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Sunday, 24 November, 2024
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दस में से 8 देशों ने 2जी घोटाले की जांच में मदद की भारत की अपील को किया अनदेखा

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ईडी ने सूचना और सहयोग के लिए कई देशों को अनुरोध पत्र भेजे, लेकिन अधिकांश देशों ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी, जिनसे मामला बुरी तरह कमज़ोर हुआ.

नयी दिल्लीः 10 में से 8 देशों ने ईडी के ‘लेटर्स रोजैटरीज़’ (एलआर) यानी अनुरोध-पत्र पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। यह अनुरोध 2जी मामले में अवैध पैसों के संबंध में थी. इससे मामला बुरी तरह प्रभावित हुआ। ऐसा दिप्रिंट को उच्चपदस्थ सूत्रों ने बताया.

सीबीआई की विशेष अदालत के जज ओ पी सैनी ने पिछले हफ्ते मामले के सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था, यह कहते हुए कि जो रकम सवालों के घेरे में है – लगभग 200 करोड़ अवैध लेनदेन के- वह मुख्य अभियुक्त पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा ने लौटा दी है, ‘अपराध की प्रक्रिया’ वहां देखने को नहीं मिली है.

उन्होंने कहा, ‘आपराधिक प्रक्रिया नहीं दिखती है, धन की हेराफेरी नहीं दिखती, क्योंकि कुछ दिख नहीं रहा है और इसीलिए इस त्वरित मामले का पूरा आधार ही खिसक जाता है और इसीलिए अपराध को हटाया जाता है’.

एलआर क्या है?

कोई एलआर या लेटर रोजैटरीज का मतलब किसी सशक्त कोर्ट द्वारा किसी विदेशी कोर्ट को दिया गया औपचारिक संवाद है, जिसे विदेश मंत्रालय जांच करनेवाली एजेंसी की तरफ से आगे बढ़ाता है, ताकि व्यक्तियों और संस्थाओं के बारे में सूचना मिल सके.

अधिकारियों के मुताबिक ये पत्र रूस, संयुक्त अरब अमीरात, नॉर्वे, साइप्र्स, मॉरीशस, लीबिया, आइजल ऑफ मैन, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, फ्रांस और सिंगापुर को 2010 से 2012 के बीच भेजे गए. इनमें से केवल फ्रांस और साइप्रस ने जवाब दिया. 2012 में ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड ने भी प्रतिक्रिया दी, पर कोई प्रासंगिक सूचना साझी नहीं की, जिसके बाद एक पूरक एलआर भी दाखिल की गयी.

एक अधिकारी ने कहा, ‘2 जी मामले में कई एलआर पेंडिंग हैं, ये स्वान टेलीकॉम द्वारा द्र्मुक चालित कलाइगनार टीवी के जरिए ए राजा को कथित तौर पर 200 करोड़ रुपए अवैध तौर पर देने के संदर्भ में हैं. सीबीआई का दावा है कि 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस के बदले अवैध तौर पर दी गयीं.

सीबीआई की जांच से पता चला कि 2जी निर्गमन की दौड़ में जो दूरसंचार कंपनियां शामिल थीं, ने अवैध तौर पर इन देशों में पैसे भेजे, जिसके बाद हमने एलआर भेजे थे. हालांकि, जांच एक अंधे कुएं तक पहुंची और इन देशों ने लगातार रिमाइंडर भेजने पर भी कोई जवाब नहीं दिया’.

जवाब पाना मुश्किल क्यों है?

अधिकांश मामलों में, ईडी ने पाया कि जांच के दायरे में आयी फर्म का वित्तीय विवरण और रिटर्न इन देशों के अधिकारियों के पास नहीं था, या उन्होंने विवरण साझा नहीं किया, क्योंकि यह उनके लिए अनिवार्य नहीं कि वे जवाब दें ही.

दूसरे, देशों ने यह भी मांग की कि जांच एजेंसी साफ बताए कि अपराध और उसकी प्रक्रिया में प्रत्यक्ष संबंध कैसा है? एक अधिकारी ने कहा, ‘वे चाहते हैं कि हम उन्हें अपराध की सीधी कड़ी दें जो जांच के दौरान संभव नहीं है, क्योंकि हम बहुआयामी दृष्टिकोण से जांच कर रहे हैं.

“धन के निशान को स्थापित करने के लिए, हम कई कड़ियों से गुजरते हैं और यह शायद संभव नहीं होता है कि हम प्रोसीड्स ऑफ क्राइम और उस वक्त के अपराध में सीधा संबंध स्थापित कर दें। यहीं पर अधिकांश एलआर फंस जाती हैं.”

एलआर का जवाब नहीं मिलने से मामला बिगड़ा?

अधिकारी बताते हैं कि घरेलू जांच समय से पूरी हो गयी थी, लेकिन चूंकि एलआर का जवाब नहीं आया था, इसने मामले को कहीं न कहीं बिगाड़ा. उन्होंने हालांकि कहा कि वे जल्द ही एक ऊपरी न्यायालय में अपील करेंगे.

एक वकील के मुताबिक, “हम पूरी तरह से विदेशों में अधिकारियों पर निर्भर थे. इन देशों से आए विवरण ने मुकदमे को मजबूत करने में सहायता दी होती, क्योंकि यह ऐसे मुख्य सबूत निर्मित करता, जो इस मुकदमे में पैसों के निशान को दिखाता”.

“अब, चूंकि महत्वपूर्ण सबूत विदेशों में पड़े हैं और हमारे न्यायाधिकरण में नहीं आते, हमने जवाब का इंतजार किया. इसमें वर्षों लग सकते हैं और हो सकता है तब भी सबूत ना मिले.”

“साथ ही, एलआर में केवल एक ही प्रश्न का जवाब दिया गया है. इसलिए, अगर हमें प्रतिक्रिया मिली भी है, तो हमें एक पूरक एलआर भरनी पड़ेगी, ताकि आगे की जांच हो सके,”सूत्र ने बताया.

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