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Monday, 20 May, 2024
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3500 किलो विस्फोटक, 15 सेकंड—नोएडा में कल कैसे जमींदोज हो जाएंगे सुपरटेक ट्विन टावर

यह काम काफी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इस ऐसे अंजाम देना है कि आसपास की सोसायटीज़ इमेरल्ड कोर्ट और एटीएस ग्रीन प्रभावित न हों. हालांकि, एक्स्पर्ट्स का कहना है कि इसके झटके काफी कम होंगे.

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नई दिल्ली: 3,500 किलोग्राम विस्फोटक, ये वो मात्रा है जिसकी नोएडा में 40 मंजिला सुपरटेक ट्विन टावर ध्वस्त करने के लिए प्रशासन को जरूरत पड़ेगी.

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अवैध ढांचा गिराने का आदेश दिए जाने के करीब एक साल बाद 28 अगस्त को अधिकारी एपेक्स और केयेन टावरों को जमींदोज करने वाले हैं. सुपरटेक द्वारा बनाए गए इन ट्विन टावर को बिल्डिंग कोड के उल्लंघन के कारण ध्वस्त किया जाना है.

एडिफिस इंजीनियरिंग में पार्टनर उत्कर्ष मेहता ने दिप्रिंट को बताया कि इसे ध्वस्त करने के लिए दोपहर 2.30 बजे का समय निर्धारित किया गया है. और पूरी प्रक्रिया महज 15 सेकंड में पूरी हो जाएगी. मेहता ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह ‘बिल्डिंग इम्प्लोजन’ तकनीक के जरिए ध्वस्त की जानी वाली देश की सबसे ऊंची इमारत होगी.’ उन्होंने कहा कि विध्वंस शुरू करने की प्रक्रिया में नौ सेकंड लगेंगे और फिर अगले 4 से 6 के बीच पूरी इमारत ढह जाएगी.

एडिफिस इंजीनियरिंग ने जनवरी में इस तरह के विध्वंस में विशेषज्ञता रखने वाली दक्षिण अफ्रीकी कंपनी जेट डिमोलिशन के साथ मिलकर यह कांट्रैक्ट हासिल किया था.

ये कार्य चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इसे इस तरह अंजाम दिया जाना है कि आसपास स्थित एमराल्ड कोर्ट और एटीएस ग्रीन जैसी सोसाइटीज़ पर कोई आंच न आए.

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कुतुबमीनार से भी ज्यादा ऊंचे दोनों टावरों को ध्वस्त करने की जिम्मेदारी सैकड़ों लोगों ने संभाल रखी है और महीनों से इसकी तैयारी में लगे हैं, जिसमें ढांचे का विश्लेषण करना, सही विस्फोटक निर्धारित करना, टेस्ट ब्लास्ट करना और उसके बाद की रणनीति तय करना शामिल है.

मेहता ने आश्वस्त किया, ‘कोई समस्या नहीं होगी. हम पूरे ध्यान से इसे अंजाम देने वाले हैं, इससे आसपास की दो सोसाइटी को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा.’

क्या होती है बिल्डिंग इम्प्लोजन तकनीक

लोहे की बड़ी-बड़ी रेकिंग बॉल या फिर एक्सटेंड की जा सकने वाली क्रेन का इस्तेमाल, परंपरागत तौर पर इंजीनियर इमारतों को तोड़ने के लिए यही तरीका अपनाते हैं.

लेकिन इस मामले में इन तरीकों का इस्तेमाल करना खासा चुनौतीपूर्ण है क्योंकि ट्विन टावर्स के पास एमराल्ड कोर्ट और एटीएस ग्रीन सोसाइटी भी बनी हैं.

‘डिमोलिशन ऑफ बिल्डिंग्स बाई इम्प्लोजन’ शीर्षक वाले एक रिसर्च पेपर के मुताबिक, इंजीनियर किसी इमारत को ध्वस्त करने के लिए बिल्डिंग इम्प्लोजन तकनीक तब अपनाते हैं जब ढहाई जाने वाली इमारत के आसपास अन्य ढांचे भी खड़े होते हैं.

‘बिल्डिंग इम्प्लोजन’ नियंत्रित तरीके से विस्फोट की एक तकनीक है जिसका उद्देश्य इस तरह धमाका करना है कि इमारत खुद-ब-खुद ढह जाए, यानी इधर-उधर गिरे बिना सीधे नीचे आ जाए.

The road outside Supertech towers in Noida | Amogh Rohmetra | ThePrint
नोएडा में सुपरटेक टावर के बाहर की रोड । अमोघ रोहमेत्रा । दिप्रिंट

रिसर्च पेपर बताता है कि इस तरीके को अपनाने पर ‘विचार तब किया जाता है जब ध्वस्त की जाने वाली इमारत के आसपास और बिल्डिंग हों और उन्हें ढहने से बचना हो.’ इसमें आगे बताया गया है, ‘इमारत को इस तरह ध्वस्त किया जाता है कि वह सीधे तौर पर नीचे आ जाए (यानी मलबा उसके आधार क्षेत्रफल से बाहर न गिरे).’

दूसरे शब्दों में कहें तो इसमें किसी ढांचे को नीचे लाने के लिए फोर्स ग्रेविटी का उपयोग किया जाता है. इसके लिए नीचे की मंजिलों में ब्लास्ट किया जाता है ताकि इमारत का संरचनात्मक ढांचा उड़ जाए. विध्वंस की यह तकनीक इमारत ढहाने में अधिकतम संभव ऊर्जा उत्पन्न करने की कोशिश करती है.


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कैसे देते हैं अंजाम

इस पद्धति में कोई निर्धारित पैटर्न नहीं होता. हर एक ढांचे के लिए अलग तरीका अपनाना पड़ता है और अलग मात्रा में विस्फोटकों की जरूरत पड़ती है. मेहता ने कहा कि आमतौर पर यह प्री-ब्लास्ट स्टडी, टेस्ट और अनुभव के आधार पर तय होता है कि किस इमारत को कैसे ध्वस्त किया जा सकता है.

विस्फोटक का इस्तेमाल कैसे करना है, इसे तय करने के लिए सबसे पहले तो ब्लूप्रिंट और अन्य उपलब्ध जानकारी के आधार पर संबंधित ढांचे का अच्छी तरह अध्ययन किया जाता है.

रिसर्च पेपर के मुताबिक, इस प्रक्रिया में उपयोग होने वाले सबसे आम विस्फोटक ‘डायनामाइट्स (अमोनिया और जिलेटिन), वाटर जेल, इमल्शन, पीईटीएन (पेंटा-एरिथ्रिटोल टेट्रा-नाइट्रेट) और आरडीएक्स (साइक्लोट्रिमेथिलीन-ट्रिनिट्रामाइन) हैं.’

ब्लास्टर्स यानी धमाकों को अंजाम देने वाले लोगों के लिए यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक होता है कि विस्फोटकों की सही मात्रा का उपयोग किया जाए. इसके लिए टेस्ट ब्लास्ट किए जाते हैं.

मेहता ने दिप्रिंट को बताया, ‘टेस्ट ब्लास्ट ढांचे के बारे में पता लगामें मददगार होते हैं. हम कुछ चीजें ड्राइंग की मदद से समझते हैं. और कुछ कोर कटिंग करते हैं, फिर टेस्ट के जरिये ढांचे की मजबूती का पता लगाते हैं. अगर जरूरत पड़ी तो यह पता लगाने के लिए टेस्ट ब्लास्ट करते हैं कि अगर एक किलो विस्फोटक का इस्तेमाल करें तो इससे कितना हिस्सा ध्वस्त होगा. उसके बाद अध्ययन के आधार पर हम अपने डिजाइन में कुछ चीजें बदलते हैं.’

अगला कदम उन गैर-जरूरी कॉलम को हटाना है जिन पर इमारत का कोई भार नहीं होता है. यह सब इम्प्लोजन प्रक्रिया अपनाने के समय किसी अवांछित बाधा से बचने के लिए किया जाता है. सफल में विस्फोट में टावरों को एक-दूसरे की तरफ गिरना चाहिए जिससे सारा मलबा बिल्डिंग के सेंटर में जमा हो सके.

रिसर्च पेपर कहते हैं, ‘किसी इमारत को ध्वस्त करने के दौरान विस्फोटों को ऐसे सेट किया जाता है कि कोई और वैकल्पिक लोड पाथ बने इससे पहले ही संबंधित कॉलम को उड़ाने वाला धमाका हो जाए ताकि इस प्रक्रिया (यानी बिल्डिंग को ऊपर से सीधे नीचे गिराने) के नाकाम होने की कोई गुंजाइश न रहे.’

इसमें टाइमिंग बहुत ज्यादा मायने रखती है, क्योंकि कॉलम ढहने में एक सेकेंड की भी देरी इमारत को सीधे नीचे लाने के बजाए इधर-उधर किसी दिशा में गिरा सकती है.

…और फिर दबा देते हैं बटन

विस्फोटकों में धमाके लिए एक गहरे शॉक की जरूरत होती है. इसके लिए थोड़ा-थोड़ा करके विस्फोटकों को एक ब्लास्टिंग कैप से जोड़ा जाता है. ब्लास्टिंग कैप एक ऐसा उपकरण है जो ‘एक शॉक वेव के जरिये हाई एक्सप्लोसिव में विस्फोट की शुरुआत करता है.’

ब्लास्टर्स विस्फोटों की शुरुआत के लिए इस ब्लास्टिंग कैप के एक सिरे को जलाते हैं, यह लौ दूसरे छोर पर डेटोनेटर तक जाती है और विस्फोट हो जाता है. यह प्रक्रिया डेटोनेटर के अंत में विस्फोटकों के साथ एक इलेक्ट्रॉनिक तार के माध्यम से भी अपनाई जा सकती है.

अंतिम चरण में जांच पूरी होने के बाद ट्रिगर दबा दिया जाता है.

यदि विस्फोट नाकाम रहता है तो फिर अधिकारी मैन्युअली ध्वस्तीकरण को अंजाम देते हैं. ऐसे उदाहरण भी सामने हैं जहां इमारत ध्वस्त करने के लिए किए गए विस्फोट नाकाम रहे. हालांकि, यह असामान्य है. ऐसा एक मामला फरवरी 2020 में डलास में सामने आया था जब असफल विस्फोट के बाद एक 11-मंजिला इमारत एक तरफ झुक गई और फिर इसे गिराने में कई दिन लग गए.


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क्या सावधानियां बरतेंगे

मेहता ने दिप्रिंट को बताया, एहतियात के तौर पर कंपनी दोनों टॉवर को जियोटेक्सटाइल फैब्रिक से ढकेगी जो पॉलीप्रोपाइलीन या पॉलिएस्टर से बने होते हैं, और इमारतों के बेसमेंट और सोसायटी के मैदान में इम्पैक्ट कुशन लगाए जाएंगे.

मेहता ने कहा कि जियोटेक्सटाइल फैब्रिक की मदद से मलबा इधर-उधर फैलने से रोका जा सकेगा, वहीं इम्पैक्ट कुशन धमाके के कारण होने वाले कंपन को रोकेगा.

मेहता ने कहा कि कंपनी का मानना है कि विस्फोट के कारण होने वाला कंपन नोएडा में पिछले भूकंपों की तुलना में ‘कम’ होगा. उन्होंने दावा किया कि विस्फोट से होने वाला कंपन ऐसे भूकंपों की तुलना में दसवें हिस्से के बराबर ही होगा.

एडिफिस इंजीनियरिंग के एक प्रोजेक्ट मैनेजर मयूर मेहता ने यह तो माना कि विस्फोट से आसपास की इमारतों को ‘मामूली क्षति’ की आशंका है लेकिन साथ ही कहा, ‘सिर्फ इमारतों में लगे शीशे आदि गिर सकते हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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