नई दिल्ली: योगी सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह नागरिक संशोधन विधेयक (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों में शामिल लोगों को भेजे गए 274 नोटिस वापस ले चुकी है. इन प्रदर्शनकारियों को सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में ये नोटिस भेजे गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह योगी सरकार को नोटिस भेजने पर रोक लगा दी थी.
राज्य सरकार ने कोर्ट से कहा कि जिन लोगों को नोटिस जारी किए गए थे उनके खिलाफ अब उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान वसूली विधेयक के प्रावधानों के तहत कार्रवाई कर सकती है. कोर्ट ने सरकार को राज्य के नए कानून के हिसाब से क्षतिपूर्ति वसूली करने की अनुमति दे दी है. पिछले साल यह विधेयक लाया गया था. राज्य सरकार की ओर से कहा गया है कि इन मामलों को इस कानून के तहत बनाए गए ट्रिब्यूनल के पास भेजा जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को क्षतिपूर्ति नोटिस भेजकर प्रदर्शनकारियों से वसूली गई राशि भी लौटाने का निर्देश दिया है.
11 फरवरी को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच वाली कोर्ट ने नोटिस भेजने की वजह राज्य सरकार की खिंचाई की थी.
यूपी सरकार की ओर से एडीशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने कोर्ट को कहा कि राज्यभर में सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों में शामिल 833 ‘दंगाईयों’ के खिलाफ 106 एफआईआर दर्ज की गई हैं. इनमें कथित रूप से भीड़ के हिस्सा रहे 274 लोगों को क्षतिपूर्ति नोटिस भेजा गया है.
प्रसाद ने कहा कि ये आदेश एडीशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की ओर से जारी किए गए थे. इस पर कोर्ट ने अपनी आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसा करने से उसके पिछले आदेशों की अवमानना हुई है. ऐसे आदेश सिर्फ़ हाई कोर्ट के जज या सेवानिवृत जज ही दे सकते हैं जिन्हें ‘क्लेम कमिश्नर’ के तौर पर नियुक्त किया गया हो. इनका काम सार्वजनिक सम्पतियों की क्षतिपूर्ति का आकलन करने के बाद उसकी जवाबदेही तय करना है.
सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील से पूछा था, ‘आप शिकायतकर्ता, गवाह, आप वादी बन गए हैं… और फिर आप लोगों की संपत्तियां कुर्क करते हैं. क्या किसी कानून के तहत इसकी अनुमति है?’
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सरकार को चेतावनी देते हुए ये भी कहा था कि अगर अब उसने नोटिस वापस नहीं लिए तो कोर्ट कानून का उल्लंघन करने वाले इन नोटिसों को खारिज कर देगी.
कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करने के दौरान ये टिप्पणी की. पिछले साल याचिकाकर्ता एडवोकेट परवेज आरिफ टिटू ने इन नोटिस को रद्द करने की अपील की थी. एडवोकेट निलोफर खान मामले की पैरवी कर रही हैं.
याचिकाकर्ता टिटू ने आरोप लगाया था कि ये नोटिस ‘मनमाने ढंग’ से जारी किए गए हैं. याचिका में कहा गया है कि ऐसे लोगों को भी नोटिस भेजा गया है जिनकी मौत 94 साल की उम्र में, छह साल पहले ही हो गई है. साथ ही, दो ऐसे लोगों को नोटिस भेजा गया है जिनकी उम्र 90 साल से ज्यादा है.
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन और यूपी का कानून
कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कहा था कि नोटिस भेजने की वजह से कोर्ट के पिछले दो आदेशों का उल्लंघन हुआ है. पहला आदेश 2009 में आया और दूसरा आदेश 2018 में दिया गया था.
साल 2009 में दिए गए एक फैसले में कोर्ट ने कहा था कि हिंसा की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई करने से जुड़े कानून के अभाव में हाई कोर्ट ऐसे मामलों में स्वत: संज्ञान ले सकती है जिनमें बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान हुआ हो. साथ ही, कोर्ट ऐसे मामलों की जांच के लिए टीम बना सकती है और सहायता राशि जारी कर सकती है.
कोर्ट ने पिछले फैसलों में कहा था कि ऐसे मामलों में क्षति का आकलन करने और जिम्मेदारी तय करने के लिए हाईकोर्ट के निवर्तमान जज या सेवानिवृत जज की नियुक्ति की जा सकती है. वहीं, उत्तर प्रदेश में ये आदेश डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से जारी किए गए हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान वसूली विधेयक पास किया था.
इस कानून में राज्य सरकार को क्लेम ट्रिब्यूनल (दावा प्राधिकरण) गठित करने का अधिकार दिया गया है. यह ट्रिब्यूनल दंगों, हड़ताल, बंद, प्रदर्शनों और सार्वजनिक जुलूस की वजह से सार्वजनिक या निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई के मामलों में फैसला लेगा. डिस्ट्रिक्ट जज को इन ट्रिब्यूनल का प्रमुख बनाया गया है. इसके साथ ही एडिशनल कमिश्ननर रैंक के अधिकारी इसके सदस्य होंगे.
कोर्ट ने माना कि इस कानून को आधार बनाकर यूपी सरकार की ओर से भेजे गए नोटिस, कोर्ट के 2009 और 2018 में दिए गए फैसलों का उल्लंघन है.
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