मुंबई: मराठा समुदाय के आरक्षण के लिए शांति पूर्वक से हिंसात्मक हुई लड़ाई के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने गुरूवार को नौकरियों और पढ़ाई में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए विधान सभा में बिल पेश किया. विधानसभा ने इसे एकमत से पास भी कर दिया.
यह बिल, एक अलग सामाजिक और आर्थिक पिछड़ा वर्ग बनाना चाहता है ताकि मराठाओं को आरक्षण प्राप्त हो सके. हालांकि दी गयी व्याख्या के अनुसार इसमें ‘क्रीमी लेयर शामिल नहीं होगी.
निचले सदन में कांग्रेस से विपक्ष के नेता विखे पाटील ने कहा, ‘हम कांग्रेस की तरफ से इस बिल को पूरा समर्थन देते हैं.’
सभा में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद थे जिन्होंने कहा, ‘मैं राजनीतिक पार्टियों से आए सभी प्रतिनिधियों को धन्यवाद् करना चाहूंगा जिन्होंने इस बिल को पूरे दिल से समर्थन दिया और इस महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव को एकमत से पास भी किया. हमनें सदन को दिखा दिया है कि कैसे एक जुट होकर हम सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को सुलझा सकते हैं.
फडणवीस ने पहले ही घोषित कर दी थी कि 1 दिसंबर को मराठा समुदाय जश्न मनाने को तैयार रहे. भाजपा विधायक सभा में, केसरी फेटा पहनकर आए और भाजपा-शिव सेना सरकार को बधाई भी दी
कैसे होगा यह लागू
महाराष्ट्र में पहले से ही 52 प्रतिशत आरक्षण है, वो भी तब जब सुप्रीम कोर्ट 50 प्रतिशत की सीमा लगाई हुई है. लेकिन राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के एक अपवाद का इस्तेमाल कर रही हैं जिसमें राज्य सरकार सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन और अभूतपूरिव स्थितियों का हवाला दे कर आरक्षण सीमा लांध सकती हैं.
अन्य पिछड़े वर्ग ने खासतौर पर इस बात से आपत्ति जताई थी कि मराठा आरक्षण से उनको मिलने वाले आरक्षण में कमी हो सकती है. हालांकि बिल ने यह स्पष्ट किया है की यह कोटा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए ही होगा और इसका ओबीसी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, विशेष पिछड़े वर्ग, विमुक्त जाति और घूमंतू जनजातियों के हिस्से को क्षति नहीं पहुंचाएगा.
मराठा आरक्षण तब आया है जब लोक सभा चुनावों को पांच महीने बाक़ी हैं और राज्य के विधानसभा चुनावों को एक साल बचा है.
कमीशन की रिपोर्ट फास्ट ट्रैक की गई
मराठा कोटा मामला एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया हैं. समुदाय के सदस्य 2016 से लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. और अक्सर हर तरह के राजनेता उनके समर्थन में आ खड़े होते थे.
शुरू में इन प्रदर्शनों के शांतिप्रय होने की- तब भी जब लाखों प्रदर्शनकारी होते थे – तारीफ की जाती थी.पर इस साल के शुरू में प्रदर्शन हिंसक हो गया था जिसके बाद सरकार को राज्य पिछड़ी जाति रिपोर्ट को फास्ट ट्रैक करना पड़ा था.
जून 2017 में महाराष्ट्र सरकार ने कमीशन को मराठा के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन पर शोध करने को कहा था. कमीशन को पिछड़ेपन के मापदंड तय करने को कहा गया था. इस पर मौजूदा रिपोर्टों का अध्ययन करने को कहा गया था और जानने को कहा था कि किन अभूतपूर्व परिस्थितियों में वे आरक्षण के लिए योग्य होंगें, उनकी राज्य में कितनी आबादी है और सरकारी नौकरियों में और शिक्षा में कितनी भागीदारी हैं.
कमीशन ने सरकार को अपनी रिपोर्ट 18 नवंबर 2018 में पेश की थी.
विपक्ष का सरकार पर दबाव है कि वो पूरी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखे पर सरकार ने केवल ‘एक्शन टेकन रिपोर्ट’ ही सदन में कमीशन की सिफारिश पर रखी है.
मराठा आरक्षण के लिए क्यों योग्य हैं
कमीशन ने समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और शिक्षा में पिछड़ेपन में 25 में से 21.5 अंक दिये है और कहा कि इस आधार पर मराठा भी आरक्षण के लिए योग्य हैं.
राज्य की कुल आबादी का 30 प्रतिशत हिस्सा मराठा हैं और रिपार्ट कहती है कि 76.86 प्रतिशत समुदाय या तो किसान हैं या कृषि कारगर. 2013-18 के बीच कृषि संकट से 13,368 किसानों ने आत्महत्या की थी और इनमें 24 प्रतिशत मराठा थे.
इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा गया है कि महिलाओं की स्थिति एक मुख्य संकेत है कि इस समुदाय की हालत कैसी है. रिपोर्ट कहती है कि 88.8 प्रतिशत मराठा महिलाएं जीवन यापन के लिए श्रमिकों की तरह काम करतीं हैं. हाल के सालों में 21.1 प्रतिशत मराठा शहरों की ओर पलायन कर गए है और ज़्यादातर डब्बेवालों, हम्माल आदि के रूप में काम करते हैं क्योंकि वे कम शिक्षित होते हैं.
रिपोर्ट कहती है कि अब क्योंकि वे मौसम के अनुसार नौकरी पाने के लिए पलायन करते हैं और अस्थाई रूप से झुग्गी झोंपड़ी में रहने को बाध्य होते है उनके बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित हो रही हैं.
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