(धर्मेंद्र जोशी)
शिमला, 15 मई (भाषा) हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी देश के सभी पर्वतीय राज्यों और दुनिया के लिए ‘‘प्राकृतिक खेती का पहला वैज्ञानिक संसाधन केंद्र’’ बनेगा। विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति राजेश्वर सिंह चंदेल ने यह बात कही।
चंदेल ने पीटीआई-भाषा से साक्षात्कार में कहा कि उनका प्रयास विश्वविद्यालय को समूचे क्षेत्र के साथ-साथ दुनिया के लिए ‘‘प्राकृतिक खेती का पहला वैज्ञानिक संसाधन केंद्र’’ बनाना होगा।
हिमाचल प्रदेश सरकार की प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना (पीके3वाई) के कार्यकारी निदेशक चंदेल ने कहा कि विश्वविद्यालय परिसर के आसपास की आठ पंचायतों में प्रदर्शनी फार्म स्थापित करके प्राकृतिक खेती पर केंद्रित एक ‘पायलट प्रोजेक्ट’ तैयार करेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘हम पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित सुभाष पालेकर द्वारा शुरू किए गए प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांतों पर एक मॉडल विकसित करेंगे और आसपास के इन पंचायतों में एक प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र मॉडल का निर्माण करेंगे। यहां से वैज्ञानिक डेटा तैयार होगा और विश्वविद्यालय में आने वाले छात्रों और बाहरी लोगों के लिए इसे देखना और सीखना आसान होगा।’’
चंदेल ने कहा, ‘‘इस गैर-रासायनिक, कम लागत और जलवायु-अनुकूल प्राकृतिक खेती में उत्पादन प्रणाली पहले से ही स्थापित है। हमें अब वैज्ञानिक डेटा का तंत्र स्थापित करना होगा। डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय अगले तीन वर्षों में वैज्ञानिक आधार पर देश में प्राकृतिक खेती की सफलता को सही ठहराने वाला पहला विश्वविद्यालय होगा।’’
बिलासपुर जिले के घुमारवीं के रहने वाले चंदेल (54) शिक्षा और अनुसंधान में 25 से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ प्रसिद्ध कीटविज्ञानी हैं।
उन्होंने पीके3वाई की शुरुआत के बाद से पिछले चार वर्षों में हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह अब राष्ट्रीय स्तर पर प्राकृतिक खेती शुरू करने के लिए नीति आयोग के साथ नीति निर्माण में सक्रिय रूप से जुटे हुए हैं।
चंदेल ने कहा कि पिछली सदी में हरित क्रांति उपज बढ़ाने के लिए उस समय की जरूरत रही होगी। हालांकि, दशकों से जैव-विविधता एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है।
उन्होंने कहा कि कृषि में रसायनों के अधिक उपयोग से कीट और रोग बढ़ गए हैं, पारंपरिक फसलें लुप्त हो रही हैं और यह चिंता का विषय है कि बाजरा की पैदावार वाला क्षेत्र घट गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘समय के साथ, सब्जियों की खेती काफी हद तक बढ़ गई। इससे संपन्नता आई लेकिन समृद्धि नहीं हुई। महिलाओं में एनीमिया (शरीर में रक्त की कमी) के आंकड़े और बच्चों में कुपोषण चिंता का कारण है और हम जिस तरह की कृषि पद्धतियों का पालन कर रहे हैं, वे उसके साथ आई पोषण संबंधी कमियों पर अधिक प्रकाश डालते हैं।’’
चंदेल ने कहा कि उर्वरकों और कीटनाशकों समेत कृषि-रसायनों पर खर्च के कारण खेती की कुल लागत में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, ‘‘इन सब के मद्देनजर अनुसंधान उद्देश्यों में बदलाव की आवश्यकता है।’’
उन्होंने कहा,‘‘ प्राकृतिक खेती मेरी प्राथमिकता होगी। यह बाजार पर किसानों की निर्भरता को कम करता है क्योंकि वे देसी गाय के गोबर और गोमूत्र तथा खेतों के पौधों के साथ प्राकृतिक कृषि को कायम रखते हैं।’’
चंदेल ने कहा कि प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश मॉडल की सफलता दर राज्य और देश की सीमाओं से आगे निकल गई है और वर्तमान में 1.70 लाख किसान इस राज्य में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।
भाषा आशीष सुभाष
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