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Friday, 22 November, 2024
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चार्टेड अकाउंटेटों ने किया मोदी सरकार का बचाव, शोधार्थियों पर उठाये सवाल

मणिपाल समूह के अध्यक्ष टीवी मोहनदास पई के नेतृत्व वाले सीए ने 108 अर्थशास्त्रियों और सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए आरोपों को 'आधारहीन' बताया है.

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अभी कुछ ही दिन बीते हैं जब देश के 108 अर्थशास्त्री और समाजिक वैज्ञानिकों ने मोदी सरकार पर इकोनामिक डाटा से छेड़छाड़ का आरोप लगाया था कि इसी बीच 131 चार्टेड अकाउंटेटों (सीए) के एक समूह ने सरकार का बचाव करते हुए उन ‘शोधार्थियों’ की राजनीतिक मंशा पर सवाल उठा दिया.

चार्टेड अकाउंटेटों ने सभी प्रोफेशनल को भारत में पिछले पांच सालों में हुए विकास का चित्रण करने हेतु एक मंच पर आने का निमंत्रण दिया और उन अर्थशास्त्रियों और सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए ‘निराधार आरोपों’ का खंडन करने को भी कहा है.

एक बयान में कहा गया है, ‘अगर अर्थव्यवस्था की बात करें तो 1960 से 2014 के बीच भारत अपने सभी समकालीन देशों जैसे चीन, ताइवान, कोरिया, ब्राजील, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, रुस, दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका से पीछे रहा है. इन 54 सालों में इनमें से किसी भी अर्थशास्त्री या सामाजिक वैज्ञानिक ने भारत की धीमी अर्थव्यवस्था पर कोई शिकायत नहीं की.’

‘अब जब भारत एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की ओर अपना कदम बढ़ाए है. तब इन लोगों को उसकी विश्वसनीयता पर शक हो रहा है. क्या यह विदेशी निवेशकों को डराने की एक चाल है?’

‘यह उनकी नियत पर शक पैदा करता है और यह भी सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या यह चिंता केवल आने वाले चुनावों की खातिर है.’

‘सिग्नेचर करने वालों में मोदी के प्रबल समर्थक मनीपाल समूह के मालिक टी.वी मोहनदास पई, इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टेड अकाउंटस ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के अध्यक्ष प्रफुल्ल पी छजेड़ के अलावा आईसीएआई के कुछ पूर्व अध्यक्ष कोटक ऐस्सेट मैनजमेंट कंपनी के महानिदेशक निलेश शाह के साथ ही अग्रणी लॉ फर्म एजेबी एसोशिएट के मालिक अजय बहल भी शामिल है.’

‘सीए के समूह ने अर्थशास्त्रियों द्वारा भारत के सार्वजनिक आंकड़े पर चिंता जताने पर भी सवाल उठाया है.’

सीए ने कहा, ‘यह अपील जीडीपी, गरीबी उन्मूलन, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के संदर्भ में डेटा के रूप में और भी अधिक विवादास्पद लगती है, विश्व बैंक, आईएमएफ और कई अन्य सहित अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा भी विधिवत प्रकाशित किया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय डेटा और स्वतंत्र एजेंसियों ने स्पष्ट रूप से सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रकाशित किए जा रहे डेटा की पुष्टि की है.’

हालांकि, यह कथन इस आरोप पर लंबा नहीं चला कि सरकार ने नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) द्वारा संकलित नौकरियों के आंकड़ों को वापस ले लिया क्योंकि इससे बेरोजगारी की दर में वृद्धि देखी गई है.

अर्थशास्त्रियों का क्या कहना है

14 मार्च को 108 अर्थशास्त्रियों और सामाजिक वैज्ञानिकों के एक समूह ने, जिसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अभिजीत सेन, हिमांशु जयति घोष और सीपी चंद्रशेखर इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एंड रिसर्च के आर नागराज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जीन ड्रेज़ और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अभिजीत बनर्जी ने बेरोजगारी के आंकड़ों पर रोक लगाने के सरकार के हालिया फैसले की आलोचना की थी. और इसके साथ ही इसके नया जीडीपी सीरीज़ डेटा की आलोचना की थी.

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) की मंजूरी के बावजूद एनएसएसओ के वर्ष 2017-18 के रोजगार सर्वेक्षण को रोकने के अपने फैसले के लिए एनडीए सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा है.

पिछली यूपीए सरकार के शासनकाल में विकास दर को कम करने वाली जीडीपी की नई सीरीज़ के लिए सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा है. नीति आयोग द्वारा जारी किए गए नंबर एनएससी की एक उप-समिति द्वारा जारी नंबरों से पूर्ण रूप से अलग थे.

एनएससी के अध्यक्ष पीसी मोहनन और उनके साथ एक सदस्य का इस्तीफा विरोध का मुद्दा बना दिया इसके बाद भारत और विदेशों के अर्थशास्त्रियों ने एक बयान जारी कर सरकार से एनएससी और एनएसएसओ को स्वायत्तता प्रदान करके सार्वजनिक आंकड़ों की अखंडता की रक्षा करने का आग्रह किया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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