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Monday, 4 November, 2024
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एनआरसी की अंतिस लिस्ट से बाहर 19 लाख़ लोगों का मामला देखेंगी 400 ‘फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल’

फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल अर्ध न्यायिक कोर्ट हैं, जो एनआरसी लिस्ट से निकाले गए लोगों की अपील सुनने का काम करेंगे. इसके आदेश से संतुष्ट नहीं होने पर लोग हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं.

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गुवाहाटी : असम सरकार राज्य में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची से बाहर 19 लाख़ लोगों से संबंधित मामले देखने के लिए 400 फॉरनर्स ट्रिब्यूनल्स स्थापित किए जाएंगे. अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह राजनीति) कुमार संजय कृष्णा ने इस मामले पर कहा कि ऐसे 200 ट्रिब्यूनल्स स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है और लिस्ट से निकाले गए लोगों के हितों के लिए ऐसे 200 और ट्रिब्यूनल्स जल्द बनाए जाएंगे.

फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल अर्ध न्यायिक कोर्ट हैं, जो एनआरसी लिस्ट से निकाले गए लोगों की अपील सुनने का काम करेंगे. कृष्णा ने कहा, ‘ये ट्रिब्यूनल याचिका दायर करने और सुनवाई को बिना किसी बाधा के आगे बढ़ाने करने के लिए सुविधाजनक जगहों पर स्थापित किए जाएंगे.’

उन्होंने कहा, ‘एनआरसी की अंतिम सूची से निकाले गए लोगों को तब तक हिरासत में नहीं लिया जा सकता, जब तक ट्राइब्यूनल अपना फैसला नहीं सुना देते. ये लोग पहले ट्राइब्यूनल (एफटी) जा सकते हैं और एफटी के आदेश से संतुष्ट नहीं होने पर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं.’

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार भी एनआरसी सूची से निकाले गए लोगों को जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के माध्यम से कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए सभी जरूरी बंदोबस्त करेगी.

एनआरसी क्या है?

1951 की जनगणना के बाद पहली बार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) को जारी किया गया था. अब इसे सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग में 24 मार्च 1971 को कटऑफ डेट मानकर अपडेट किया जा रहा है, इस सूची में बांग्लादेश से अवैध रूप से असम में आने वालों लोगों की पहचान करना है.

योजना यह है कि इस सूची में उन लोगों की एक व्यापक और निर्णायक सूची तैयार की जाये, जिसमें राज्य में रह रहे ‘अवैध विदेशी’ की पहचान की जा सके, यह मूलरूप से असम के लोगों और वैध रूप से राज्य से बाहर चले गए लोगों के खिलाफ है.

यह प्रक्रिया 2013 में शुरू हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी सूची को अपडेट करने के लिए सरकार को निर्देश दिया था. यह मांग 1985 असम समझौते का हिस्सा थी, यह समझौता 1979 में छह साल असम आंदोलन चलाने वालों और केंद्र में राजीव गांधी सरकार के नेतृत्व में हुआ था.

मई, 2015 में असम राज्य के लिए आवेदन प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. इस प्रक्रिया के हिस्से के रूप में असम के प्रत्येक निवासी को यह साबित करना था कि राज्य में उसकी विरासत 1971 से पहले की है. इसके लिए आवेदकों को यह साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने पड़ते थे कि उनका नाम 1951 के एनआरसी में या 1971 तक असम के मतदाता सूची में रहा हो या 12 अन्य दस्तावेजों में नाम रहा हो, जो 1971 से पहले जारी किए गए थे.

पिछले वर्ष जुलाई में अंतिम मसौदा जारी होने के बाद व्यापक सुनवाई आधारित प्रक्रिया के माध्यम से दावों और आपत्तियों की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया था और एनआरसी के मसौदे से बाहर रखे गए लगभग 40 लाख लोगों में से, 36 लाख से अधिक लोगों ने दावों को दायर किया था.

(आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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