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Friday, 22 November, 2024
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20 आदमी, एक बाल्टी और डेटॉल साबुन के दो टुकड़े- यूपी के प्रवासी मजदूरों की क्वारेंटाइन में ऐसे बीत रही जिंदगी

पिंपरी-शादीपुर गांव के क्वारेंटाइन केंद्र में 20 मज़दूरों को ठहराया गया है, जिनका कहना है कि उन्हें अधिकारियों द्वारा भोजन नहीं दिया जा रहा है और सभी को चटाई पर सोना पड़ता है.

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सीतापुर: उत्तर प्रदेश की राजधानी से करीब 100 किलोमीटर दूर पिंपरी-शादीपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय के मुख्य द्वार पर बच्चे सुबह 20 प्रवासी मज़दूरों जिनको क्वारेंटाइन केंद्र में रखा गया है उनसे बात करते नज़र आते हैं.

इस क्षेत्र के आस-पास कोई भी नहीं होना चाहिए. पुरुषों के लिए स्कूल को क्वारेंटाइन केंद्र में बदल दिया गया है. 24 मार्च को हुए 21 दिन के लॉकडाउन के बाद इनमें से कुछ मुंबई से लगभग 1,400 किमी दूरी तय करके आए हैं.

राज्य भर के गांवों में क्वारेंटाइन केंद्रों की स्थापना कोविड-19 की जांच, प्रवासी श्रमिकों की स्क्रीनिंग के लिए की गई है और यह सुनिश्चित करना है कि वे इसे गांव के लोगों तक न पहुंचाएं. गांव में अपने घर जाने से पहले यहां आने वालों को 14 दिन तक क्वारेंटाइन में बिताने पड़ते हैं.

क्वारेंटाइन में रहने वाले पुरुषों का कहना है कि उनके पास सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों का पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

बड़े महानगरों से घर आने में होने वाली कठिनाई और सुविधा केंद्र की परिस्थिति भी जटिल है, जहां भोजन नहीं है, बमुश्किल किसी के पास भी आवास हो और कोई स्वच्छता नहीं है. उन्हें उनके हाल में छोड़ दिया गया है क्योंकि यहां कोई कर्मचारी नहीं है.

18 वर्ष का साहिबान जो अपनी 10 वर्षीय बहन किस्मत से चाय प्राप्त कर रहा है. इस कठिन स्थिति को बताता है कि ‘हमारा परिवार सावधानी बरत रहा है. लेकिन अगर हमें भोजन उपलब्ध नहीं कराया गया तो हम क्या करेंगे? साहिबान कहते हैं, हम यहां भूख से नहीं मर सकते. हमें अपने भोजन और आवास की व्यवस्था करने के लिए कहा गया है.’

Sahibaan, 18, receiving tea from his 10-year-old sister Kismat | Photo: Praveen Jain | ThePrint
18 वर्षीय साहिबान अपनी 10 वर्षीय बहन किस्मत से चाय लेते हुए | प्रवीन जैन/दिप्रिंट

साहिबान गाजियाबाद में मिस्त्री का काम करते हैं. वे कहते हैं कि घर पहुंचने के लिए चार दिनों तक पैदल चले.

उन्हें राशन दिया गया, लेकिन खाना बनाने के लिए कुछ भी नहीं था

पुरुषों का कहना है कि जब वे 26 मार्च को पहली बार यहां पहुंचे, तो गांव के प्रधान ओमप्रकाश वर्मा ने उन्हें राशन मुहैया कराया. लेकिन उन्हें स्कूल के पास से लकड़ी इकट्ठा कर खाना बनाने को कहा.

पुरुषों का आरोप है कि जब उन्होंने भोजन पकाने के लिए गैस सिलेंडर की मांग की, तो प्रधान ने भोजन की वस्तु वापस ले ली और कहा कि वे अपने भोजन की व्यवस्था करें.


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हरियाणा के रोहतक से यहां पहुंचने वाले 26 साल के शौकीन ने कहा, पहले दिन प्रधान ने 20 लोगों के लिए पांच किलो चावल, दो किलो आलू और 250 मिली लीटर सरसों का तेल प्रदान किया. जब हमने उनसे सिलेंडर मुहैया कराने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि नहीं है.

शौकीन ने कहा, ‘जब हमने एक कमरे को खोला, तो हमने वहां कुछ सिलेंडर देखे. जब हमने आपत्ति की तो ग्राम प्रधान ने उस राशन को जब्त कर लिया और उसे उस कमरे में बंद कर दिया’.

अन्य प्रवासी मजदूरों का आरोप है कि उनके घरों से खाना पहुंचाया जाता है, तो ग्राम प्रधान उसकी तस्वीरें लेते हैं और अधिकारियों के लिए व्हाट्सएप पर अपलोड करते हैं.

गाजियाबाद में वेल्डर के रूप में काम करने वाले 31 वर्षीय रोहित मौर्य ने कहा, ‘जब भी हम सभी अपना भोजन खाते हैं, तो ग्राम प्रधान इसकी तस्वीरें लेते हैं और अपने व्हाट्सएप पर अपलोड करते हैं. अधिकारियों को दिखाने के लिए कि उन्होंने प्रदान किया है. यह तब हुआ था जब हमने उन्हें इस क्वारेंटाइन केंद्र में अनियमितताओं की शिकायत करने को कहा था’.

मौर्य ने कहा, ‘जब हमने इसका विरोध किया, तो प्रधान ने हमें क्वारेंटाइन के मानदंडों का पालन न करने के लिए मुकदमा करने की धमकी दी. मौर्य ने कहा कि अगर वे भोजन की कमी और अन्य व्यवस्थाओं के बारे में शिकायत करते हैं तो पुलिस भी कथित तौर पर धमकी देती है’.

हालांकि, प्रधान ओमप्रकाश वर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि मजदूर खुद खाना नहीं बना सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि गांव में कोई भी उनके लिए खाना पकाने को तैयार नहीं है क्योंकि अधिकांश पिछड़ी जातियों से हैं या मुसलमान हैं.

वर्मा ने कहा, ‘वे प्रवासी मजदूर जिन्हें क्वारेंटाइन में रखा गया है, वे खाना नहीं बना सकते क्योंकि वे गांव से बाहर होने पर होटलों पर निर्भर रहते थे. इसके अलावा, गांव में कोई भी उनके लिए खाना बनाने के लिए तैयार नहीं है’.

The migrant labourers at the quarantine centre in Pimpri-Shadipur village | Photo: Praveen Jain | ThePrint
पिंपरी-शादीपुर गांव के क्वारेंटाइन केंद्र में मौजूद प्रवासी मजदूर | प्रवीन जैन/दिप्रिंट

‘परिसर एक बार भी सैनेटाइज़ नहीं हुआ’

यह सुविधा केंद्र बुनियादी सैनिटरी मानदंडों का भी पालन नहीं करता है. सभी 20 पुरुषों को गांव के स्कूल परिसर में दो शौचालय होने के बावजूद सिर्फ एक शौचालय से काम चलाना पड़ता है. दिप्रिंट जब पहुंचा तब दोनों ही शौचालय बंद थे.

गाजियाबाद से पैदल घर चलकर आने वाले वेल्डर मौर्य ने कहा, ‘परिसर एक बार भी सैनेटाइज़ नहीं किया गया था. हमें उन गद्दों पर सोने के लिए कहा जा रहा है जो हम अपने घरों से लाए थे, तीन और कमरे हैं लेकिन उन्हें प्रधान द्वारा बंद कर दिया गया है. यदि उनका उपयोग किया गया होता, तो हम सोते समय सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करके उचित दूरी पर सो सकते थे.’

The men sleep on mattresses that they have brought from home | Photo: Praveen Jain | ThePrint
घर से मंगवाई चारपाई पर सोया व्यक्ति | प्रवीन जैन/दिप्रिंट

पुरुषों का यह भी कहना है कि उन्हें सिर्फ एक बाल्टी और एक छोटे डेटॉल साबुन के साथ संघर्ष करना पड़ता है, जिसे दो टुकड़ो में काट दिया गया है.


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हरियाणा के झज्जर में मिस्त्री के रूप में काम करने वाले एक दिहाड़ी मजदूर 28 वर्षीय नीरज ने कहा, ‘शुरुआती दिनों में जब अधिकारी गांव का निरीक्षण करने आए, तो प्रधान ने हमें एक बाल्टी और एक डेटॉल साबुन प्रदान किया. तब से कुछ और नहीं हुआ है’.

उन्होंने कहा कि जब उन्होंने गांव के प्रधान से कहा कि दोनों टॉयलेट खोल दें तो उन्होंने कहा कि वे चाहें तो बाहर शौच करने के लिए जा सकते हैं.

गाजियाबाद में एक रिक्शा चालक 27 वर्षीय रोहित ने कहा, ‘दो दिन पहले शौचालय के लिए बहुत भीड़ थी. कतार में छह लोग थे. मैं दो लड़कों के साथ बाहर खुले में शौच करने गया था.’

हालांकि प्रधान वर्मा ने पंचायत कर्मचारियों पर इसका आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘मैंने कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि सभी सुविधाएं मजदूरों को प्रदान की जाएं, लेकिन वे लापरवाह हैं. मैं उनसे फिर से यह सुनिश्चित करने के लिए कहूंगा कि गांव के स्कूल में प्रवासी श्रमिकों को सभी सुविधाएं दी जाएं. मजदूरों ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधान के रिश्तेदारों को तरजीह दी जा रही थी.

The quarantine centre has only one functioning toilet | Photo: Praveen Jain | ThePrint
क्वारेंटाइन केंद्र में सिर्फ एक ही शौचालय चालू है | प्रवीन जैन/दिप्रिंट

गौड़ सिटी नोएडा एक्सटेंशन में काम करने वाले 24 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर असलम ने कहा, ‘दिल्ली से ग्राम प्रधान के परिवार के दो सदस्य हैं, लेकिन वे अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने घरों में रह रहे हैं. जबकि हम लोगों को यहां रखा गया है. केवल गरीबों को यहां पर रखा गया है जबकि प्रधान के परिवार के सदस्य और यहां तक कि उनके रिश्तेदार भी गांव में आराम से रहते हैं.

जब दिप्रिंट ने पिंपरी-शादीपुर अलगाव केंद्र में व्यवस्थाओं पर सीतापुर के जिलाधिकारी अखिलेश तिवारी से संपर्क किया, तो उन्होंने पंचायत अधिकारियों पर खराब सुविधाओं का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, ‘हम हर संभव व्यवस्था कर रहे हैं, लेकिन ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत के स्तर पर अनियमितताएं और लापरवाही हैं.’

तिवारी ने कहा कि वह इस मामले पर संज्ञान लेंगे और संबंधित खंड विकास अधिकारी को गांव के स्कूल स्थित क्वारेंटाइन केंद्र में अनियमितताओं को ठीक करने के लिए भेजेंगे.

कोई आय नहीं, बचत में कमी

अधिकांश पुरुषों के लिए 14-दिन के लॉकडाउन के समय में कोई आय नहीं होगी और उनकी बचत ख़त्म हो जाएगी. पुरुषों का कहना है कि वे खेतों में काम करने और लॉकडाउन की अवधि के दौरान आय अर्जित करने की उम्मीद में घर से चले आए थे.

इस क्षेत्र में ये समय गन्ने और गेहूं की कटाई का है और खेतिहर मजदूरों को तब तक खेत से संबंधित गतिविधियों में काम करने की अनुमति दी जाती है जब तक वे काम में सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखते हैं.


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दिल्ली के अशोक नगर में एक खानपान कंपनी में खाना सर्व करने वाले 28 वर्षीय सुनील ने कहा, ‘हम आय और भोजन की उम्मीद में घर आए थे, लेकिन जब हम इस क्वारेंटाइन केंद्र में रखे जा रहे हैं, हमारे परिवार कष्ट झेल रहे हैं, गन्ना और गेहूं की फसल अपने चरम पर है और केवल एक सप्ताह तक यह रहेगा. उसके बाद यहां रोजगार की कोई संभावना नहीं होगी. हम कैसे खाएंगे और क्या कमाएंगे?’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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