लखनऊ: श्रमिकों व मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए यूपी में योगी सरकार और कांग्रेस आमने-सामने है. जहां कांग्रेस की ओर से 1000 बसों के इंतजाम का दावा किया गया, तो दूसरी ओर योगी सरकार की ओर से बसों के डॉक्यूमेंट संबंधित तमाम कमियां निकालकर प्रियंका गांधी के निजी सचिव व कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पर एफआईआर दर्ज करा दी. यूपी सरकार के मुताबिक जिन बसों की लिस्ट कांग्रेस द्वारा दी गई थी, उसमें 463 बसें फर्जी निकलीं जिससे कांग्रेस की पोल खुल गई.
यूपी के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा के मुताबिक, जो एक हजार बसों की लिस्ट दी गई उनमें 463 बसों के नाम पर फर्जीवाड़ा था, क्योंकि इनमें से 297 बसों को फिटनेस सर्टिफिकेट भी नहीं दिया गया. इसके अलावा 98 एम्बुलेंस, ऑटो, बाइक जैसे टू और थ्री व्हीलर थीं और 68 वाहनों का तो डेटा ही उपलब्ध नहीं था. मीडिया के सामने लिस्ट दिखाते हुए डिप्टी सीएम ने कहा कि हमने कांग्रेस द्वारा उपलब्ध कराई पूरी लिस्ट की पड़ताल कराई. लेकिन 460 के करीब बसें तो फर्जी निकल गईं.
यूपी सरकार के मुताबिक, कांग्रेस द्वारा उपलब्ध कराए आंकड़ों के अनुसार 1049 वाहनों की लिस्ट आई थी. जिसमें 879 बसों के नंबर थे (इनमें 297 का फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं मिला) और 31 ऑटो/थ्री व्हीलर के साथ 68 एंबुलेंस, डीसीएम, ट्रक, टू व्हीलर्स के नाम से रजिस्ट्रेशन था. वहीं 70 वाहनों के जो नंबर दिए गए उनका डेटा नहीं मिला है.
वहीं, यूपी कांग्रेस के चीफ अजय लल्लू के मुताबिक, 1096 बसों की लिस्ट सरकार को सौंपी गई थी. सरकार आंकड़ो में गड़बड़ी कर रही है . इनमें 500 से अधिक बसें हमने राजस्थान से लाकर यूपी बाॅर्डर पर खड़ी कर दीं. वहीं 300 से अधिक दिल्ली-नोएडा बाॅर्डर पर खड़ी कर दीं. लेकिन सरकार ने इजाजत नहीं दी. लल्लू के मुताबिक, जिन वाहनों को लेकर सरकार की मंगलवार को आपत्ति आई, वो अधिकतर प्राइवेट ऑपरेटर्स द्वारा दिए गए थे. हम उनका वेरिफिकेशन कर दूसरे वाहनों को भिजवाने को तैयार थे. लेकिन हमारा कहना था कि जितने अभी उपलब्ध हैं उनको रवाना किया जाए.
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वहीं, कांग्रेस की यूपी इंचार्ज प्रियंका गांधी ने भी बुधवार को इस मुद्दे पर अपनी बात रखी. प्रियंका गांधी के मुताबिक पिछले तीन दिनों से कांग्रेस की 900 से अधिक बसें यूपी -राजस्थान बॉर्डर और दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर खड़ी हैं. लेकिन प्रशासन ने उन्हें परमीशन नहीं दी. जबकि सरकार की ओर से पत्र लिखकर हमारा प्रस्ताव स्वीकार किया गया. लेकिन इसके बावजूद हमारी बसें रोक दी गईं. जितनी बसों को स्वीकार किया गया है उनको तो जाने दिया जाए.
जितनी ठीक थी बसें, उतनी तो चलाने देते- कांग्रेस
यूपी में कांग्रेस की लीडर व विधायक अराधना मिश्रा ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि योगी सरकार बसों को जबरदस्ती रोक रही. उन्हें जिन बसों के फिटनेस सर्टिफिकेट पर आपत्ति है उन्हें रोककर बाकी तो चलाने दिया जाए. हमने आगरा बॉर्डर पर 500 से अधिक व दिल्ली-नोएडा डीएनडी पर 300 से अधिक बसें खड़ी कर रखी हैं. उन्हें तो चलाने की इजाजत योगी सरकार को देनी चाहिए थी. जिन बसों के डिटेल्स में गड़बड़ी आई, उसकी डिटेल पहले सोशल मीडिया पर लीक कराया गया. ये बीजेपी सरकार की साजिश थी.
यूपी कांग्रेस के उपाध्यक्ष ललितेशपति त्रिपाठी का कहना है कि जितनी परेशानी कोरोना से नहीं होने वाली है उससे ज्यादा सरकार के बेतुके नियमों के कारण हो सकती है जिससे श्रमिकों को दिक्कते हो रही हैं. जितनी बसों के कागज ठीक हैं उन्हें तो चलाने देने की अनुमति दी जानी चाहिए. उन्हें बीजेपी सरकार ने क्यों रोक रखा है.
सामने आई कांग्रेस की अंदरूनी कलह
इस विवाद के बीच यूपी कांग्रेस की अंदरूनी कलह भी सामने आई है. रायबरेली से विधायक और एक दौर में गांधी परिवार की करीबी माने जाने वाली अदिति सिंह ने अपनी ही पार्टी की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं. अदिति ने ट्वीट कर कहा, ‘आपदा के वक्त ऐसी निम्न सियासत की क्या जरूरत, एक हजार बसों की सूची भेजी, उसमें भी आधी से ज्यादा बसों का फर्जीवाड़ा, 297 कबाड़ बसें, 98 ऑटो रिक्शा व एबुंलेंस जैसी गाड़ियां, 68 वाहन बिना कागजात के, ये कैसा क्रूर मजाक है, अगर बसें थीं तो राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र में क्यूं नहीं लगाई.’
आपदा के वक्त ऐसी निम्न सियासत की क्या जरूरत,एक हजार बसों की सूची भेजी, उसमें भी आधी से ज्यादा बसों का फर्जीवाड़ा, 297 कबाड़ बसें, 98 आटो रिक्शा व एबुंलेंस जैसी गाड़ियां, 68 वाहन बिना कागजात के, ये कैसा क्रूर मजाक है, अगर बसें थीं तो राजस्थान,पंजाब, महाराष्ट्र में क्यूं नहीं लगाई।
— Aditi Singh (@AditiSinghINC) May 20, 2020
इसके बाद अदिति सिंह ने एक अन्य ट्वीट में लिखा कि कोटा में जब यूपी के हजारों बच्चे फंसे थे, तब कहां थीं ये तथाकथित बसें, तब कांग्रेस सरकार इन बच्चों को घर तक तो छोड़िए, बार्डर तक ना छोड़ पाई, तब सीएम योगी ने रातों-रात बसें लगाकर इन बच्चों को घर पहुंचाया, खुद राजस्थान के सीएम ने भी इसकी तारीफ की थी.’
अदिति के इस बयान से पार्टी ने पल्ला झाड़ लिया है. सीएलपी लीडर अराधना मिश्रा ने इसे उनका निजी बयान बताया है. बता दें कि कांग्रेस की ओर से अदिति की विधानसभा की सदस्यता रद्द करने का पत्र स्पीकर को पहले ही जा चुका है. बीते साल अक्टूबर में अदिति पार्टी व्हिप का अनादर करने का आरोप लगा था, जिसके बाद पार्टी की ओर से उन्हें अनुशासनहीनता का नोटिस भी दिया गया था.
कांग्रेस को घेरने में जुटी बीजेपी
अदिति के इस बयान को लेकर बीजेपी के नेताओं ने कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया है. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा है कि अपनी विधायक के बयान के बाद कांग्रेस को आंखें खोल लेनी चाहिए. ये दौर तू-तू, मैं-मैं का नहीं है बल्कि ऐसी आपदा में तो सीएम योगी के प्रयासों को सराहना चाहिए, न कि उनका विरोध करना चाहिए.
वहीं, यूपी बीजेपी के दूसरे प्रवक्ता चंद्रमोहन का कहना है कि कांग्रेस प्रवासी मजदूरों के नाम पर केवल नौटंकी कर रही है. जब सरकार ने लिस्ट मांगी तो यूपी कांग्रेस के नेता कहने लगे कि अभी हम लिस्ट बना रहे हैंं. फिर जो लिस्ट दी उसमे गड़बड़ी थी. यानि की इनकी कोई तैयारी नहीं है ये झूठ बोल रहे हैं. कांग्रेस शासित राज्यों से क्यों नहीं बसें उपलब्ध कराईं, क्यों मजदूरों को ट्रकों पर बैठा दिया गया है. ये सिर्फ इनका पब्लिसिटी स्टंट है.
यूपी की पॉलिटिकल सेंटर में फिर बीजेपी-कांग्रेस
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो बसों को लेकर छिड़ी राजनीति में भले ही योगी सरकार ने मनमानी की हो, लेकिन इससे कांग्रेस को यूपी की पॉलिटिक्स के सेंटर में फिर से ला दिया है. कांग्रेस का संगठन इन मुद्दों पर एक्टिव हो गया है. कांग्रेस से जुड़े एक सूत्र की मानें तो इससे पहले सोनभद्र में दलित के नरसंहार के मुद्दे को उठाया, जिस पर सरकार ने कार्रवाई की, डीएचएफएल के मामले को उठाया जिस पर भी योगी सरकार की ओर से कार्रवाई की गई. वहीं सेंगर और चिन्मयानंद मामले में भी प्रियंका गांधी की एक्टिवनेस के बाद योगी सरकार ने कदम उठाए और अब बसों के मामले में भले ही राजनीति हो रही है, लेकिन कांग्रेस ने सरकार को घेर रखा है. इससे साबित होता है कि कांग्रेस यूपी में सबसे एक्टिव विपक्षी दल है.
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वहीं बीजेपी से जुड़े सूत्रों की मानें तो प्रियंका गांधी का प्रस्ताव मानकर सीएम योगी ने एक तीर से कई निशाने लगाए हैं. एक तरफ खराब बसों की लिस्ट जारी कर कांग्रेस के दावों की पोल खोल दी तो दूसरी तरफ यूपी के मुख्य विपक्षी दल के नेता व पूर्व सीएम अखिलेश यादव को इस चर्चा से दूर कर दिया है. इसी कारण समाजवादी पार्टी छटपटा रही है. अब अखिलेश न तो कांग्रेस के समर्थन में खुलकर बोल सकते हैं और न ही विरोध में जा सकते हैं. इस सूत्र के मुताबिक, बीजेपी को अपने प्रतिद्वंदियों को धूल चटाने के सारे तरीके पता हैं. इसे कहते हैं सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी.
वहीं, समाजवादी पार्टी की ओर से वरिष्ठ नेता जूही सिंह ने बयान जारी कर कहा कि यूपी सरकार के पास प्राइवेट व सरकारी मिलाकर 50 हजार बसें हैं. फिर भी वे बसों की राजनीति में फंसी है. कांग्रेस की बसें लेनी या नहीं लेनी ये वे तय करे. लेकिन सीएम, डिप्टी सीएम व पूरी ब्यूरोक्रेसी दिनभर इसी में उलझी रही. जबकि सरकार की प्राथमिकता ये होनी चाहिए कि प्रवासी मजदूरों की दिक्कत को समझें और उन्हें अपने संसाधन का प्रयोग कर तुरंत घर पहुंचाए. कांग्रेस-बीजेपी की आपस की राजनीति के कारण मजदूरों का नुकसान हो रहा है.
2. यदि ऐसा नहीं है तो बी.एस.पी. का कहना है कि कांग्रेस को श्रमिक प्रवासियों को बसों से ही घर भेजने में मदद करने पर अड़ने की बजाए, इनका टिकट लेकर ट्रेनों से ही इन्हें इनके घर भेजने में इनकी मदद करनी चाहिये तो यह ज्यादा उचित व सही होगा। 2/4
— Mayawati (@Mayawati) May 20, 2020
मायावती भी कांग्रेस से पूछ रहीं सवाल
बीएसपी सुप्रीमो मायावती इस बस विवाद पर यूपी सरकार के बजाए कांग्रेस से ज्यादा सवाल करते दिखीं. उन्होंने ट्वीटर पर लिखा ‘कांग्रेस को श्रमिक प्रवासियों को बसों से ही घर भेजने में मदद करने पर अड़ने की बजाए, इनका टिकट लेकर ट्रेनों से ही इन्हें इनके घर भेजने में इनकी मदद करनी चाहिये, यह ज्यादा उचित व सही होता. बीएसपी की कांग्रेस पार्टी को यह भी सलाह है कि यदि कांग्रेस को श्रमिक प्रवासियों को बसों से ही उनके घर वापसी में मदद करनी है तो फिर इनको अपनी ये सभी बसें कांग्रेस-शासित राज्यों में श्रमिकों की मदद में लगा देनी चाहिये.’
कांग्रेस के सूत्रों की मानें तो अब आगे की रणनीति ये है कि लॉकडाउन खत्म होने पर प्रियंका खुद यूपी आकर दूसरे राज्यों से आए श्रमिकों से मिलने उनके घर जाएंगी. वहीं, सरकार द्वारी दी गई सुविधाओं का रियलिटी चेक करेंगी. बसों को लेकर तीन दिन तक चले इस विवाद ने मजदूरों को तो कोई भला नहीं हुआ. लेकिन योगी सरकार व कांग्रेस ने अपने-अपने हिस्से की सहानुभूति जरूर बटोर ली. वहीं दोनों मुख्य विपक्षी दल सपा व बसपा को चर्चा से बाहर कर दिया.
आखिरकार बसों को लेकर तीन दिन से चल रहे इस विवाद से मजदूरों का कोई भला नहीं हुआ है. प्रवासियों को वह मदद नहीं मिली जिसकी उन्हें जरूरत थी, दोनों इस बदतरी के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराते रहे.