नई दिल्ली: पश्चिमी दिल्ली स्थित जनकपुरी निवासी रमनदीप सिंह को ऑक्सीजन सिलेंडर की तत्काल जरूरत थी. उन्होंने खरीददारों और आपूर्तिकर्ताओं के बीच एक कड़ी के तौर पर काम करने वाले ई-कॉमर्स प्लेटफार्म इंडियामार्ट पर इस बारे में जानकारी हासिल की और फिर किसी व्यक्ति की कॉल आने पर यह सोचकर खुश हो गए कि शायद यह किसी विक्रेता का फोन है. उन्होंने जल्द आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सप्लायर के खाते में 74,480 रुपये भी ट्रांसफर कर दिए. हालांकि, सिलेंडर उसके पास नहीं पहुंचा. रमनदीप ठगी के शिकार हो गए थे.
दिल्ली के अर्जुन नगर निवासी सत्य प्रकाश का अनुभव भी कुछ ऐसा ही रहा. रेमडिसिविर दवा की तत्काल जरूरत होने पर उन्होंने व्हाट्सएप पर मिली एक जानकारी को फॉलो किया. जिस व्यक्ति से उन्होंने संपर्क किया, उसने कहा कि एक खुराक मिल जाएगी लेकिन इसकी कीमत एमआरपी से बहुत अधिक होगी. प्रकाश बिना किसी सोच-विचार के इसके लिए तैयार हो गए और उसके बताए खाते में तुरंत ही 19,200 रुपये ट्रांसफर कर दिए. लेकिन दवा आई ही नहीं. बाद में पता चला कि जिस शख्स के साथ उन्होंने सौदा किया था वह यह अकाउंट बिहार के नालंदा जिले से संचालित कर रहा था.
देश में कोविड की दूसरी लहर के दौरान संक्रमणों में भारी उछाल के कारण स्वास्थ्य ढांचा बुरी तरह चरमरा गया है. नतीजतन, कई रिश्तेदारों और मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर और कंसेनट्रेटर जैसे उपकरणों और रेमडिसिविर जैसी दवाओं— यहां तक कि होम आईसीयू आदि का इंतजाम अपने स्तर पर करना पड़ रहा है.
ऐसे में सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन पोर्टल इन अनुरोधों को आगे बढ़ाने और आपूर्तिकर्ताओं के साथ संपर्क कराने में महत्वपूर्ण साबित हुए हैं, साथ ही साइबर अपराधियों को भी लोगों को ठगने का एक नया तरीका उपलब्ध करा दिया है.
दिल्ली पुलिस की सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल को मेडिकल जरूरतों के लिए ऑनलाइन खरीद की कोशिश में लगे लोगों की तरफ से बड़ी संख्या में ऐसी कॉल मिल रही थीं. इसके खिलाफ दिल्ली पुलिस की कार्रवाई के तहत अब तक कथित तौर पर ‘कोविड ठगी’ के मामलों में 372 एफआईआर हुई हैं और 91 अपराधियों को पकड़ा गया है.
पुलिस ने 95 मेडिकल उपकरण जब्त किए हैं और 214 बैंक खाते भी फ्रीज किए हैं जिसमें धोखाधड़ी के जरिये करीब 54 लाख रुपये जमा किए गए थे.
विशेष पुलिस आयुक्त (स्पेशल सेल) नीरज ठाकुर ने कहा, ‘मूवमेंट, दवाओं और ऑक्सीजन आदि से जुड़ी कई बातों को लेकर अनिश्चितता के बीच हमने आम जनता को गाइड करना शुरू कर दिया था. लेकिन तब तक स्थिति ज्यादा बिगड़ने के बीच लोगों की तरफ से ऐसी कॉल आना काफी बढ़ गया, जिसमें उन्होंने कहा कि आवश्यक आपूर्ति और जीवनरक्षक दवाओं के नाम पर वह ऑनलाइन ठगी के शिकार हो रहे हैं.’
इस पर दिल्ली पुलिस ने ऐसी धोखाधड़ी की शिकायतों के निपटारे के लिए अपनी कोविड हेल्पलाइन की क्षमता बढ़ाई. उन्होंने आगे कहा कि शिकायतों को लेकर 12 घंटे की स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करने और एफआईआर दर्ज करने की प्रणाली भी बनाई गई.
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सिम एक राज्य में लिया, दूसरे में इस्तेमाल किया
दिल्ली पुलिस के अनुसार, दर्ज किए गए मामलों और शिकायतों के विश्लेषण से पता चला है कि ऑक्सीजन या दवा की जरूरत के बारे में ‘जानकारी’ हासिल करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सिम किसी एक राज्य में खरीदे जाते थे और सूचनाएं लेने और फोन करने में उनका इस्तेमाल किसी दूसरे राज्य में किया जाता था.
जिन खातों में पैसा जमा कराया जाता था उनका नेटवर्क पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक सहित पूरे देश में फैला था. ठाकुर ने कहा, ‘इससे पता चलता है कि यह साइबर नेटवर्क कितना व्यापक है.’
इन लोगों का पता लगाने और गिरफ्तारी के लिए दिल्ली के पुलिस आयुक्त एस.एन. श्रीवास्तव ने राज्यों के पुलिस महानिदेशकों से संपर्क साधा और टीमों को वहां भेजा गया.
ठाकुर ने बताया, ‘पुलिस ने तुरंत अन्य जिलों, अपराध शाखा और साइबर इकाई साइपैड (साइबर प्रिवेंशन अवेयरनेस डिटेक्शन यूनिट ऑफ दिल्ली पुलिस) के साथ कोऑर्डिनेट किया और ऐसी धोखाधड़ी की जानकारी हासिल करने के लिए उपयुक्त चैनल सक्रिय कर दिए.’
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नंबर ब्लॉक किए, ट्रूकॉलर पर डाले
पुलिस ने एक तरफ जहां मामले दर्ज करने के बाद तमाम संदिग्ध बैंक खातों को फ्रीज किया, वहीं दूसरी ओर इसने दूरसंचार विभाग (डॉट) को ब्लॉक करने के लिए 861 मोबाइल नंबर भेजे.
अभियान में अहम भूमिका निभाने वाली साइपैड ने गृह मंत्रालय (एमएचए) के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4सी) से संपर्क साधा और इसके माध्यम से राष्ट्रीय बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र और दूरसंचार नियामक के साथ-साथ कई निजी कंपनियों और ऑपरेटरों से मदद मांगी.
पुलिस के अनुसार, मई 2021 के मध्य सप्ताह तक साइपैड हर 12-घंटे पर आई4सी, मेवात, जामताड़ा, अहमदाबाद, चंडीगढ़ और हैदराबाद स्थित इसकी संयुक्त इकाइयों के साथ ही दूरसंचार विभाग और बैंकिंग क्षेत्र को ऐसे अलर्ट भेजने की स्थिति में आ गया जिसमें विशिष्ट और कार्रवाई योग्य जानकारी हो.
इसके जरिये सुनिश्चित किया गया कि जिन खातों में पैसा पहुंचा उन्हें फ्रीज कर दिया जाए, धोखाधड़ी में इस्तेमाल सिम कार्ड निलंबित कर दिए गए और संबंधित आईएमईआई भी ब्लैक-लिस्टेड कर दिए गए.
इसके अलावा, 168 मोबाइल नंबरों को कॉलर आईडी एप ट्रूकॉलर पर ‘कोविड स्कैम’ नंबरों के तौर पर टैग किया गया. आई4सी के संयुक्त साइबर समन्वय टीमों के माध्यम से कार्रवाई के लिए विभिन्न राज्यों की पुलिस को 187 नंबरों के सब्सक्राइबर की जानकारी और 300 से अधिक बैंक खातों की जानकारी मुहैया कराई गई.
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‘40% शिकायतों पर एफआईआर दर्ज’
एमएचए के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, साइबर अपराध से जुड़े 2.5 फीसदी से भी कम मामलों में एफआईआर दर्ज होती है. लेकिन इस मामले में हेल्पलाइन या ई-मेल के माध्यम से मिली 910 शिकायतों में से 40 प्रतिशत पर एफआईआर दर्ज की गई है.
नवंबर 2020 में गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर मिली शिकायतों की जांच करने और उन पर एफआईआर दर्ज करने के लिए लिखा था.
दिल्ली पुलिस का कहना है कि इस पूरी कवायद के साथ ठगी के ऐसे मामले तेजी से घटते नज़र आने लगे हैं और मामलों की डेली रिपोर्टिंग अब फिर 1 मई के पहले वाले स्तर पर आ गई है.
पुलिस ने आगे बताया कि हालांकि, अभी भी कई राज्यों में 20 के करीब पुलिस टीम जमीनी स्तर पर सक्रिय हैं और आने वाले कुछ दिनों में बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां संभावित हैं.
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