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Thursday, 30 October, 2025
होमदेश‘घातक धुएं का कहर’: 12 साल में फॉसिल फ्यूल से होने वाली मौतें 40% बढ़ीं, अब तक 17 लाख से ज़्यादा जानें गईं

‘घातक धुएं का कहर’: 12 साल में फॉसिल फ्यूल से होने वाली मौतें 40% बढ़ीं, अब तक 17 लाख से ज़्यादा जानें गईं

लैंसेट की सालाना रिपोर्ट COP30 से पहले हुई जारी जिसमें सरकारों से ईंधन उत्सर्जन घटाने की तात्कालिक अपील की गई है. 2022 में दुनियाभर में फॉसिल फ्यूल से हुई 25 लाख मौतें.

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नई दिल्ली: कोयला, पेट्रोल और गैस के इस्तेमाल से होने वाले बाहरी वायु प्रदूषण के चलते भारत में साल 2022 में 17 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई. यह जानकारी लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज की ताज़ा रिपोर्ट में दी गई है.

रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 की तुलना में यह आंकड़ा करीब 38 फीसदी बढ़ गया है. वैश्विक स्तर पर 2022 में फॉसिल फ्यूल से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण करीब 25 लाख लोगों की मौत हुई.

जब दिल्ली में लगातार दूसरे हफ्ते एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 250 के पार ‘खराब’ श्रेणी में बना हुआ है, तब यह रिपोर्ट साफ तौर पर दिखाती है कि किस तरह वायु प्रदूषण दुनियाभर में जानें ले रहा है. भारत में 2016 से 2022 के बीच फॉसिल फ्यूल से होने वाले उत्सर्जन में 21 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई और ट्रांसपोर्ट सेक्टर में ऊर्जा की 96 फीसदी ज़रूरतें अब भी इन्हीं ईंधनों से पूरी की जा रही हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि फॉसिल फ्यूल के अलावा जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं ने भी 2024 में दुनियाभर में 1.54 लाख लोगों की जान ली.

रिपोर्ट में कहा गया, “फॉसिल फ्यूल से दूरी और स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने में देरी लोगों की ज़िंदगियां ले रही है और अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ डाल रही है.”

सतत संपदा क्लाइमेट फाउंडेशन के संस्थापक और क्लाइमेट एक्टिविस्ट हरजीत सिंह ने कहा, “यह रिपोर्ट डरावना सच सामने रखती है — भारत फॉसिल फ्यूल की लत का सबसे बड़ा शिकार बन चुका है. कोयला, तेल और गैस पर निर्भरता अब सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति में बदल गई है, जहां सिर्फ वायु प्रदूषण ही हर साल लाखों लोगों की जान ले रहा है.”

यह लैंसेट ग्लोबल काउंटडाउन रिपोर्ट का नौवां एडिशन है, जो 2015 से हर साल जारी किया जाता है. इसमें दुनिया भर के वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन करते हैं.

वायु प्रदूषण के अलावा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि हीटवेव, बाढ़, भूस्खलन और अन्य चरम मौसमी घटनाएं भी मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन रही हैं. बदलते मौसम के कारण डेंगू जैसी बीमारियों के प्रसार की क्षमता भी कई गुना बढ़ गई है.

2024 को अब तक का सबसे गर्म साल बताया गया है. इससे न केवल गर्मी से सीधी मौतें बढ़ीं, बल्कि बुजुर्गों, बच्चों और बीमार लोगों के लिए खतरनाक तापमान वाले दिनों की संख्या भी अधिक हो गई. अत्यधिक गर्मी के कारण साल 2024 में दुनिया को 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ, क्योंकि गर्मी से कामकाजी घंटों का नुकसान हुआ.

रिपोर्ट में कहा गया, “1990 के दशक से अब तक गर्मी से होने वाली मौतों में 23 फीसदी की वृद्धि हुई है. 2012 से 2021 के बीच हर साल औसतन 5.46 लाख लोगों की मौत सीधे हीटवेव से हुई.”

जलवायु कार्रवाई के लिए तात्कालिक अपील

रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब कुछ ही दिनों में ब्राज़ील के बेलेम शहर में COP30 सम्मेलन होने वाला है. इसमें दुनिया के नेता जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करेंगे. रिपोर्ट ने सरकारों से फॉसिल फ्यूल उत्सर्जन घटाने की तत्काल कार्रवाई करने की अपील की.

इस साल की रिपोर्ट में बताया गया है कि कुछ देश, खासकर अमेरिका (जहां डॉनल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद) ने 2015 के पेरिस समझौते और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी वैश्विक प्रतिबद्धताओं से पीछे हटना शुरू कर दिया है. यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की बहस में स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन का ज़िक्र 2021 के 62% से घटकर 2024 में केवल 30% रह गया.

लैंसेट काउंटडाउन की कार्यकारी निदेशक डॉ. मरीना रोमनेल्लो ने कहा, “हमारे पास जलवायु आपदा से बचने के समाधान पहले से मौजूद हैं — दुनिया भर के समुदाय और स्थानीय सरकारें दिखा रही हैं कि साफ ऊर्जा और स्थानीय पहल से वास्तविक बदलाव संभव है, लेकिन हमें इस रफ्तार को बनाए रखना होगा.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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