नयी दिल्ली, एक सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय फरवरी 2020 में हुए दंगों की कथित साजिश से जुड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) मामले में मंगलवार को शरजील इमाम, उमर खालिद और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर अपना फैसला सुना सकता है।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने अभियोजन पक्ष और विभिन्न आरोपियों की दलीलें सुनने के बाद नौ जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पीठ द्वारा अपराह्न ढाई बजे आदेश सुनाने की संभावना है।
अदालत ने शरजील इमाम, उमर खालिद, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा की जमानत याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का कड़ा विरोध करते हुए दलील थी कि यह सिर्फ और सिर्फ दंगों का मामला नहीं है बल्कि एक ऐसा मामला है जहां दंगों की साजिश पहले से ही एक भयावह मकसद और सोचे-समझे षडयंत्र के साथ बनाई गई थी।
अभियोजन पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि यह वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करने की एक साजिश थी और केवल लंबी कैद जमानत का आधार नहीं हो सकती।
उन्होंने दलील दी थी, “अगर आप अपने देश के खिलाफ कुछ भी करते हैं, तो बेहतर होगा कि आप बरी होने तक जेल में ही रहें।”
उमर खालिद, शरजील इमाम और कई अन्य आरोपियों पर फरवरी 2020 के दंगों के कथित ‘मास्टरमाइंड’ होने के आरोप में यूएपीए और तत्कालीन भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
यह हिंसा नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी।
शरजील इमाम, खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाएं 2022 से उच्च न्यायालय में लंबित हैं और समय-समय पर विभिन्न पीठों द्वारा इन पर सुनवाई की गई है।
भाषा जितेंद्र सुभाष
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