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Friday, 22 November, 2024
होमदेशइंसेफेलाइटिस से 131 की मौत, जागरूकता फैलाने वाले धन का 30% भी खर्च नहीं कर पाई नीतीश सरकार

इंसेफेलाइटिस से 131 की मौत, जागरूकता फैलाने वाले धन का 30% भी खर्च नहीं कर पाई नीतीश सरकार

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 2018-19 में बिहार सरकार को नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (एनआरएम) के तहत हेल्थ कैंप लगाने के लिए जो रकम दी गई थी, राज्य सरकार उसका 30 प्रतिशत भी ख़र्च नहीं कर पाई.

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नई दिल्ली: इंसेफेलाइटिस से सोमवार तक 131 बच्चों को बिहार में जानें गंवानी पड़ी. समाज से सुप्रीम कोर्ट तक की लताड़ के बाद बिहार सरकार का सिर शर्म से झुका देने वाली एक और जानकारी सामने आई है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने सोमवार को अपनी स्टडी टीम की ग्राउंड रिपोर्ट जारी की. इसमें कहा गया है कि अगर स्वास्थ्य जागरुकता कैंप चलाए गए होते और परिवारों को सही जानकारी दी गई होती, तो बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से हुई बच्चों की भयावह मौतों को रोका जा सकता था.

ये बयान इसलिए अहम है क्योंकि नीतीश कुमार की बिहार सरकार पर इस मामले में बेहद गै़र-ज़िम्मेदाराना रवैया दिखाने के आरोप है. इसकी एक बानगी ये है कि संसद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 2018-19 में बिहार सरकार को नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (एनआरएम) के तहत हेल्थ कैंप लगाने के लिए जो रकम दी गई थी, राज्य सरकार उसका 30 प्रतिशत भी ख़र्च नहीं कर पाई.

जागरुकता फैलना में बड़ी देर कर दी

इस बीच संसद परिषद में दिए गए अपने एक बयान में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी नेता अश्विनी चौबे ने कहा कि सरकार इंसेफेलाइटिस से जुड़ी जागरुकता फैलना का काम कर रही है. बिहार के बक्सर से सांसद चौबे ने कहा, ‘हमने स्थिति पर निगाह बनाए रखी है. केंद्र और राज्य के डॉक्टरों की टीम लगातार काम कर रही है. मृतकों की संख्या में कमी आई है.’ मंत्री जी का बयान संसद में पेश हुए उस आंकड़े के बाद सामने आया है. जिसमें बिहार सरकार के जागरुकता अभियान की पोल साफ ख़ुलती नज़र आती है.


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ये रकम हेल्थ मेलों का आयोजन करने के लिए दी गई थी. हेल्थ मेला के मुख्य उद्देश्यों में से एक कम्युनिकेबल डिज़ीज़ (संचारी रोग) और नॉन कम्युनिकेबल डिज़ीज़ (गैर-संचारी रोग) से जुड़ी जागरुकता फैलाना होता है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक राज्य सरकार केंद्र को ये जानकारी देता है कि किन लोकसभा क्षेत्रों में हेल्थ मेलों का आयोजन करना है. ऐसी जानकारी मिलने के बाद एनएचएम के तहत हेल्थ मेलों के लिए रकम दी जाती है.

2018-19 में बिहार सरकार को मिल 2.65 करोड़ रुपए

चौथे नंबर पर बिहार को दी गई रकम की जानकारी है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 2018-19 के बीच बिहार सरकार को 2.65 करोड़ रुपए दिए गए. इस रकम को नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत जारी किया गया था.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संसद को दी गई जानकारी के मुताबिक 2018-19 के दौरान बिहार सरकार को इस फंड के तहत 2.65 करोड़ रुपए दिए गए थे. लेकिन, हैरत की बात ये है कि बिहार सरकार इसमें से महज़ 75.46 लाख़ रुपए ही ख़र्च कर पाई.

मुज़फ्फरपुर में मौजूद स्थानीय पत्रकारों से दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक 2014 के बाद से एईएस के शांत पड़ जाने की वजह से बिहार सरकार ने इसके हल्के में लिया और लोगों के बीच जागरुकता फैलाने की रफ्तार पहले धीमी पड़ी और फिर लगभग रुक गई. भारी संख्या में हुई बच्चों के मौत के पीछे इसे एक बड़ी वजह माना जा रहा है.

महज़ 75.46 लाख़ ख़र्च कर पाई सरकार

हेल्थ मेला यानी लोगों के बीच जागरुकता फैलाने जैसे कार्यक्रमों में ख़र्च की जाने वाली इस रकम में से बिहार सरकार ने महज़ 75.46 लाख़ रुपए ही ख़र्च किए. यानी नीतीश सरकार आधी से ज़्यादा रकम ख़र्च ही नहीं कर पाई.

दरअसल, इंसेफेलाइटिस एक साइकलिक बीमारी है. यानी ये कुछ सालों के अंतराल पर हमला बोलती है. बिहार में इसका पिछला बड़ा हमला 2014 में हुआ था. इसके बाद से 2018 तक इस बीमारी ने सूबे में अपना कहर नहीं बरपाया. लेकिन 2019 में ये एक बार फिर ये बीमारी मुजफ्फरपुर और उसके आप-पास के इलाकों में किसी कयामत की तरह साबित हुई.


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सुप्रीम कोर्ट को एक हफ्ते में सौंपनी है रिपोर्ट

इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी सोमवार को मामले पर कड़ा रुख अपनाया. सुप्रीम कोर्ट ने 150 से अधिक बच्चों की मौत को ‘अभूतपूर्व’ करार दिया है. केंद्र और राज्य सरकारों से इस बात का ब्यौरा भी मांगा गया है कि उन्होंने इस ‘अभूतपूर्व’ स्थिति के लिए क्या क़दम उठाए हैं. जस्टिस संजीव खन्ना और जीआर गवई की बेंच ने कहा, ‘लोगों को मेडिकल सुविधा, पोषण और साफ वातावरण का मूल अधिकार है. इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत को स्वीकार नहीं किया जा सकता.’

सरकार ने कहा- ‘हालात पूरी तरह से काबू’ में हैं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसका पता लगाए जाने की दरकार है कि ऐसी स्थिति क्यों पैदा हो रही है. सात दिनों में दोनों सरकारों को अपना जवाब देना है. सुप्रीम कोर्ट ने तीन मामलों से जुड़ी जानकारी देने को कहा है, जिनमें- पब्लिक मेडिकल सुविधाओं की उपलब्धता, पोषण और साफ-सफाई जैसी बातें शामिल हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट में कहा कि सरकार सभी ज़रूरी क़दम उठा रही है और इंसेफेलाइटिस से जुड़े ‘हालात पूरी तरह से काबू’ में हैं.

(इस मामले पर हमने बिहार सरकार से संपर्क साधा लेकिन इस स्टोरी के पब्लिश होने तक उनका जवाब नहीं आया. जवाब मिलने पर इस आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.)

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