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Wednesday, 26 June, 2024
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7 राज्यों में 1,000 मामले- कैसे फिर से खुलने पर स्कूल, कालेज Covid क्लस्टर के तौर पर उभरे

देशभर में कई स्कूल और कॉलेज फिर से खुलने के बाद कोविड क्लस्टर के तौर पर उभरे हैं. मामले फिर से बढ़ने के बाद कई राज्यों ने एक बार फिर स्कूल बंद कर दिए हैं.

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नई दिल्ली : महाराष्ट्र में पिछले महीने दो जिलों में 300 स्कूली छात्र कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए, जिनमें से 229 अकेले वासिम के एक छात्रावास के थे. तेलंगाना में इस महीने दो दिनों में सात स्कूलों के लगभग 100 छात्रों को जांच के दौरान पॉजिटिव पाया गया. वहीं, हरियाणा में इसी माह करनाल के एक स्कूल के 54 छात्र कोविड-19 की चपेट में आ गए.

देशभर के अन्य तमाम स्कूलों में भी इसी तरह का ट्रेंड यह दर्शाता है कि लॉकडाउन के बाद फिर से खुले तमाम स्कूल कोविड-19 क्लस्टर के तौर पर उभरे हैं. कुल मिलाकर सात राज्यों के स्कूल-कॉलेजों में कम से कम 1,000 ऐसे कोविड केस सामने आए हैं.

पहले केंद्र सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में स्कूल-कॉलेज चरणबद्ध तरीके खोलने की अनुमति दी थी, जिसके बाद राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने ऑफलाइन कक्षाएं फिर से शुरू करने के संबंध में अपने-अपने स्तर पर फैसले लिए थे.

भारत मौजूदा समय में जिस स्थिति का सामना कर रहा है, उसे देश में कोविड-19 की दूसरी लहर कहा जा रहा है, उसमें टीकाकरण कार्यक्रम जारी रहने के बीच नए मामले भी तेजी से बढ़ते नजर आ रहे हैं.

बढ़ते मामलों के बीच तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब सहित कई राज्यों ने एक बार फिर स्कूलों को बंद कर दिया है.

आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों पर कोविड-19 का असर हल्का ही रहता है लेकिन वे इस संक्रमण को फैलाने वाले वाहक बन सकते हैं.

स्कूल फिर से खोलने को लेकर सरकार के स्पष्ट निर्देश थे ऑफलाइन उपस्थिति वैकल्पिक होगी—छात्र अपने माता-पिता की स्पष्ट सहमति के बाद ही ऑफलाइन कक्षाओं में शामिल हो सकते हैं. बहरहाल, स्कूलों के दरवाजे खुलते ही लाखों की संख्या में छात्र कक्षाओं में पहुंचने लगे.

स्कूलों में कोविड क्लस्टर के बारे में पूछे जाने पर शिक्षकों का कहना है कि इसकी कई वजहें हो सकती है, जिसमें एक दिन में निर्धारित संख्या से अधिक छात्रों का कक्षाओं में उपस्थित होना भी शामिल है. उन्होंने बताया कि इस सबसे बचने की कोशिशों के तहत कई स्कूलों ने स्पोर्ट्स पीरियड रद्द करने जैसे कई कदम उठाए हैं.

मौजूदा समय में 18 वर्ष से कम बच्चों के लिए कोई कोविड-19 वैक्सीन नहीं है.


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आशंकाएं बरकरार

स्कूलों को चरणबद्ध तरीके से खोलने की मंजूरी देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने स्वच्छता संबंधी व्यापक निर्देश जारी किए थे और कोविड फैलने से रोकने के लिए संस्थानों की तरफ से इनका पालन करना अनिवार्य था.

फिर भी, महामारी काबू में आए बिना स्कूल फिर से खोलने के निर्णय पर चिकित्सा विशेषज्ञों की राय अलग-अलग बंटी हुई रही है. इसे लेकर आशंकाएं जताई जाती रही हैं, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के कोविड-19 की चपेट में आने और इससे गंभीर तौर पर प्रभावित होने का खतरा कम ही रहता है.

नोएडा स्थित फोर्टिस अस्पताल में पीडियाट्रिक्स विभाग के निदेशक डॉ. कल्याण रामलिंगम ने कहा, ‘हमने किशोर उम्र के बच्चों में ऐसे मामलों की बड़ी संख्या देखी है, जो इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. जब पूरा का पूरा परिवार पॉजिटिव निकल रहा है तो हम बच्चों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?’ साथ ही जोड़ा कि वह स्कूलों को फिर से खोलने के खिलाफ हैं.

उन्होंने कहा, ‘यद्यपि छोटे बच्चे बीमारी के प्रति कम संवेदनशील दिखते हैं, तब भी हमें यह पता नहीं है कि बच्चों को लगने वाला कौन-सा प्राथमिक उन्हें सार्स-कोव-2 वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता प्रदान कर रहा हैं. ऐसे कई सिद्धांत हो सकते हैं कि बीसीजी या एमएमआर वैक्सीन छोटे बच्चों को इस रोग के खिलाफ जरूरी प्रतिरक्षा प्रदान कर रही होगी, लेकिन इस बारे में स्पष्ट तौर पर अब तक कोई साक्ष्य नहीं मिला है.’

यह पूछे जाने पर कि क्या स्कूलों को ऑफलाइन कक्षाएं फिर शुरू करनी चाहिए, आईआईएसईआर पुणे में विजिटिंग फैकल्टी मेंबर डॉ. सत्यजित रथ ने कहा, ‘इसका जवाब तो इस बात में छिपा है कि क्या हम पूरी तरह तैयार हो चुके हैं और बड़े पैमाने पर टीकाकरण हो रहा है, जहां शिक्षकों और माता-पिता को वैक्सीन मिल रही हो. स्कूलों को खोलने की आदर्श स्थिति तभी बनेगी.’

स्कूलों में सामने आए कोविड के हालिया मामलों पर उन्होंने कहा, ‘यही वास्तविकता है, हमें यह स्वीकार करना होगा कि संक्रमण अब आर्थिक और सामाजिक स्तर पर एक बड़ी जनसांख्यिकीय के बीच पर फैल रहा है. पिछले एक माह में भारत के कोविड के मामले बढ़ने का कारण स्थानीय स्तर पर संक्रमण फैलना है.

बेंगलुरु निवासी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. आनंद लक्ष्मण, जो बच्चों के लिए काम करते हैं, का कहना है, ‘इनमें अधिकांश केस उन छात्रों के हैं, जिनके नमूने स्कूल या कॉलेज खुलने से पहले ही लिए गए थे क्योंकि उनका आरटी-पीसीआर में शामिल होना अनिवार्य था… और परिणाम कुछ दिनों के बाद आने वाले थे.

उन्होंने कहा, ‘अन्य मामले हॉस्टल में सामने आए हैं, जहां छात्रों के बीच काफी निकटता रहती है. ज्यादातर मामले एसिमप्टमैटिक हैं. बच्चे और युवा वयस्क ज्यादा प्रभावित नहीं हुए.’

कोविड-19 पर पंजाब सरकार के सलाहकार डॉ. के.के. तलवार का मानना है कि शैक्षणिक संस्थानों के भीतर संक्रमण फैलने का कारण संभवतः ब्रिटेन का वैरिएंट हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘ताजा निष्कर्ष बताते हैं कि पंजाब में कोविड के 80 प्रतिशत मामले वायरस के ब्रिटेन वैरिएंट के हैं, जो 30 साल से कम उम्र के लोगों को प्रभावित करता है. शिक्षण संस्थानों में संक्रमण फैलना भी संभवत: उसी का परिणाम हो सकता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसी बात को ध्यान में रखते हुए राज्य में स्कूल और कालेज दो सप्ताह के लिए बंद कर दिए गए हैं.’

दिप्रिंट के कार्यक्रम ऑफ द कफ में शुक्रवार को एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने भी इस मुद्दे पर बात की और उन्होंने स्कूलों को फिर से खोलने और बच्चों के टीकाकरण को ‘हमारे सामने अभी मौजूद दो चुनौतियां’ करार दिया.

उन्होंने कहा, ‘स्कूलों में कोविड के मद्देनजर किए जाने वाले उपायों का पूरी तरह पालन हो पाना मुश्किल है, इसलिए दुर्भाग्यवश वहां संक्रमण फैलने का जोखिम ज्यादा है. हालांकि, अच्छी बात यही है कि अध्ययन बताते हैं कि बच्चों में ज्यादा गंभीर संक्रमण का खतरा नहीं होता है.’

‘लॉजिस्टिक संबंधी समस्याएं’

स्कूल फिर से खुलने पर शुरुआती दिनों में बेंगलुरु स्थित एक प्री-स्कूल और डे केयर सेंटर की तरफ से सात शहरों में किए गए सर्वे में 50 प्रतिशत से अधिक माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने के खिलाफ थे. हालांकि, जनवरी में भारत में कोविड टीकाकरण शुरू हो जाने के एक माह बाद सर्वेक्षण के दूसरे चरण में एक बड़ा बदलाव पाया गया, इसमें 85 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे अपने बच्चों को फिर स्कूल भेजने को तैयार हैं.

दिल्ली के एक गैर-सरकारी संगठन की तरफ से 10 राज्यों के 20 पिछड़े जिलों में किए गए एक अन्य सर्वेक्षण में पाया गया कि 80 प्रतिशत से अधिक माता-पिता और बच्चे चाहते थे कि स्कूल फिर से खुलें.

यद्यपि पढ़ाई की निरंतरता बनाए रखने के लिए लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं को व्यापक रूप से अपनाया गया, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों या फिर ऐसे दूरदराज के इलाकों में रहने वाले छात्रों के बीच इसे एक बेहतर विकल्प नहीं माना गया जहां कनेक्टिविटी की समस्या है.

वैसे कुछ अभिभावकों के लिए अपने बच्चों को फिर से स्कूल भेजना एक जोखिम भरा फैसला है जो उन्हें अनिच्छा से लेना पड़ रहा है.

दिल्ली निवासी तीन बच्चों की मां ममता सिंह ने दिप्रिंट को बताया उनकी सबसे बड़ी बेटी, जो 10वीं में है, हफ्ते में एक बार ऑफलाइन क्लास के लिए स्कूल जाती है.

उन्होंने कहा, ‘जब तक कोविड के मद्देनजर सावधानियां बरती जा रही हैं, हमारे लिए यह ठीक ही है. चूंकि बोर्ड की परीक्षाएं महत्वपूर्ण हैं, इसलिए हमारे पास बच्चों को अपनी पढ़ाई के लिए स्कूल भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. मैं अभी अपने छोटे बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार नहीं हूं. ऐसा तभी करूंगी जब महामारी खत्म हो जाएगी.’

स्कूलों में कोविड के मामलों पर चर्चा करते हुए दिल्ली एमसीडी शिक्षक संघ की अध्यक्ष विभा सिंह ने कहा, ‘कक्षाओं में लॉजिस्टिक संबंधी समस्याएं भी एक वजह हो सकती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘दिल्ली सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार एक समय में एक कक्षा में केवल 15 बच्चे उपस्थित रह सकते हैं. कभी-कभी जब 15 से अधिक छात्र हो जाते हैं, तो शिक्षकों को उन्हें समायोजित करना पड़ता है. संभव है कि ऐसा करते समय बच्चे एक-दूसरे के नजदीक आ जाएं और इससे किसी के संक्रमित होने की स्थिति में दूसरे के भी उसके चपेट में आने का खतरा हो सकता है.’

आवासीय स्कूलों के बारे में उनका कहना था कि वहां पर संक्रमण ‘किसी वयस्क स्टाफ मेंबर की वजह से भी हो सकता है जो बाहर आता-जाता हो.’ उन्होंने कहा, ‘यह भी संभव है कि किसी के माता-पिता…बीमारी की चपेट में आ जाएं और अनजाने में भी संक्रमण की एक चेन बन जाए.’

संक्रमण फैलने से रोकने के हरसंभव उपाय किए जाने के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, ‘शिक्षकों ने बच्चों के खेल के पीरियड को रद्द रखा है. इसके अलावा, क्लासरूम और कॉरिडोर में जगह-जगह सैनिटाइजर रखा गया है ताकि छात्र सतर्क रहें और समय-समय पर अपने हाथ साफ करते रहें.’

सुनंदा रंजन द्वारा संपादित

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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