नई दिल्ली: मध्यप्रदेश की एक पूर्व सेशन जज—जिन्होंने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश की ‘अनैतिक मांगों’ को कथित तौर पर अस्वीकार कर देने पर ‘अनुचित तरीके’ से एक अशांत क्षेत्र में ट्रांसफर किए जाने के खिलाफ 2014 में अपना पद छोड़ दिया था—ने अक्टूबर 2018 में अपनी सेवा बहाल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
हालांकि, तीन साल बीतने और 17 सुनवाई होने के बाद भी महिला जज के मामले में शीर्ष अदालत में अब तक कोई निर्णायक फैसला नहीं सुनाया गया है.
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अब 12 जनवरी 2022 को फिर होनी है.
हालांकि, एक संसदीय जांच समिति ने हाई कोर्ट के जज एस.के. गंगेले, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, को दिसंबर 2017 में उत्पीड़न के आरोपों से बरी कर दिया था. लेकिन इसी समिति ने पाया था कि महिला जज के ट्रांसफर में उनकी भूमिका थी, जिसे उसने ‘दंडात्मक’ करार दिया.
महिला न्यायाधीश ने समिति के निष्कर्ष के इसी पहलू को सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका को आधार बनाया था.
इस बीच, जबकि वह अपनी याचिका पर निर्णायक फैसले का इंतजार रही हैं, सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर को उनके उत्पीड़न के आरोपी पूर्व हाई कोर्ट जज को एक वरिष्ठ वकील के तौर पर नियुक्त कर दिया है.
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों की तरफ से लिया गया. हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश उन सात पूर्व न्यायाधीशों में से एक हैं जिन्हें यह सम्मान दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट से जज को बहाल करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले तीन सालों के दौरान दो बार मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को महिला जज को बहाल करने की सलाह दी थी.
फरवरी 2019 में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने शीर्ष कोर्ट के सुझाव पर आपत्ति जताई थी.
लेकिन मार्च 2020 में जब शीर्ष कोर्ट ने एक बार फिर यही सुझाव दिया तो हाई कोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार को तैयार हो गया. इस बार, कोर्ट ने सुझाव दिया था कि हाई कोर्ट महिला जज को बहाल करे और उसे एक राज्य या केंद्रीय अर्ध-न्यायिक निकाय में प्रतिनियुक्त करे.
हालांकि, हाई कोर्ट ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के संबंध में हाई कोर्ट के प्रस्ताव की एक प्रति दाखिल करने को भी कहा था लेकिन हाई कोर्ट ने अभी तक ऐसा नहीं किया है.
यद्यपि इस मामले की आखिरी सुनवाई कोविड महामारी के दौरान सितंबर 2020 में हुई थी, लेकिन इसके बाद इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया.
अक्टूबर के अंत से सुप्रीम कोर्ट में फिजिकल हियरिंग शुरू करने के बाद महिला जज का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने 29 नवंबर 2021 को इस मामले (केस की तत्काल सुनवाई की मौखिक अनुरोध) का उल्लेख किया.
अब, जस्टिस एल.एन. राव 12 जनवरी 2022 को मामले पर फिर से सुनवाई के लिए तैयार हो गए हैं.
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आरोप और क्लीन चिट
पूर्व न्यायिक अधिकारी ने ग्वालियर से अपने ट्रांसफर के बाद 15 जुलाई 2014 को इस्तीफा दे दिया था, जिसके बारे में उनका कहना था कि यह कदम उन्होंने अपने सुपरवाइजर जज जस्टिस गंगेले द्वारा जिला अदालत के रजिस्ट्रार के माध्यम से भेजे गए एक संदेश के बाद उठाया है जिसमें उन्हें जस्टिस गंगेले के आवास पर एक समारोह में ‘एक आइटम सांग पर डांस करने’ को कहा गया था.
महिला जज ने अपने कथित उत्पीड़न के इस मामले पर भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) आर.एम. लोढ़ा का ध्यान भी आकृष्ट किया था.
आरोपों की वैधता का पता लगाने के लिए मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने एक जांच समिति का गठन किया था लेकिन महिला जज के इन आरोपों को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया.
इसके बाद, तत्कालीन सीजेआई एचएल दत्तू ने जांच के लिए विभिन्न हाई कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की एक नई समिति का गठन किया. अगस्त 2019 में इस कमेटी ने गंगेले को क्लीन चिट दे दी.
लेकिन, मार्च 2016 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी आरोपों की जांच के लिए एक समिति का गठन कर चुके थे, जब राज्यसभा के 58 सदस्यों ने गंगेले पर महाभियोग चलाने की मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस आर. भानुमति (अब सेवानिवृत्त) के नेतृत्व में इस समिति ने भी हाई कोर्ट के न्यायाधीश को निर्दोष पाया. हालांकि, इस समिति ने यह साक्ष्य जरूर पाया कि ‘शिकायतकर्ता के ट्रांसफर और उनके रिप्रेजेंटेशन को अस्वीकार करने में प्रतिवादी जज की भूमिका थी…’
छह महीने बाद अपने ट्रांसफर पर समिति की टिप्पणियों को आधार बनाते हुए महिला न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने 12 अक्टूबर 2018 को उस याचिका पर नोटिस जारी किया.
मामले में आए तमाम उतार-चढ़ाव
तब से इस मामले में तमाम उतार-चढ़ाव आए. मामले में सुनवाई करने वाली पीठ ने खुद को इससे अलग कर लिया, जबकि दो बार तारीख तय होने के बावजूद सुनवाई को रद्द कर दिया गया, वहीं शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे को निपटाने का प्रयास किया.
सुनवाई की पहली तारीख जस्टिस 11 जनवरी 2019 को जस्टिस ए.के. सीकरी (अब रिटायर) और एस.ए. नजीर की पीठ ने मामले को दो हफ्ते बाद निर्णायक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया. सुनवाई के बजाय, मामला ‘हटा दिया गया’ (जब कोई मामला किसी निश्चित दिन पर सुनवाई की अंतिम सूची में नहीं आता), जिसने महिला जज के वकीलों को यह निर्देश हासिल करने के लिए प्रेरित किया कि मामले को निर्धारित तिथि पर सुनवाई से हटाया नहीं जाएगा.
कोर्ट ने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया और 12 फरवरी को मामले की सुनवाई की, जब महिला जज के वकील ने अपनी दलीलें रखीं. 13 फरवरी 2019 को जब मध्यप्रदेश हाई कोर्ट अपना पक्ष रख रहा था, तो शीर्ष कोर्ट ने कानूनी बारीकियों में जाने के बिना मानवीय आधार पर महिला जज को बहाल करने का अपना प्रस्ताव रखा.
जब हाई कोर्ट ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और 21 फरवरी 2019 को इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया तो पूरी पीठ ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. यह देखते हुए कि महिला न्यायाधीश की बहाली का सुझाव दिया गया था, पीठ ने कहा, अब मेरिट के आधार पर केस की सुनवाई का कोई मतलब नहीं रह जाता है.
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तारीख पर तारीख
जस्टिस एस.ए. बोबडे (अब सेवानिवृत्त) की अगुवाई वाली नई पीठ के समक्ष मामले को नए सिरे से सूचीबद्ध किया गया. 1 मार्च 2019 से 10 दिसंबर 2019 के बीच छह बार सुनवाई हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
आखिरकार 12 फरवरी 2020 को जिस समय तक जस्टिस बोबडे सीजेआई बन चुके थे, कोर्ट ने एक बार फिर महिला जज को बहाल करने का सुझाव दिया और 16 मार्च 2020 तक हाईकोर्ट से जवाब मांगा. लेकिन कोई लिखित जवाब नहीं आया.
सुप्रीम कोर्ट में तीन और सुनवाई—14 जुलाई, 24 अगस्त और 14 सितंबर को—के बाद जस्टिस बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामला अंतिम फैसले के लिए सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया.
14 सितंबर 2020 के आदेश के मुताबिक मामले की सुनवाई चार हफ्ते बाद होनी थी. लेकिन दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक महिला जज की कानूनी टीम की तरफ से सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को 28 ईमेल भेजे गए, जिसमें मामले के उल्लेख या सुनवाई के लिए एक वर्चुअल लिंक भेजने का अनुरोध किया गया था.
हालांकि, इन अनुरोधों पर कभी विचार नहीं किया गया.
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