नयी दिल्ली, 28 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के कानपुर में 1984 के सिख-विरोधी दंगों से संबंधित 11 मामलों की शीघ्र सुनवाई का निर्देश दिया, जिनमें पुनः जांच के बाद आरोप-पत्र दाखिल किए गए थे।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मामले में नियुक्त विशेष लोक अभियोजकों को मामलों के शीघ्र निपटारे के उपायों के साथ ही अदालतों में उपस्थित होने को कहा।
पीठ ने मामले में “अत्यधिक देरी” को रेखांकित किया तथा इनकी शीघ्र सुनवाई का आदेश दिया।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता रुचिरा गोयल ने कहा कि कानपुर सिख-विरोधी दंगा मामले में 40 साल पुरानी अस्पष्ट प्राथमिकी को उसकी विषय-वस्तु की पुनः जांच के लिए केंद्रीय न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) को भेजा गया था, लेकिन प्रयोगशाला ने अभी तक रिपोर्ट नहीं दी है।
पीठ ने सीएफएसएल को प्रक्रिया में तेजी लाने और जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
गोयल ने संबंधित मामले में गवाहों की जांच के साथ चल रही सुनवाई का हवाला दिया।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से पेश वकील ने कहा कि कुछ आरोपी व्यक्तियों ने उच्च न्यायालय का रुख किया और कार्यवाही पर रोक लगवा ली।
शीर्ष अदालत 1984 के सिख-विरोधी दंगों के दौरान कानपुर में लगभग 130 सिखों की हत्या के मामले को फिर से शुरू करने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने तीन मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार को मामले में चार दशक पुरानी अस्पष्ट प्राथमिकी को फिर से तैयार करने के लिए फोरेंसिक विशेषज्ञों की मदद लेने की अनुमति दे दी थी, तथा प्रयोगशाला के निदेशक से अनुरोध किया था कि वे मूल प्राथमिकी पर जोर न दें, जो कानपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के रिकॉर्ड में आसानी से उपलब्ध नहीं थी।
जिन 11 मामलों की पुनः जांच की गई और आरोप-पत्र दाखिल किए गए, उनमें उत्तर प्रदेश सरकार ने कमलेश कुमार पाठक और रंजीत सिंह को विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया।
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