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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेश32 टीमें, T20 टूर्नामेंट के लिए साल में 4 बार क्राउडफंडिंग- क्रिकेट को लेकर काफी गंभीर है कश्मीर का कुलगाम

32 टीमें, T20 टूर्नामेंट के लिए साल में 4 बार क्राउडफंडिंग- क्रिकेट को लेकर काफी गंभीर है कश्मीर का कुलगाम

क्राउडफंडिंग के सहारे आयोजित टूर्नामेंट का उद्देश्य उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र के युवाओं को दिशा और धीरज देना है जिनके दिल में बड़ी आकांक्षाएं पल रही हैं.

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कुलगाम: हिलाल अहमद भट्ट की निगाहें गेंद पर जमी हैं. जैसे ही वो पास आती है अपने निचले हाथ का ध्यान रखते हुए सलामी बल्लेबाज़ बल्ले पर अपनी पकड़ को मज़बूत करता है और गेंद को छक्के के लिए घुमा देता है.

अगली गेंद फिर ऐसी ही है, भट्ट घूमकर फिर उसे ज़ोर से सीमा रेखा की तरफ मार देता है और इसी के साथ उनका अर्ध शतक पूरा हो जाता है.

देखने वाले दर्शक अधिक नहीं हैं लेकिन जो भी हैं वो ताली बजाते हैं.

ये कोई आईपीएल नहीं है और ना ही ये चकाचौंध से भरी कोई टी-20 लीग है जैसा आजकल देशभर में देखी जाने लगी हैं.

ये मैदान भी ज़मीन का एक ऐसा टुकड़ा है जो दक्षिण कश्मीर में कुलगाम ज़िले के एक दूरदराज़ गांव पाचनपथरी में अल्पाइन पेड़ों से भरी पहाड़ियों के बीच स्थित है. लंबाई-चौड़ाई में ये ऑकलैंड के ईडन पार्क को टक्कर दे सकता है. जहां तक पिच का सवाल है ये एक क्रिकेट मैट है जो पुराना हो चुका है.

लेकिन यहां के खिलाड़ियों के लिए ये सिर्फ एक खेल नहीं है.

हर साल दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम ज़िले की अपनी एक अलग होम पथरी प्रीमियर लीग होती है- 32 टीमों के बीच एक अंतर-ग्राम लैदर बॉल क्रिकेट टूर्नामेंट जो मई से अगस्त के बीच तीन या चार बार (फंड्स के हिसाब से) आयोजित किया जाता है.

क्राउडफंडिंग के सहारे आयोजित टूर्नामेंट का उद्देश्य उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र के युवाओं को दिशा और धीरज देना है जिनके दिल में बड़ी आकांक्षाएं पल रही हैं.

खेल के प्रति जुनून इस कदर है कि भट्ट की यंग्सटर XI चिमार और विरोधी सुपर किंग अहमदाबाद को मैदान तक पहुंचने के लिए 40 मिनट तक पहाड़ियां चढ़ते हुए ऊपर आना पड़ा.

रिकॉर्ड के लिए 15 जुलाई को खेले गए मैच में भट्ट ने सबसे अधिक 54 रन बनाए जबकि उसकी टीम का कुल स्कोर 20 ओवर्स में 160 रन रहा. अहमदाबाद की लड़खड़ाती पारी आखिरकार 130 रन पर सिमट गई, जिससे चिमार 30 रन से जीत गई.

Hilal Ahmad Bhatt (right) of Youngster XI Chimmar | Photo: Praveen Jain/ThePrint
यंगस्टर XI चिमार के हिलाल अहमद भट्ट (दाएं) | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

‘खुद से पैसा जुटाकर अपना मैदान तैयार किया’

होम पथरी प्रीमियर लीग 2014 में शुरू हुई थी. उसके बाद से हर गर्मी में आसपास के गांवों के नौजवान अभ्यास सत्र के लिए जमा होते हैं और टूर्नामेंट आयोजित करने के लिए पैसा जुटाते हैं. पैसा जुटाने के लिए कुछ लोग निर्माण स्थलों पर मज़दूरी भी कर लेते हैं.

टूर्नामेंट के आयोजक और कोच तारिक़ अहमद मलिक ने कहा, ‘इसमें हिस्सा लेने वाले खिलाड़ी पैसे वाले परिवारों से नहीं आते लेकिन फिर भी वो सिर्फ खेलने के लिए अपने स्तर पर इंतजाम करते हैं’. तारिक़ ने आगे कहा, ‘हम ये सब पैसा जमा करते हैं और सभी चीज़ों का बंदोबस्त करते हैं जिसमें अंपायरों की फीस, जलपान और पुरस्कार राशि आदि शामिल होती हैं. हम जितना कुछ अपने से कर सकते हैं- जैसे पिच तैयार करना, झंडे लगाना वो सब स्वयं करते हैं’.

टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए हर टीम को 1,000 से 1,500 रुपए तक देने पड़ते हैं. उस पैसे से आयोजक फिर क्रिकेट का सामान खरीदते हैं जिसमें पैड्स, बल्ले, गेंदें, जूते और उनका नाम लिखी यूनिफॉर्म शामिल होती हैं.

तमाम गांवों से हर कोई- अपेक्षाकृत पैसे वाले कारोबारियों से लेकर बगीचा मालिक यहां तक कि दुकानदार तक पैसा देते हैं. जमा किए गए पैसे का एक हिस्सा पुरस्कार राशि के लिए भी अलग रखा जाता है, जो 5,000 से 10,000 रुपए के बीच होती है और एकत्र हुई रकम पर निर्भर करती है.

सभी गांव वाले जिनमें योगदान देने वाले लोग भी होते हैं पैदल चलकर इन टूर्नामेंट्स को देखने जाते हैं और अपनी टीमों का हौसला बढ़ाते हैं.

Two fielders nearly collide at a game at Pachanpathri village | Photo: Praveen Jain/ThePrint
क्रिकेट मैच के दौरान गेंद पकड़ते हुए दो खिलाड़ी टकराते हुए | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

मैदान को सपाट करने और पिच को तैयार करने के लिए टूर्नामेंट शुरू होने से कुछ दिन पहले टीमें जमा होती हैं और इस काम को अंजाम देती हैं.

मलिक ने कहा कि पाचनपथरी गांव में इस जगह तक पहुंचने के लिए 2014 में उन सब को जमा होकर ऊपर तक आने वाले पथरीले रास्ते को साफ करना पड़ा था.

मलिक ने कहा, ‘यहां तक पहुंचना आसान नहीं था. कोई रास्ता नहीं था, लोगों को पहाड़ियां चढ़कर आना पड़ा. फिर हम सबने पत्थरों को हटाकर एक कच्चा रास्ता बनाया, ज़मीन को समतल किया और जहां कर सकते थे वहां कीचड़ को बराबर किया. ये सब करने में हमें डेढ़ साल लग गया’. उन्होंने आगे कहा, ‘फिर हमने यहां मैदान तैयार किया. यहां एक नाला था जिसमें हमने मिट्टी भर दी ताकि खेलने के लिए सपाट सतह हो जाए. ये सब टीम वर्क है’.


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सीखने के लिए देखते हैं अपने चहेते खिलाड़ियों के वीडियो

किसी पेशेवर कोचिंग या सेटअप के बिना, 18 से 28 साल के इन खिलाड़ियों ने अपने चहेते खिलाड़ियों से तकनीक सीखी है- बल्लेबाज़ी के लिए विराट कोहली और रोहित शर्मा और गेंदबाज़ी के लिए भुवनेश्वर कुमार जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद शमी.

इनका साथी है- यूट्यूब. चाहे मोहम्मद शमी की कलाई की स्थिति हो, भुवनेश्वर कुमार की गेंद को दोनों ओर स्विंग करने की तकनीक हो, रोहित शर्मा का गेंद को जल्दी पकड़ने का हाथ-आंख का तालमेल हो या फिर स्कोरबोर्ड को आगे बढ़ाते रखने के लिए विराट कोहली की विकटों के बीच दौड़ पर निर्भरता, सब कुछ वो वीडियोज़ से सीखते हैं.

उनकी आकांक्षा सिर्फ ये है कि उन्हें कुछ पेशेवर सहायता और अवसर मिल जाएं.

एक कोच और आयोजक नवाज़ अहमद ने कहा, ‘हम खुद अपने कोच हैं और हम सब खेल को प्यार करते हैं. हमारे अपने प्रेक्टिस सेशंस होते हैं जब सभी 32 गांवों के खिलाड़ी तकनीक सीखने के लिए आकर जमा होते हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘वो सब अपने चहेते खिलाड़ियों को देखकर सीखते हैं. खिलाड़ियों में प्रतिभा और उत्साह की कमी नहीं है लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिलती’.

नवाज़ ने आगे कहा कि ये क्रिकेट ही है जो क्षेत्र के युवाओं को ‘दिशा और धीरज’ देती है. लेकिन उन्होंने कहा कि उनके पास ज़रूरी अवसर नहीं हैं.

नवाज़ ने कहा, ‘बहुत से युवा भटक कर ड्रग्स की ओर चले जाते हैं तो कुछ दूसरे रास्तों पर लग जाते हैं लेकिन क्रिकेट उन्हें बांधकर रखती है. अगर हम इस खेल की हौसला अफज़ाई करते रहें तो इससे युवाओं को एक दिशा मिलेगी. हमें ज़रूरी सहायता मुहैया कराकर सरकार वास्तव में एक अंतर पैदा कर सकती है. अगर वो हमें बढ़ावा दें तो ये यहां के लोगों से जुड़ने का एक अच्छा तरीका हो सकता है’.

जम्मू-कश्मीर के युवा सेवाएं तथा खेल विभाग भी अंतर-पंचायत क्रिकेट मैचों का आयोजन कराता है. ये कुलगाम के नेहामा स्टेडियम में कराए जाते हैं जो अधिक पेशेवर सेटअप है. लेकिन इन मैचों के लिए खिलाड़ियों का चयन ट्रायल्स के बाद किया जाता है.

A match under way Kulgam’s Nehama stadium | Photo: Praveen Jain/ThePrint
कुलगाम के नेहामा मैदान में खेला जा रहा क्रिकेट मैच | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

दिप्रिंट से बात करते हुए एक ज़िला खेल अधिकारी मुदस्सिर अहमद ने कहा कि वो सोशल मीडिया पर विज्ञापन देते हैं और कुलगाम के 136 गांवों के खिलाड़ियों को चयन ट्रायल्स के लिए बुलाते हैं.

अहमद ने कहा, ‘हम इन गांवों के सरपंचों को विश्वास में लेकर ट्रायल्स कराते हैं. उनमें से सबसे अच्छे खिलाड़ियों को चुनकर एक टीम बनाई जाती है. तीन से चार गांवों के खिलाड़ी एक टीम में खेलते हैं जो एक पंचायत की नुमाइंदगी करती है’.

जो भी इन मैचों में अच्छा प्रदर्शन करता है वो अंतर-ज़िला मैचों के अगले स्तर तक पहुंचता है जो जेएंडके क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा आयोजित कराए जाते हैं.

होम पथरी लीग के आयोजकों की शिकायत थी कि इन टूर्नामेंट्स के बावजूद चयनकर्ता सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को चुनने के लिए दूर-दराज़ के गांवों तक नहीं पहुंचते.

नवाज़ ने कहा, ‘वो मैच कराते हैं लेकिन सिर्फ उन्हीं खिलाड़ियों को चुनते हैं जिन्हें वो जानते हैं. खिलाड़ियों की तलाश में कोई पैदल चलकर इन गांवों तक पहुंचने की तकलीफ नहीं उठाता. कभी-कभी हमारे खिलाड़ी पैसे का इंतजाम करके ट्रायल्स में पहुंच जाते हैं, लेकिन उनकी संख्या मुठ्ठी भर होती है’.

इन ग्रामीण प्रीमियर लीग्स के पास नेहामा स्टेडियम में आयोजित निजी टूर्नामेंट्स में हिस्सा लेने का विकल्प भी होता है, लेकिन उसमें खेलने के लिए हर टीम को 2,500 रुपए फीस देनी पड़ती है.

नवाज़ ने कहा, ‘अगर हमें किसी पेशेवर सेटअप में खेलना हो तो ज़्यादा पैसा जुटाना होता है और खेलने के लिए हर किसी को नेहामा जाना पड़ता है जो यहां से 40 किलोमीटर दूर है’. नवाज़ ने आगे कहा, ‘यहां किसी के पास संसाधन नहीं हैं. कभी-कभी जब हमारे पास उतने पैसे जुड़ जाते हैं तो हम वहां मैच खेलते हैं, क्योंकि वहां खेलने का मतलब है कि हम निगाह में आएंगे’.

उन्होंने ये भी कहा, ‘इसके अलावा अगर वहां कोई मैच खेला जा रहा है तो बेकरी मालिक जैसे कुछ प्रायोजक हमें पैसा देते हैं अगर हम उनके बैनर स्टेडियम में लगा दें’.


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भारत के लिए खेलने का सपना

अधिकांश खिलाड़ियों के लिए एक सपना होता है कि वो किसी दिन भारत या कम से कम किसी आईपीएल टीम के लिए खेलें.

15 जुलाई के मैच में स्कोर बोर्ड की ज़िम्मेदारी संभाल रहे गौहर ने कहा, ‘हमें एक बेहतर मैदान चाहिए, सड़क संपर्क चाहिए ताकि लोग यहां आकर खेल सकें. हमें पेशेवर प्रशिक्षकों की भी ज़रूरत है. मौका मिलने पर मैं भी भारत के लिए खेलना चाहूंगा. लेकिन कौन यहां तक चलकर आएगा और हमारी प्रतिभा को देखेगा?’

Gowher (middle), a scorer at the tournament, says he would play for India if given the chance | Photo: Praveen Jain/ThePrint
गौहर (मध्य) का कहना है कि उसे अगर मौका मिलता है तो वो भारत के लिए खेलना चाहेगा | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

कश्मीर में क्रिकेट के खेल की इतनी अधिक लोकप्रियता का एक और सूचक हैं- बहुत से क्रिकेट क्लब्स जो गांवों में बन गए हैं- मसलन अवेंजर्स क्रिकेट क्लब, एलिगेंट स्टार्स, नेहामा नाइट्स, कंवल टाइगर्स आदि.

खेल अधिकारी मलिक ने कहा, ‘ये वो क्लब्स हैं जो यहां के गांवों के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों ने मिलकर बनाए हैं. वो अपने खेल को सोशल मीडिया पर बढ़ावा देते हैं और देखते ही देखते प्रायोजक जुटा लेते हैं. इस खेल को लेकर यहां के युवाओं में बेहद उत्साह है और यहां कड़ा मुकाबला होता है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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