पानीपत/गाजियाबाद: 1992 में की गई एक हत्या के एक मामले में ‘मोस्ट वांटेड’ 65 साल के ओम प्रकाश उर्फ पाशा को पकड़ने के लिए पुलिस ने 4 राज्यों में 30 सालों तक 100 जगहों पर छापेमारी की. इस बीच काफी कुछ बदला. पाशा ने अपना एक नया जीवन शुरू किया. उसने 28 स्थानीय यूपी फिल्मों में अभिनय किया, तीर्थ यात्रा पर गया, तीन बच्चों की परवरिश की और दादा भी बन गया.
एक अगस्त की पूर्व संध्या पर जब हरियाणा के स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के दर्जनों पुलिसकर्मियों ने गाजियाबाद के हरबंस नगर में उसके घर पर धावा बोला, तो पड़ोसी भी दंग रह गए – हमारा पड़ोसी? हत्यारा?
इन सालों में पाशा ने फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाईं थीं- एक ग्राम प्रधान, एक पुलिसकर्मी और एक संत. लेकिन वह हत्यारे की अपनी पहचान से पीछा नहीं छुड़ा सका. उसकी गिरफ्तारी आसान नहीं थी. पुलिस को उसे झूठ के जाल में फंसाना पड़ा.
गुरुग्राम एसटीएफ के एक सदस्य, सब-इंस्पेक्टर विवेक कुमार ने कहा, ‘आजकल वह जहां रह रहा था, उसका पता हमें हरियाणा में उसके पैतृक गांव से मिला. उस रात जब 9 बजे उसका दरवाजा खटखटाया तो हमने पहले से ही एक कहानी तैयार कर ली थी. हम नहीं चाहते थे कि भीड़ इकट्ठा हो और लोग उसकी गिरफ्तारी को रोक दें. हमने पाशा को बताया कि उसके ट्रक मैनेजर ने उस पर दस्तावेज चुराने का आरोप लगाया है और वह स्थानीय पुलिस स्टेशन में इंतजार कर रहा है. हमारे साथ चलो’
गुस्से में पाशा ने कहा, ‘लेकिन मैंने पहले ही अपने वेतन से, गुम किए गए दस्तावेजों के नुकसान की भरपाई कर दी है. मैं भी उस झूठे को देखता हूं.’ उसने अपनी चप्पल उठाई और पुलिसकर्मियों के साथ हो चला. वे पुलिस की गाड़ी से बमुश्किल 50 मीटर की दूरी पर थे जब पाशा को एहसास हुआ कि वास्तव में हो क्या रहा है.
पुलिस ने उसे बताया, ‘तुम यहां मैनेजर की वजह से नहीं हो. बल्कि तुम्हें सालों पहले की गई एक हत्या के जुर्म में पकड़ा गया है.’
बाइक और स्कूटर लूटने वाले तीन ‘ठग’
हरियाणा की एसटीएफ टीम के लिए, यह उनके सबसे पुराने और सबसे जिद्दी मामलों में से एक को निपटाने का आखिरी कदम था.
उधर, पाशा भिवानी जेल में अपने दिन बिता रहा है, वहीं पुलिस ने चार्जशीट पर काम करना शुरू कर दिया है. एसटीएफ एक नई फाइल के साथ आगे बढ़ गई है. गाजियाबाद में उसका परिवार अब उसके अतीत और उसके वर्तमान को समझने के लिए ‘कड़ियों’ को जोड़ने में व्यस्त है.
समालखा थाने में पाशा को हिस्ट्रीशीटर के तौर पर सभी जानते हैं. ‘एफआईआर नंबर 119 से 166, 1990’ शीर्षक वाली एक लाल फाइल उसके अतीत की गवाही देती है.
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पुलिस के दस्तावेजों में कहा गया है कि पाशा भारतीय सेना का पूर्व जवान था. उसने 1984 से लेकर 1988 तक अपनी सेवा दी. सेना ने ड्यूटी पर अनुपस्थित रहने के कारण उसे बर्खास्त कर दिया. जिसके बाद वह घर लौटा और छोटे अपराधियों दुलीचंद व अशोक कुमार से हाथ मिला लिया. तीन लुटेरों का ये गिरोह एक दशक तक मोटरसाइकिल और स्कूटर लूटने के लिए हरियाणा में अलग-अलग जगहों पर घूमता रहता था. उस समय मोटरसाइकिल और स्कूटर का होना एक बड़ी बात हुआ करती थी.
नरैना गांव के रहने वाले महिपाल बताते हैं, ‘90 के दशक में यहां पुलिस की छापेमारी आम थी.’
कुछ सालों तक पुलिस और बाइक चोरों के बीच एक थकाऊ बिल्ली-चूहे वाली दौड़ चलती रही.
आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, उन्हें कई मामलों में गिरफ्तार किया गया और चार्जशीट पेश की गई. लेकिन अदालत ने डकैती के सभी मामलों का निपटारा कर दिया क्योंकि गवाह या तो मुकर गए या पेश नहीं हुए.
हत्या का मामला
पाशा और उसके साथियों का अपराध सिर्फ चोरी पर ही नहीं रुका. जल्द ही पाशा ने खुद को और ज्यादा मुश्किलों में पाया, जिससे वह बाहर निकलने का रास्ता नहीं निकाल सका.
सब-इंस्पेक्टर विवेक कुमार ने याद करते हुए बताया, ‘डकैती के मामलों में जमानत मिलने के बाद पाशा ने एक नया जीवन शुरू किया. उसने मरम्मत की एक दुकान खोल ली. लेकिन पुरानी आदतें मुश्किल से मरती हैं. एक दिन उसने और एक अन्य व्यक्ति ने बाइक पर जा रहे एक व्यक्ति को देखा. दोनों ने उससे बाइक लूटने का प्रयास किया. युवक ने विरोध किया तो उन्होंने युवक पर चाकू से वार कर दिया. लेकिन इससे पहले कि वे बाइक चुरा पाते ग्रामीण दौड़ते हुए वहां आ गए. और वे वहां से भाग गए.’
घायल युवक को अस्पताल ले जाया गया जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. जनवरी 1992 में सदर भिवानी पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज की गई. यह पाशा के अपराधी जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. पुलिस ने भी उसकी तलाश को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया. भिवानी पुलिस ने 90 के दशक में ही सह-आरोपी को गिरफ्तार कर चार्जशीट दाखिल कर दी थी.
विवेक कुमार ने बताया, ‘दूसरे व्यक्ति को सात साल जेल की सजा सुनाई गई और बाद में रिहा कर दिया गया. लेकिन पाशा कभी नहीं पकड़ा गया.’ भिवानी पुलिस ने 2020 में पाशा पर 25,000 रुपये का इनाम रखा और उसे ‘मोस्ट वांटेड’ अपराधी घोषित कर दिया. लेकिन पाशा हवा में गायब हो गया था.
पाशा का लापता होना
ग्रामीणों का दावा है कि तीनों लुटेरे 1997 में नरैना से गायब हो गए थे.
उनके समकालीन, 60 साल के महेंद्र सिंह छोकर ने बताया, ‘दुलीचंद ने 4 मई 1997 को गांव छोड़ दिया और फिर कभी वापस नहीं लौटा. हमने उसे मृत मान लिया है. उसी साल अशोक गांव से दूर शहर में बसने के लिए भाग गया’
लेकिन पाशा के लापता होने को लेकर रहस्य बना रहा. कुछ का मानना है कि उसने 2000 में गांव छोड़ा था तो कुछ का दावा है कि वह 1992 में ही चला गया था. उसके भाई प्रेम का कहना है कि वह 1997 में सब कुछ छोड़ कर चला गया था.
गांव के प्रधान राजकुमार ने कहा, ‘वह जिंदा है, ये हमें तब पता चली जब हमने गाजियाबाद से उसकी गिरफ्तारी की खबर देखी. इतने सालों तक हम अलग-अलग पुलिस टीमों से कहते रहे कि या तो वह मर गया है या फिर कहीं गायब हो गया है.’
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पाशा बना एक अभिनेता
अपने गांव से भागने के बाद पाशा ने एक नए शहर में अपने लिए एक नया जीवन और पहचान बनाने की कोशिश की. उसने गाजियाबाद के हरबंस नगर पहुंचकर वीसीआर की दुकान खोली. यहां उसकी मुलाकात राजकुमारी से हुई जो एक तलाकशुदा महिला थी और उसके पास एक छोटा सा घर था. वह नोएडा में एक सिलाई फैक्ट्री में काम करती थी. लंबे समय तक राजकुमारी को पाशा के जीवन के बारे कोई जानकारी नहीं थी- वह कहां से था, उसकी पहली शादी और उसके बच्चे.
राजकुमारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे उसकी पहली शादी के बारे में तभी पता चला जब वह अपने बेटे को लेकर आया. लेकिन तब तक उसके साथ मेरे दो बच्चे हो चुके थे. अब मैं उसे नहीं छोड़ सकती थी. लेकिन फिर हमारा रिश्ता कभी भी पहले जैसा नहीं रहा.’
हालांकि, वह अतीत में की गई कुछ डकैतियों के बारे में गाहे-बगाहे बता दिया करता था. एक मोटरसाइकिल यहां से उठाई, वहां से स्कूटर उठाया. इसलिए, जब 2000 की शुरुआत में उसे 90 के दशक में की गई चोरी के मामले में गिरफ्तार किया और पानीपत जेल भेज दिया गया तो राजकुमारी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ.
उसने कहा, ‘कुछ पड़ोसियों और मैंने जमानत दिलाने में उसकी मदद भी की थी.’
पाशा दो बार राजकुमारी को अपने पैतृक गांव नारायणा में भी लेकर गया था. उसे अपने भाई प्रेम और अपनी चार बहनों से मिलवाया.
उसने अफसोस के साथ कहा, ‘यहां तक कि उसकी बहनें भी मेरे प्रसव के दौरान हमारे साथ रहने आई थीं. लेकिन उनमें से किसी ने भी कभी इस बारे में बात नहीं की कि उसने अतीत में क्या किया था. किसी ने हत्या के बारे में भी बात नहीं की थी.’
2007 में पाशा ने अपने पहले बेटे की शादी की और गायब हो गया. उसके बाद वह 2014 में वापस आया.
राजकुमारी ने कहा, ‘मैंने उससे पूछा कि तुम अभी क्यों आए हो. उसने बताया कि वह जेल में था. उसके नाखून नीले रंग से रंगे हुए थे.’
हरबंस नगर लौटने के बाद पाशा ने टकराव, दबंग छोरा यूपी का और झटका जैसी स्थानीय फिल्मों में अभिनय किया.
विवेक कुमार ने बताया, ‘उसे गाने का शौक था. जब उसे पता चला कि गाजियाबाद के बाहरी इलाके में कुछ कम बजट की फिल्मों की शूटिंग हो रही है, तो वह मजदूर या सहायक के रूप में नौकरी करने के लिए सेट पर चला गया. लेकिन उसने कुछ जुगाड़बाजी करके छोटी भूमिकाएं हथिया लीं.’ पाशा ने इन फिल्मों में एक पुलिसकर्मी, एक गांव के ‘मुखिया’ और यहां तक कि एक संत की भूमिका निभाई है.
कुछ फिल्में अब YouTube पर एक मिलियन से अधिक बार देखी जा चुकी हैं, जहां टकराव को 76 लाख बार देखा जा चुका है, वहीं ‘झटका’ फिल्म को 3.5 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है. फिल्मों की कहानी आमतौर पर सामंती गांवों पर आधारित है, जहां एक युवक को एक महिला से प्यार हो जाता है. हरियाणवी संगीत कंपनी सोनोटेक ने 2013 में ‘झटका’ के अधिकार खरीदे और इसे अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड कर दिया.
सोनोटेक के एक सहयोगी अंकित विज ने साफ किया, ‘हम निर्माता नहीं हैं. इसलिए, हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि पाशा इन फिल्मों में कैसे आया. ये काफी पुरानी बात है.’
कोई भी कानून से बच नहीं सकता
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक हरियाणा के हर जिले में ऐसे दो से तीन मोस्ट वांटेड अपराधियों की सूची है.
विवेक कुमार ने कहा, ‘अगर हरियाणा में 22 जिले हैं, तो तकनीकी रूप से हमारे पास 60 से ज्यादा सर्वाधिक वांछित लोगों की सूची हैं.’
वह आगे बताते हैं, ‘नरैना गांव का दौरा करने वाली पुलिस टीमों ने शायद गायब होने की कहानियों पर विश्वास किया होगा. लेकिन हमने एक पड़ोसी से गुप्त सूचना मिलने के बाद 12 जगह तलाशी ली थी. पड़ोसी ने बताया था कि पाशा गाजियाबाद में रहता है और चार साल पहले नरैना आया था.’
लेकिन पाशा को दोषी नहीं ठहराए जाने पर लगभग तीन दशकों तक किया गया उसका पीछा करना बेकार साबित हो सकता है. इसमें काफी मुश्किले हैं. पुलिस जानती है कि 1997 के सबूतों और गवाहों की कमी है. लेकिन अधिकारियों के अनुसार, महत्वपूर्ण संदेश यह है कि कोई भी कानून से बच नहीं सकता है.
पाशा का परिवार अब आखिरकार उसके व्यवहार के पीछे के कारणों और पैटर्न को पहले से कहीं ज्यादा समझ सकता है.
राजकुमारी ने कुछ आत्मनिरीक्षण के बाद कहा, ‘अब मुझे पता चला कि वह समय-समय पर क्यों गायब हो जाता था. कभी कांवड़ यात्रा पर जाता था तो कभी ड्राइविंग की नौकरी करता. वह अपने आप से भाग रहा था.’
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