या 43,521 है अन्य 13,367 याचिकाएं विशेष वाणिज्यिक अदालतों में लंबित हैं.

सबसे पुरानी लंबित याचिकाओं में से एक रायबरेली में है, जो 1981 में दायर की गई है. जबकि 2,513 याचिकाएं 2015 से लंबित हैं, यही नहीं 721 याचिकाएं ऐसी हैं जो एक दशक से ज्यादा पुरानी हैं. सबसे अधिक लंबित निष्पादन याचिकाओं वाले जिलों की सूची में लखनऊ सबसे ऊपर है.

मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम—जो 1940 में पहली बार अधिसूचित किया गया था और फिर 1996 में संशोधित किया गया—वाणिज्यिक विवादों के त्वरित निपटारे के लिए एक वैकल्पिक तंत्र की जरूरत को पूरा करता है. इस लीगल फ्रेमवर्क का उद्देश्य पहले ही बड़ी संख्या में लंबित केस झेल रही न्यायिक प्रणाली का बोझ घटाना भी है.

लेकिन कुछ स्थितियों में यह कानून न्यायिक दखल की अनुमति देता है, निष्पादन याचिकाएं उनमें से एक हैं. निष्पादन याचिकाएं तब दायर की जाती हैं जब वह पक्ष जिसके खिलाफ अवार्ड (मध्यस्थता पंचाट का अंतिम निर्णय) पारित किया जाता है, वह मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश का सम्मान नहीं करता. ऐसे में केस जीतने वाला पक्ष मध्यस्थता पंचाट के फैसले पर अमल के लिए संबंधित जिला कोर्ट का दरवाजा खटखटाता है.


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सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता

शीर्ष कोर्ट ने गुरुवार को इस हलफनामे पर गहरी चिंता जताई, जो पिछले 20 सालों से एक निचली अदालत में लंबित लखनऊ निवासी 83 वर्षीय एक व्यक्ति की मध्यस्थता निष्पादन याचिका के संदर्भ में गत 2 अप्रैल को शीर्ष कोर्ट की तरफ से जारी निर्देश के जवाब में पेश किया गया था.

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने टिप्पणी की, ‘मध्यस्थता (कानून) का उद्देश्य क्या है? मध्यस्थता मुकदमों (दीवानी मामलों) के निपटारे का एक विकल्प है. अब मध्यस्थता मामलों में भी वही देरी. लोग कहां जाएंगे?’

जस्टिस शाह और जस्टिस नागरत्ना ने स्वीकारा कि मध्यस्थता कानून वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र के तौर पर अपने उद्देश्य हासिल करने में विफल रहा है. साथ ही कहा कि वाणिज्यिक विवादों के त्वरित निपटारे के उद्देश्य से बनाए गए वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 के बाद लागू कानून भी अपेक्षित नतीजे नहीं देते हैं.

शीर्ष कोर्ट की पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से लंबित मध्यस्थता मामलों के निपटारे के लिए एक रोडमैप तैयार करने के लिए न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने का भी कहा है. मामले की अगली सुनवाई 18 मई को होगी.

83 वर्षीय लखनऊ निवासी के केस की पैरवी करने वाली अधिवक्ता आरती यू. मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ की निचली अदालत को उनके मुवक्किल के मामले में सुनवाई में तेजी लाने और चार सप्ताह के भीतर फैसला सुनाने का निर्देश जारी किया है.

मिश्रा ने कहा, ‘हालांकि, अदालत अब इस बड़े सवाल पर गौर कर रही है कि क्या मध्यस्थता कानून वास्तव में वाणिज्यिक विवादों के निपटारे में तेजी लाने में सक्षम है, या वे भी आपराधिक मामलों और सामान्य दीवानी मामलों की तरह ही अटक रहे हैं.’

लखनऊ में सबसे ज्यादा याचिकाएं लंबित

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इस पर 2 अप्रैल को हलफनामा मांगा गय था, जब उसने लखनऊ निवासी एक 83 वर्षीय व्यक्ति के मामले का संज्ञान लिया था. पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से कुछ सवालों पर जवाब मांगा था, जिनमें एक यह भी था कि यूपी में मध्यस्थता निष्पादन संबंधी कितनी याचिकाएं लंबित हैं.

डेटा के साल के आधार पर ब्रेक-अप से पता चलता है कि अधिकांश लंबित निष्पादन याचिकाएं 2015 के बाद दायर की गई हैं.

सबसे अधिक 5,140 निष्पादन याचिकाएं लखनऊ में लंबित हैं, इसके बाद आगरा (4,272) और गौतमबुद्ध नगर (3,459) का नंबर हैं. आगरा में लंबित सबसे पुराना मामला करीब 30 साल पहले 1992 में दर्ज किया गया था.

पीठ ने हाई कोर्ट से यह जानकारी देने को भी कहा था कि राज्य में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 और 37 के तहत कितने आवेदन लंबित हैं.

अधिनियम की धारा 34 के तहत याचिका तब दायर की जाती है जब दोनों पक्षों में से कोई एक मध्यस्थ पंचाट के निर्णय को रद्द कराना चाहता है.

यूपी में ऐसी 11,645 याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें से 10,436 नियमित अदालतों में और 1,209 वाणिज्यिक अदालतों में हैं. उनमें से ज्यादातर 2015 में या उसके बाद दायर की गई हैं.

आंकड़े यह भी बताते हैं कि धारा 34 के तहत लंबित 591 मामले ऐसे हैं जिनमें एक दशक के बाद भी फैसला नहीं हो पाया है. ऐसे मामलों की सबसे ज्यादा संख्या गाजियाबाद जिले (1,770) में है.

धारा 37 के तहत राज्य में 253 याचिकाएं लंबित हैं, जो कि आम तौर पर तब दाखिल की जाती हैं जब कोई भी पक्षकार मध्यस्थता पंचाट के आदेश के खिलाफ अपील करना चाहता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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